पाती बिटिया के नाम-15 (वाह गुरु! राजगुरु)

 – डॉ विकास दवे

प्रिय बिटिया!

अधिकांशत: तो क्रातिकारियों और महापुरुषों के चित्रों को देखकर आप लोग अपनी कल्पनाओं में उनके व्यक्तित्व का अंदाजा लगा लिया करते हैं? क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में कल्पना करें जिनके चित्र भी बहुत कम उपलब्ध होते हैं और नाम अक्सर सुनते रहते हैं? एक ऐसा ही व्यक्तित्व है राजगुरु का। हाँ! तुम बिल्कुल ठीक सोच रही हो। मैं उन्हीं राजगुरु की बात कर रहा हूँ जिन्होंने 23 मार्च के दिन भगतसिंह तथा सुखदेव के साथ अपने जीवन की आहुति स्वतंत्रता के महायज्ञ में दी थी। माँ भारती का मस्तक भी इन ताजे अधखिले पुष्पों को अर्पण पाकर गौरव से ऊँचा हो गया था। क्या आप कल्पना कर सकती हो वे राजगुरु अपने निजी जीवन में कैसे रहे होंगे? अगर आप के मानस में कोई गंभीर व्यक्तित्व दिखाई दे रहा हो तो जरा ठहरो पहले एक प्रसंग सुन लो।

क्रांति का सूत्रपात हो चुका है। युवाओं में प्राणों के उत्सर्ग का जोश हिलोरे ले रहा है। अंग्रेजों के सिपाही हर समय मौत के फरीश्ते बनकर पीछे लगे हैं। नित्य ही छुपने के स्थानों को बदलना पड़ रहा था। कभी-कभी तो एक ही दिन में 2-3 स्थानों का परिवर्तन। एक बहुत ही पुराना खंडहरनुमा लंबा-चौड़ा मकान, प्रकाश के लिए बहुत कम व्यवस्था, रूखी सूखी रोटियाँ पानी-पी पीकर उतारते हुए भी चर्चा हो रही है पकवानों की और साथ ही हो रही है पंडित जी के हाथों के बने भोजन की तारीफ। अचानक एक व्यक्ति का हांफते हुए प्रवेश होता है। सूचना मिलती है कि इस स्थान की जानकारी भी किसी मुखबीर ने अंग्रेज सिपाहियों को दे दी है इसे भी तत्काल छोड़ कर जाना होगा। एकदम भाग-दौड़ मच जाती है। सामान समेटा जा रहा है कोई हुलिया बदलने में लगा है। अचानक किसी को ध्यान आया ‘अरे! राजगुरु कहां है?’

परिस्थिति की नाजुकता को देखते हुए सभी का चिन्तित हो जाना स्वाभाविक था। सभी कक्षों में देख लिया गया किन्तु राजगुरु का कहीं पता नहीं। अन्तत: यह सोचा गया अभी फिलहाल तो सामान समेट कर यहाँ से जाया जाए। पंडितजी ने सामान समेटते हुए शौचालय के सामने दीवार के सहारे रस्सी पर सूख रही धोती को जैसे ही खींचा तो चौंक पड़े। आवाज देकर सभी साथियों को बुलाया और देखकर हंसी का एक जोरदार ठहाका गूंज उठा। राजगुरु साहब दीवाल के सहारे खड़े-खड़े नींद का आनंद ले रहे थे। हंसी की आवाज सुनकर भी जब न जागे तो झींझोड़ कर उठाया गया सच! कैसी मस्ती, कैसी निश्चिन्तता।

सर पर मौत खड़ी हो और उस समय में भी नींद का आनन्द। धन्य है वे माताएँ जिनकी कोख में ऐसी आत्माओं ने जन्म लिया। तो अब जरा कल्पना करो कैसे रहे होंगे राजगुरु?

-तुम्हारे पापा

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)

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