पालकों के समक्ष चुनौतियाँ और सुअवसर

– दिलीप वसंत बेतकेकर

विवाह हुआ, पारिवारिक जीवन प्रारंभ हुआ, माता-पिता की श्रेणी में आ गये, अब शिकवा-शिकायत का कोई अर्थ नहीं होता। दिन-ब-दिन पालकों को अनेक विषयों के सम्बन्ध में अधिक चिंता करना अपरिहार्य होने वाला है। पालकत्व की जिम्मेदारी का निर्वहन अब पहले जैसा सरल, सहज नहीं रहा है। उलझनें बढ़ती जा रही हैं किन्तु अवसर भी पहले की अपेक्षा अधिक है।

अब परिवर्तन इतनी तीव्र गति से हो रहे हैं कि उनके साथ सामंजस्य बैठाना कठिन हो गया है। सामाजिक, आर्थिक, तंत्रज्ञानात्मक बदलाव तेजी से हो रहे हैं। समझना आसान नहीं रहा। सब बातें समझकर, सामंजस्य बैठाते हुए परिवर्तन लाना, अत्यंत कठिन हो गया है। कुछ समय पूर्व तक दो पीढ़ियों में अंतर (जनरेशन गैप) दिखाई देता था। नये तंत्रज्ञान के कारण तो जीवन का प्रत्येक क्षेत्र उलट-पुलट दिखाई दे रहा है।

बेचारे मां-बाप घबरा जाते हैं। क्या करें? कैसे करें? समझ में नहीं आता! इकलौता बच्चा होने के कारण उसके प्रति चिंता, भय, दबाव, छटपटाहट का मिश्रित भाव चेहरे पर, दिमाग में, मन में, हृदय में, घर में स्पष्ट रूप से दिखता है। साथ ही समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रही ऐसी खबरें –

  1. माँ के टी॰वी॰ देखने से मना करने पर तेरह साल की बच्ची ने गले में फंदा डालकर आत्महत्या कर ली।
  2. पिताजी ने मोबाइल छीन लिया इस कारण आठवीं कक्षा के बालक ने अपने शरीर से विद्युत तार लपेटकर स्वयं को विद्युत झटका देकर दुनिया से विदा ले ली!
  3. ‘तुम्हारे पिता के पास गाड़ी नहीं’ ऐसा मित्रों द्वारा उपहास करने पर सातवीं कक्षा से ही शाला त्याग दी उस विद्यार्थी ने!
  4. मोटर साईकिल नहीं दी तो कॉलेज नहीं जाऊंगा ऐसी धमकी युवक ने माता-पिता को दी।
  5. केवल आठ-दस हजार की नौकरी पाते ही महंगा पहनावा, जूते, महंगी बाइक, हज़ारों का स्मार्टपफोन, ऐसी अनेक वस्तुओं के आकर्षण से घर की आर्थिक परिस्थिति की परवाह न करने वाले युवक!

ऐसे समाचार पढ़कर, आसपास की दुःखदायी घटनाएं देखकर कौन पालक बेचैन नहीं होगा? घबराहट, बेचैनी कैसे न हो?

मनोवैज्ञानिक फ्रिलन के अनुसार, अब बच्चों का बुद्धिमत्ता गुणांक (IQ) बढ़ रहा है। यह प्रसन्नता की बात है। परन्तु भावनांक (EQ) का घटना चिंताजनक है। पहले सारा दारोमदार (EQ) पर रहता था। अब बुद्धिमत्ता गुणांक तो छोड़िये, भावनांक के साथ सामाजिक, आध्यात्मिक, जिज्ञासा ऐसे अनेक ‘‘क्यू’’ क्यू में खड़े हैं। वे भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। बुद्धिमत्ता गुणांक से भी अधिक महत्वपूर्ण! सपफलता के लिये निर्णायक ये ही होते हैं, ऐसा शास्त्राज्ञों का अभिमत है। इसलिये इस पहलू पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। पालकों को इस बात का संज्ञान लेना लाभकारी रहेगा।

प्रत्येक बात का व्यापारीकरण, भोगवादी दृष्टिकोण होने के कारण घर-घर में तनाव, विविध प्रकार की समस्याएं (अध्ययन, स्वास्थ्य, आहार-विहार आदि) बढ़ती जा रही हैं। जिन्दगी उलझनयुक्त हो रही है। जानलेवा स्पर्धाएं, अति महत्वाकांक्षा आदि के कारण तनाव बेहद बढ़ता जा रहा है। अपराध, आत्महत्याएं, चिंताजनक परिमाण में बढ़ रही हैं। दस वर्ष पूर्व, ‘द वीक’, अंग्रेजी साप्ताहिक द्वारा किये गये सर्वेक्षण से आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए। दस वर्ष में स्थिति में कितनी अवनति हुई है इसकी कल्पना निम्न परिणामों से की जा सकती है –

तनावग्रस्त 76 प्रतिशत लोग निद्राहीनता और 58 प्रतिशत लोग सिरदर्द की समस्या से ग्रस्त हैं।

मंगलूर के 36 प्रतिशत इंजीनियर मानसिक समस्या से पीड़ित हैं, यह ‘निमहंस’ (NMHANS) के परीक्षण से ज्ञात हुआ।

युवकों में हताशा/अवसाद में 2 प्रतिशत से 12 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है।

“विश्व स्वास्थ्य संगठन” (WHO) के अनुसार अवसाद (Depression) इक्कीसवीं सदी की समस्याओं में प्रथम क्रमांक पर रहने वाली है।

सूचना प्रौद्योगिकी (IT) का बीस में से एक व्यक्ति आत्महत्या का विचार करता है।

भारत के आई.टी. क्षेत्रा के 27.6 प्रतिशत युवक ड्रग्स की आदत के शिकार हैं (NMHANS) ।

“We have overdeveloped minds and underdeveloped hearts” ऐसा आज की पीढ़ी के बारे में वर्णन किया जाता है। यह अक्षरशः सही है। यह स्थिति परिवर्तित होकर “Over developed minds and Super developed hearts” होनी चाहिये। शिक्षा के द्वारा निर्मित होना चाहिये ‘मानव’ – यही शिक्षा का महत्वपूर्ण पहलू है। आज मनुष्य के स्थान पर मशीनें निर्मित हो रही हैं, राक्षस निर्माण हो रहे हैं। शिक्षा की यह एक बड़ी शोकांतिका है। कृतज्ञ होने के बजाय कृतघ्न होना शिक्षा की पराजय ही है। इन सब को कैसे रोका जाए, ये पालकों के समक्ष बड़ी चुनौती है।

“In every adversity lies the opportunity” प्रत्येक समस्या से अवसर भी जुड़ा हुआ है, कहा जाता है। पालकों को समस्याओं और चुनौती के साथ अवसर भी मिलते हैं। पूर्व के समय सभी घरों में शिक्षा का भरपूर वातावरण था ऐसी बात नहीं’, हाँ, बच्चों को शाला में अवश्य भेजा जाता था! अनेक बालक स्वयं के परिश्रम तथा साहस से स्वयं की राह स्वयं ढूंढते हुए शिक्षित बनते थे। बच्चों के गुण विशेष की ओर विशेष ध्यान देकर उनके विकास के लिये योजनाबद्ध उपाय करना कम ही दिखाई देता था! आज का दृश्य बदला हुआ है। पालक सभाओं में उपस्थित होने वाले पालकों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। यह एक महत्वपूर्ण सफलता है। अभी और बहुत कुछ प्राप्त करना है। आजकल का समय अवसर प्राप्ति का समय है। पूर्व समय में अवसर अल्प मात्रा में होने से जानकारी नहीं मिलती थी। आज का दृश्य भिन्न प्रकार का है। विविध अवसर और क्षेत्रा बालकों को आकर्षित कर रहे हैं। शिक्षित और जागरुक पालक यदि आस-पास देखें तो अनेक क्षेत्रा और अवसर निश्चित ही दिखाई देंगे!

विविध विषयों के विशेषज्ञ मार्गदर्शक आज उपलब्ध हैं। शाला के शिक्षकों की मर्यादा है परन्तु सलाहकार विशेषज्ञ की सहायता से बच्चों की समस्याएं जानकर, समझकर उसे हल करने की सुविधा आज उपलब्ध है। बच्चों के व्यवहार और अध्यापन के लिए बाधक होने वाली विविध प्रकार की बाधाएं तज्ञ व्यक्तियों की सहायता से दूर कर सकते हैं। यह एक ‘सकारात्मक-बिंदु’ (Plus Point) है।

ज्ञान का विस्पफोट बड़ी मात्रा में हो रहा है। दुनिया की हर जानकारी कोने-कोने से प्राप्त करने की सुविधाएं हैं। घर बैठे ही उपयुक्त जानकारी बिना मूल्य प्राप्त करने की सुविधा है। इस जानकारी का सही उपयोग कहाँ, कैसे और कितना करें, यह विवेक, कौशल्य पर निर्भर करता है। शाला से और घर से, शिक्षकों और पालकों ने बच्चों में विवेक और कौशल्य किस प्रकार विकसित किया जाए, इसकी व्यवस्था और जिम्मेदारी रखना आवश्यक है।

बच्चों की रुचि, झुकाव पहचानने हेतु अनेक प्रकार के परीक्षण उपलब्ध हैं। मनोवैज्ञानिकों की सहायता ले सकते हैं। इन सभी बातों का उपयोग कैसे करें, इस हेतु विचार और दृष्टि आवश्यक है। शालेय शिक्षा के लिये पूरक अनेक बातें आज इंटरनेट की सहायता से, गूगल की सहायता से आसानी से उपलब्ध हैं। विषय को सरल, रोचक और प्रभावी करने वाले अनेक साधन सहायतार्थ तत्पर हैं। साधनों की अपेक्षा ‘साधना’ महत्वपूर्ण होती है यह कदापि न भूलें!

जिनकी शिक्षा अधूरी रही अथवा आर्थिक परिस्थिति कमजोर हो, ऐसे बच्चों को दूरस्थ शिक्षा (Distant Education)  का लाभ मिल सकता है। स्वयं को ‘Update’ और  ‘Upgrade’ कर सकते हैं।

आज के समय में केवल डिग्री पर्याप्त नहीं हैं, पदवी के साथ विविध प्रकार के कौशल्य और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण होता है “Attitude” विजिगीषु वृत्ति (विजयी होने का भाव) और सकारात्मकता का पाया!

आज निरंतर शिक्षा आवश्यक है और वह संभव भी है। शिक्षा ग्रहण करने की ललक रखने वालों के लिये अनेक अवसर उपलब्ध हैं।

ऑल्विन टॉपफलर, अमेरिकन लेखक बड़े सुंदर और मार्मिक शब्दों में व्यक्त करता है –

“The literate of the 21st Century will not be those who cannot read and write, but those who cannot learn, unlearn and relearn.”

अर्थात् “इक्कीसवीं सदी में जिसे लिखना पढ़ना नहीं आता, वह अशिक्षित नहीं, अपितु जो सीख नहीं सकता, सीखा हुआ मिटाकर, आगे नहीं बढ़ता और नए उत्साह से आगे और नहीं पढ़ता, उसे ही अशिक्षित कहा जाएगा।”

जिन व्यक्तियों में अपनी बाधाओं, प्रश्न, समस्याओं, चुनौतियों आदि में से भी अवसर तथा मार्ग खोजने की क्षमता होती है, सामर्थ्य होता है वही व्यक्ति विजय के शिखर की ओर कदम बढ़ाने में सफल हो जाते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। आज के पालक और पाल्य को इसका अनुभव लेना होगा! सुयश अपना ही हो!

(लेखक शिक्षाविद् है और विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है।)

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