गुरु नानक जी की उदासियों (आध्यात्मिक यात्राएँ) का अवदान

– डॉ कुलदीप मेहंदीरत्ता

Guru Nanak ji

विश्व की जनता को भक्ति का संदेश देने और उनका आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने के लिए परम संत श्री गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन काल में चार बड़ी यात्रायें की। कुछ विद्वान इन यात्राओं की संख्या पांच भी मानते हैं। परन्तु अधिकांश विद्वान चार यात्राओं पर एकमत हैं। गुरु नानक जी की दिव्य आध्यात्मिक यात्राओं को उदासी कहा जाता है। उदासी शब्द का सामान्य अर्थ या भाव विरक्तता या उपरामता से है। लेकिन इस उदासी को विशेष अर्थ है स्वयं विश्व से विरक्त होकर सामान्य जनता को परमात्मा से जोड़ने का प्रयत्न करना। पंजाबी साहित्य कोष के लेखक सुरेन्द्र कोहली ने लिखा है कि ‘उदासियों से भाव गुरु नानक देव जी की भिन्न-भिन्न यात्राओं से है’ जो उन्होंने सम्पूर्ण विश्व की जनता को आध्यात्मिक ज्ञान देने के लिए की थी।

ऐसा माना जाता है कि गुरु नानक जी दुनिया के दूसरे सबसे अधिक यात्रा करने वाले व्यक्ति हैं। उनकी अधिकांश यात्राएँ उनके साथी भाई मरदाना जी के साथ की गई थीं। उन्होंने सभी चार दिशाओं- उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण की यात्रायें की। वैसे ऐसे भी अभिलेख हैं जो इस बात का संकेत करते है कि गुरु नानक जी ने सबसे अधिक यात्राएं की थी । माना जाता है कि गुरु नानक जी ने 1500 से 1524 की अवधि के मध्य दुनिया की अपनी पांच प्रमुख यात्राओं/ उदासियों में 28,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की थी। पैदल ही की जाने वाली इन यात्राओं में लगने वाले समय और श्रम की महत्ता अपने आप में विशिष्ट है। आधुनिक वातावरण में भी इतना श्रमसाध्य कार्य करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

इन उदासियों से पहले सन 1499 में गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर से लाहौर चले गये। यहाँ से कुछ दिन बाद भाई लालो के यहाँ सैय्य्दपुर या सैदपुर ठहरना हुआ। भाई लालो एक अच्छे स्वाभाव का और ईमानदारी से जीवन-यापन करने वाला गरीब बढई था। उसी गाँव में एक बड़े जमींदार मलिक भागो ने भी गुरु नानक देव जी को भोजन का निमन्त्रण दिया। गुरु जी ने गरीब लालों के यहाँ का रुखा-सूखा भोजन स्वीकार किया। जब पूजनीय गुरु जी से भागो का निमन्त्रण अस्वीकार करने का कारण पूछा गया तो उन्होंने लालो के घर से सूखी रोटी और भागो के घर से हलवा-पूरी मंगवाई। अपने अलग-अलग हाथों में सूखी रोटी और हलवा-पूरी लेकर निचोड़ दी। लालो की रोटी से दूध निकला और भागो वाली मुट्ठी से रक्त। उपस्थित हजारों लोग आश्चर्यचकित रह गये। गुरु नानक देव जी ने इस प्रकार वहां के लोगों को परिश्रम कर भोजन कमाने की प्रेरणा दी।

इसके बाद गुरु नानक देव जी ने अपनी आध्यात्मिक यात्रायें प्रारम्भ की। इन उदासियों में श्री गुरु नानक देव जी ने लगभग चौबीस वर्ष में दो उपमहाद्वीपों के 60 से अधिक प्रमुख शहरों की पैदल यात्रा की। आज हम उस दृश्य की कल्पना कर चकित और आह्लादित हो सकते हैं, परन्तु उस समय यह कितना दुष्कर कार्य रहा होगा, इसकी कल्पना मात्र भी बहुत कठिन जान पड़ती है। इन उदासियों के दौरान गुरु नानक देव जी ने अठाईस हजार किलोमीटर से भी अधिक की यात्रा की। उनकी उदासियों का सार एक ही था कि समाज में मौजूद भेदभाव, छुआछुत, जात-पांत और अंधविश्वास आदि को खत्म कर समाज में परस्पर सद्भाव, समानता और समरसता कायम हो और व्यक्ति इमानदारीपूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए आध्यात्मिक साधना करे। अध्ययन की सुविधा के लिए इन उदासियों से जुड़े स्थानों को आधुनिक समय के स्थानों के नाम से परिचित कराने के कार्य खालसा कॉलेज अमृतसर के सिख हिस्ट्री रिसर्च सेंटर के प्रभारी डॉ. कुलदीप सिंह ढिल्लों ने किया है।

पहली उदासी : 1500-1506 ई.
‘गुरु जी अपनी पहली यात्रा के दौरान पंजाब से हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल, सिक्किम, भूटान, ढाका, असम, नागालैंड, त्रिपुरा, चटगांव से होते हुए बर्मा (म्यांमार) पहुंचे थे। वहां से वे ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और हरियाणा होते हुए वापस आए थे।’

दूसरी उदासी: 1506-1513 ई.
‘दूसरी यात्रा में गुरु जी पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान), सिंध, समुद्री तट के इलाके घूमते हुए गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु के तटीय इलाकों से होते हुए श्री लंका पहुंचे और फिर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा होते हुए वापस आए।’

तीसरी उदासी: 1514-1518 ई.

‘तीसरी यात्रा में गुरु जी हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तिब्बत (सुमेर पर्वत का इलाका) होते हुए लेह-लद्दाख, कश्मीर, अफगानिस्तान (काबुल), पश्चिमी पंजाब होते हुए वापस आए थे।‘ माना जाता है कि चीन भी गए थे, इसके समर्थन करने के लिए साक्ष्यों का संग्रह चल रहा है।

चौथी उदासी: 1519-1521 ई.
‘गुरु नानक देव जी अपनी चौथी यात्रा में मुल्तान, सिंध, बलोचिस्तान, जैदा, मक्का पहुंचे और मदीना, बगदाद, खुरमाबाद, ईरान (यहां उनके साथी भाई मरदाना का निधन हो गया था), इसफाहान, काबुल, पश्चिमी पंजाब से होते हुए करतारपुर साहिब वापस लौटे थे।‘ ऐसा कहा जाता है कि सीरिया में बाबा फ़रीद की मस्जिद के पास ‘वली हिंद की मस्जिद’ नाम की एक मस्जिद है। माना जाता है कि अफ्रीका महाद्वीप गए थे, इसके समर्थन करने के लिए साक्ष्यों का संग्रह चल रहा है।

(पांचवीं यात्रा- इस यात्रा की सामान्यतया पुष्टि नहीं की जाती है, लेकिन डॉ. कुलदीप सिंह ढिल्लों के शोध के मुताबिक, 5वीं यात्रा में गुरु जी ने 2334 किलोमीटर का सफर किया था।) इस विषय पर अधिक शोध किये जाने की आवश्यकता है।

विदेशों में गुरु नानक देव जी के स्मारक :
तुर्की में गुरु नानक देव जी का एक स्मारक बना हुआ है। इस स्मारक पर अरबी / फ़ारसी / तुर्की भाषाओं मे (गुरुमुखी लिपि में लिप्यंतरित) ਜਹਾਂਗੀਰ ਜਮਾਂ ਹਿੰਦ ਲਤ ਅਬਦ ਅਲ ਮਾਜੀਦ ਨਾਨਕ (जहाँगीर जामन हिंद लाट अल मजीद नानक) लिखी गई है, जिसका पंजाबी में अर्थ है: जमाने दा मालिक, हिन्द दा बंदा , रब दा नानक, जिसका हिन्दी मे अर्थ है आज के भगवान, भारत के निवासी, भगवान के आदमी नानक। इस स्मारक पर आगे भी काफी लंबी पंक्तियाँ लिखी हुई हैं परन्तु काल के प्रभाव और देखभाल के अभाव के कारण शिलालेख पर लिखी सामग्री अब सुपाठ्य नहीं है। हालाँकि, स्मारक की सबसे निचली पंक्ति में 1267 हिजरी (1850 CE) की तारीख़ स्पष्ट रूप से पठनीय है। इसके बारे में आगे शोध किया जाना अत्यंत आवश्यक है जिससे आने वाले समय में सारा विश्व गुरु नानक देव जी और उनकी शिक्षाओं से अधिक परिचित हो सकेगा।

तुर्की के बोस्पोर्स के किनारे स्थित सार्वजनिक पार्क में स्थित नानक जी का स्मारक

बगदाद के पीर बहलोल से मिलना और स्मारक का निर्माण
‘मदीना की यात्रा करने के बाद, गुरु नानक देव जल्द ही बगदाद पहुंचे और शहर के बाहर मरदाना के साथ एक मंच संभाला। गुरु नानक देव जी ने प्रार्थना करने के लिए लोगों का आह्वान किया, उन्होने अपनी प्रार्थना में मुहम्मद अल रसूल अल्लाह को हटाकर उसके बदले सतनाम शब्द का प्रयोग किया जिस पर पूरी आबादी खामोश हो गई और उग्र होकर गुरु नानक जी को एक कुएं में धकेल दिया और पत्थरों से मारा गया। इतनी पत्थरबाजी के बाद गुरू नानक जी कुएं से बिना किसी चोट के निशान के बाहर निकल आए। उन्हे सकुशल वापस निकलते देखने के बाद इराक के अस्थायी और आध्यात्मिक नेता, पीर बहलोल शाह ने उन्हे पीर दस्तगीर और अब्दुल कादिर गिलानी कहकर पुकारा, क्योंकि उन्हे समझ में आ गया था कि गुरु नानक जी हिन्द (भारत) के लिए पवित्र और सिद्ध संत थे और उन्होने गुरु नानक जी को आध्यात्मिक चर्चा के लिए आमंत्रित किया।

पीर बहलोल शाह, जो एक ईरानी थे, लेकिन इराक में आकर बस गए थे, उन्होने गुरु नानक से तीन सवाल पूछे और तीनों का समुचित उत्तर पाने के बाद उन्होने गुरु नानक जी के साथ किए गए दुर्व्यवहार के लिए स्थानीय लोगों को क्षमा करने और लंबे समय तक रहने की अपील की। उनके आग्रह पर गुरु नानक जी 17 दिनों तक रहे। गुरु नानक जी ने अपने इस प्रवास के दौरान पीर बहलोल के बेटे के साथ पारलौकिक दुनिया की (सूक्ष्म यात्रा) की। दोनों सेकंड के एक अंश में हवा में अंतर्ध्यान हो गए और जब वापस लौटे तो पवित्र भोजन का एक कटोरा धरती पर लाए। आज विज्ञान भी सूक्ष्म यात्रा पर काम कर रहा है। गुरु नानक जी के वहाँ जाने के बाद, बहलोल ने उनकी याद मे एक स्मारक खड़ा किया जहाँ गुरुनानक जी बैठते थे और प्रवचन देते थे। कुछ समय बाद मंच के ऊपर एक कमरे का निर्माण किया गया, जिसमे शिलालेख के साथ एक पत्थर की पटिया लगाई गई। 2003 के युद्ध के दौरान इस स्मारक को पूरी तरह से उजाड़ दिया गया।’

गुरु नानक देव जी ने अपनी इन उदासियों या आध्यात्मिक यात्राओं के बाद स्थायी रूप से करतारपुर को अपना स्थान बना लिया। इन धार्मिक यात्राओं में गुरु नानक देव जी का विभिन्न धर्मावलम्बियों और विद्वानों से सम्वाद तथा विचार विमर्श हुआ। आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से उलझे सामान्य जन को उन्होंने ‘नाम जपो, कीरत करो और वंड चखो’ को महामंत्र प्रदान किया। प्रति दिन ईश्वर का नाम जपो, मेहनत करके ईमानदारी से कमाओ और अर्जित की गई वस्तुओं का साथ मिलकर उसका उपभोग करो – वास्तव में मनुष्य समाज उनके इस महामंत्र को अपने जीवन में उतार ले तो समाज में हिंसा, लड़ाई-झगड़े, ऊंच-नीच आदि भेदभाव समाप्त हो जायेंगे।

इस प्रकार गुरु जी ने अपनी आध्यात्मिक यात्राओं के जरिये विभिन्न स्थानों पर समाज के विभिन्न वर्गों को मानवता के एकसूत्र में पिरोने का अद्भुत और अकल्पनीय प्रयास किया। गुरु नानक देव जी के दर्शनों से कभी पवित्र हुए इन स्थानों को आज गुरु नानक देव जी के आदर्शों पर चलने की महती आवश्यकता है। आतंकवाद और सामाजिक कटुता से जूझते दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया और अरब देशों के नागरिकों के लिए गुरु नानक देव जी के उपदेश आज और अधिक प्रासांगिक हैं।

[1]गुरु नानक देव जी की आध्यात्मिक यात्राओं का प्रदेशवार विवरण – स्त्रोत  https://www.bhaskar.com/punjab/jalandhar/news/journeys-of-shri-guru-nanak-dev-ji-01322545.html

[1] https://www.sikhiwiki.org/index.php?title=Guru_Nanak_in_Turkey&oldid=117261

[1] https://www.sikhiwiki.org/index.php/Guru_Nanak_in_Turkey

[1] https://www.speakingtree.in/allslides/divine-journeys-of-guru-nanak-ji/63424 से गूगल द्वारा अनुदित

(लेखक चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय, भिवानी (हरियाणा) में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष है।)

और पढ़े : श्री गुरु नानक देव जी के त्रि-सूत्री सिद्धांत – प्रकाश उत्सव विशेष

 

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