– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया,
इस माह का कई कारणों से हमारे लिये महत्व बढ़ गया है। प्रथम कारण तो यह कि इसी माह में हम ‘स्वदेशी सप्ताह’ मनाकर अपने स्वदेशी भाव को प्रकट करते हैं। दूसरा कारण है इसी माह में ‘संस्कृत दिवस’ आता है। यह संस्कृत दिवस इस कारण ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि शासन ने इस वर्ष अर्थात् 1999 को ‘संस्कृत वर्ष’ घोषित किया है। यानी इस माह में हम मना रहे हैं संस्कृत वर्ष का संस्कृत दिवस। और इसी माह में हम मनाते हैं ‘हिन्दी दिवस’ भी। ऐसा सुन्दर संयोग अनेक वर्षों के बाद आया है। हो सकता है आने वाले अनेक वर्षों तक ऐसा संयोग फिर न आए। इस माह में हम एक विचार अवश्य करें कि हमारी मातृभाषा संस्कृत जो कि भाषाओं की जननी मानी जाती है आज इतनी उपेक्षा की शिकार क्यों हो रही है? इसका मूल कारण एक ही दिखाई देता है कि आजकल कुछ मुठ्ठीभर लोग जो अपने आपको बुद्धिजीवी कहते हैं संस्कृत के सम्बन्ध में बार-बार यही कहते हैं कि – ‘संस्कृत एक मृत भाषा है’। कहते हैं ना कि बार-बार और जोर-जोर से बोले गए झूठ को भी लोग सच समझने लगते हैं। हमारे साथ भी यही हुआ है।
आज जबकि विश्व के वैज्ञानिकों ने यह स्वीकारा है कि कम्प्यूटर के लिए विश्व में सबसे अधिक सुविधा की कोई भाषा है तो वह संस्कृत है तब किसी और प्रमाण की क्या आवश्यकता है? अमेरिका के सभी बड़े कम्प्यूटर विज्ञानियों को संस्कृत का मोहताज होना पड़ा है। और जानती हो उन्हें संस्कृत सीखाने हेतु उज्जैन से स्व. श्री बापूराव वाकणकर वहां गए थे। आज विश्व हमारी ओर देख रहा है और हमारी क्या स्थिति है? हम हनुमानजी महाराज की तरह प्रगति के समुद्र किनारे बैठकर यह विचार कर रहे हैं कि इस समुद्र को लांघने की शक्ति किसमें है? हनुमान जी को तो जाम्बवन्त जी ने यह कहकर उनकी शक्ति याद दिला दी थी कि- “बाल समय रवि भक्ष लियो, तब तिनहुं लोक भयो अंधियारों।”
किन्तु हमें हमारी शक्ति याद दिलाने कोई आने वाला नहीं है। आओ हम स्वस्फूर्त प्रेरणा से स्वयं जागें और विदेशी भाषा, विदेशी संस्कृति, विदेशी उत्पाद आदि के पीछे दौड़ न लगाते हुए ‘स्व’ के प्रति गौरव का भाव जगाएं तभी सार्थक होगा हमारा ‘स्वदेशी सप्ताह’, ‘संस्कृत वर्ष’, ‘संस्कृत दिवस’ एवं ‘हिन्दी दिवस’ मनाना।
क्या हम यह कर सकते हैं?
अपने घर में संस्कृत सीखने के लिये उपयोगी कम से कम एक पुस्तक अवश्य रहे।
प्रतिदिन संस्कृत का एक वाक्य सीखें। सभी बच्चे संस्कृत सीखें-ऐसा प्रोत्साहन।
अपने परिचित विद्यालयों में संस्कृत पढ़ायें ऐसा प्रयास करें।
भाषणों में या बातचीत में संस्कृत सम्भाषण की आवश्यकता का प्रतिपादन करें।
संस्कृत में बोलने वालों को प्रोत्साहित/पुरस्कृत करें एवं उनका अभिनन्दन करें।
भेंट या पुरस्कार देते समय संस्कृत पुस्तकें भेंट करें।
शुभाशय पत्र संस्कृत में भेजे। निमंत्रण पत्र सरल संस्कृत-भाषा में छपवायें।
संस्कृत के प्रचार के लिये समयदान करें।
सांयकालीन संस्कृत कक्षाओं का प्रबन्ध करें।
संस्कृत हमारी सांस्कृतिक भाषा है – इस विषय का भी प्रचार करें।
घर में कार्यालयों में एवं विद्यालयों में कुछ अच्छे संस्कृत बोधवाक्य या व्यवहार वाक्य लिखकर रखें।
संस्कृत सीखना या बोलना यह अभिमान का/गर्व का विषय है ऐसा वातावरण बनायें।
संस्कृत-प्रचार के कुछ साहित्य (पोस्टर्स, स्टिकर्स आदि) मुद्रित करवायें।
दूरभाष पर ‘हेलो’ के स्थान पर ‘हरि:ओम्’ ‘जय श्रीराम’ ‘नमस्कार:’ आदि बालें।
- तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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