– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया!
नए सत्र का प्रारंभ हुआ। नई-नई पुस्तकें सामने आ गई। एक बार फिर युद्ध छिड़ गया, वर्ष भर के लिए आपकी स्मरण शक्ति और इन पुस्तकों के बीच। कई भैया-बहिन अक्सर बातचीत करते हैं, क्या करें याद तो बहुत करते हैं पर याद नहीं होता। कुछ भैया-बहिन तो हास्य के बीच पूछ बैठते हैं, क्या स्मरण शक्ति बढ़ाने की कोई औषधि मिलती है? स्मरण शक्ति की बात चल रही है तो मुझे याद हो आई है एक महामानव की जो सचमुच प्रकृति का अनूठा चमत्कार ही था।
आओ तुमको मिलवाएँ प्रसिद्ध क्रांतिकारी लाल हरदयाल से। सुनकर तुम भी दांतों तले अंगुली दबा लोगी कि क्या ऐसा भी हो सकता है? लाला हरदयाल के प्रारंभिक सभी परीक्षा परिणाम अत्यन्त ही उत्तम रहे थे। इसी से प्रभावित होकर तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने विशेष छात्रवृत्ति देकर उन्हें उच्च अध्ययन हेतु लन्दन भेजा। वहाँ भी उनकी प्रतिभा एवं स्मरण शक्ति का ऐसे सिक्का जमा कि विश्वविद्यालय ने भी उन्हें विशेष छात्रवृत्ति देना प्रारंभ कर दिया। किन्तु जिनके हृदय में माँ भारती की परतन्त्रता का शूल चुभ रहा हो भला वे अंग्रेजों की भीख कैसे स्वीकारते? और लालाजी ने अंग्रेजों से तीन छात्रवृत्तियों को लेने से इन्कार कर दिया। महाविद्यालय की स्थिति तो यह थी कि अंग्रेज प्रोफेसर लालाजी के सामने घिघीया कर कहते थे हरदयाल तुम कक्षा में आकर क्या करोगे? तुम्हें हो हमसे भी ज्यादा ज्ञान है। हमें तो तुमको पढ़ाते हुए भी संकोच होता है। तुम कहोगी ऐसी भी क्या स्मरण शक्ति थी उनकी कि गुरु भी घबराते थे।
ऐसा ही असमंजस एक बार क्रांतिकारी साथियों के बीच भी उभरा। तय हुआ आज लालाजी के दिमाग की परीक्षा ले ही ली जाए। लालाजी के आते ही योजनाबद्ध रूप से घेर लिया गया। कहा गया हम आपकी स्मरण शक्ति की परीक्षा लेंगे। लालाजी बोले ठीक है, किन्तु मेरे पास सिर्फ पाँच मिनट का समय है इसमें आप परीक्षा ले सकते हैं। परीक्षा का प्रकार भी स्वयं लालाजी ने ही तय किया। एक बन्धु को अपने सामने शतरंज बिछाकर बैठा लिया, एक बंधु से लगातार एक घंटी को बजाते रहने को कहा गया, एक बंधु को एक अरबी भाषा की पुस्तक तथा एक बंधु को एक अंग्रेजी भाषा की पुस्तक जोर से वाचन करने को दी गई। इतना ही नहीं एक बंधु से कहा गया – तुम कोई गणित का कठिन सवाल लेकर मेरे बाँए हाथ पर आ जाओ। लीजिए परीक्षा प्रारंभ हुई। पाँच मिनट पूर्ण हुए। परिणाम जानना चाहेंगे? लालाजी ने शतरंज में विपक्षी बंधु को शह और मात का मजा चखाया, दूसरे बंधु को यह बता दिया कि उसने पाँच मिनट में कितनी बार घंटी का ठोका बजाया था, तीसरे बंधु द्वारा पढ़ी गई अरबी पुस्तक का वाचन किया गया पूर्ण अंश अक्षरश: सुना दिया गया। निराश पांचवे बंधु भी नहीं हुए उनका वह बहुत कठिन सवाल भी बांए हाथ से हल हो चुका था। लालाजी तो उठकर चल दिए लेकिन सारे साथी तो मुंह खुला का खुला रखे बैठे रह गए।
तो देखा बिटिया इसे कहते हैं स्मरण शक्ति। हम इतना तो नहीं कर सकते किन्तु इतनी स्मरण शक्ति तो है कि परीक्षा में परिणाम श्रेष्ठतम रहें। आज ही अपने संपूर्ण विषय को समयानुसार मासिक विभाजन कर लो और प्रत्येक माह का याद करने का काम उसी माह में पूरा हो जाए यह प्रयास हो। और हाँ अंतिम एक माह पुनरावृत्ति के लिए जरूर छोड़ देना।
- तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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