नई संवत् की नई भोर

✍ गोपाल माहेश्वरी

नवल और किसलय नववर्ष की तैयारियां करने में जुटे थे। हुआ यह कि अनके पिताजी का स्थानांतरण होने से वे इस महानगर में नए-नए ही आए थे। लेकिन यहां के नए विद्यालय में अपनी मिलनसारिता और पढा़ई में कुशल होने से शीघ्र ही अपने सहपाठियों में प्रिय हो गए थे। पिताजी शासकीय शिक्षक थे पर विद्या भारती के विद्यालय में व्यवस्थापक रहे इसलिए दोनों बच्चों ने परिचय को संगठन में बदल लेने की कला बचपन से ही उतनी ही सहजता से सीख ली थी जितनी सहजता से किसी कुम्हार का बेटा दिये बनाना सीख जाता है या माली का बेटा पौधा लगाना।

मित्र मंडली ये दोनों जो कहें वह करने को तैयार रहती। जनवरी में नवल-किसलय आए और फरवरी में बसंत पंचमी पर तो ‘सरस्वती बाल मंडल’ नामक एक लघु संगठन ही घोषित हो गया।

उस दिन कैसा अपूर्व उत्साह था जब पांच-सात बालक और छः-सात बालिकाएं केसरिया सफेद भारतीय वेश में सारे विद्यालय के लिए उत्सुकता और आकर्षण का केन्द्र बने हुए थे। सरस्वती पूजन करके सबने विद्यालय के इस नए बाल संगठन का परिचय कराया। उद्देश्य बताया कि उनका यह संगठन भारतीय सनातन संस्कृति से अपने विद्यालय परिवार अर्थात् प्रधानाचार्य, अभिभावक, विद्यार्थी यहां तक कि सेवक सेविकाओं को भी परिचित करवाने का प्रयत्न करेंगे। सभी ने तालियों से उनका स्वागत किया।

छात्र संसद की अध्यक्ष बहिन सारिका ने पूछा “क्या आपका संगठन हम सबके लिए खुला होगा या केवल आपके चुने हुए सदस्य ही इसमें रहेंगे।”

किसलय सारिका से कक्षा व आयु दोनों में छोटा था वह विनम्रता से बोला “दीदी! सबका सहयोग सबका साथ तो हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी पहचान है। हमारा विद्यालय परिवार भी एक तरह से हमारा छोटा समाज ही है या हमारे राष्ट्र का छोटा-सा रूप, छोटे-बडे, हर जाति वर्ग, आयु के सदस्य इसमें आपस में प्रेम व सहयोग करके रहते ही हैं तो कोई भी कार्य सबको साथ लेकर ही होगा। फिर आप तो हमारी छात्र संसद की चुनी हुई प्रमुख हैं आपके और शेष सभी के भी सुझाव, सहयोग हमें मिलते रहें यही निवेदन है पर आग्रह यही कि आपके सुझावों में भारतीय सांस्कृतिक पक्ष अवश्य प्रबल रहे। हमें केवल मनोरंजन के लिए या कार्यक्रम भर करने के लिए कार्यक्रम नहीं करना है।”

सभी ने फिर तालियां बजाई। अब नवल बोला “हमारा पहला आयोजन होगा नववर्ष पर जो अगले कुछ ही दिनों बाद आने वाला है।” जाने क्यों पर सब हँस पड़े। नवल भी पलभर सिटपिटाया क्या गलती हो गई जो सब हँस पड़े।

सुरभि भी छात्र संसद की सदस्य थी वह खड़ी हुई और मानो नवल की चूक ठीक कर रही हो ऐसे स्वर में बोली “नववर्ष कुछ दिनों पहले ही आरंभ हो चुका है नवल! आधीरात तक कितना धूमधड़ाका डीजे, डांस सब चला था पर ..” फिर जैसे कुछ याद करते हुए नाटकीयता से बोली “हाँ याद आया नवल किसलय तुम लोग तो बाद में एडमिट हुए हो पर” वह मुंह पर हाथ रखे हँसते हुए उपहास से बोली “तुम्हारी ये केसरिया पलटन तो जानती है इसने नहीं बताया तुम्हें!!”

सारी सभा में सन्नाटा पसर गया। सुरभि का ऐसे बात करना सबको चुभा लेकिन न्यू ईयर पार्टी की वही संयोजक थी उसी का घमंड इस हिंदू माँ की ईसाई कन्या के मुख से फूट रहा था।

किसलय ने बात संभालने का प्रयास किया “सुरभि दीदी!” वह कुछ कहता इसके पहले ही सुरभि के अहंकार ने किसलय की शालीनता को मानो जोरदार टक्कर मारने का प्रयत्न करते हुए टोका “दीदी दीदी क्या होता है सुरभि नाम है मेरा सुरभि फर्नांडिस याद रखना।”

“जी” वह विवाद के स्थान पर मौन को चुनकर बैठ गया। सारिका ने बात संभाली “ठीक है आप लोगों के नए संगठन को शुभकामनाएं। हम अभी तो सरस्वती पूजन करते हैं।” सुरभि मुंह बनाकर बिना पूजा किए ही चल दी। आयोजन के बाद नववर्ष पर खुसर-पुसर करते हुए सब कक्षाओं में चले गए।

कुछ ही दिनों में सबकी उत्सुकता बढ़ाने वाली गतिविधियां आरंभ हो चुकी थीं। सरस्वती बाल मंडल के सहयोगी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे थे। ‘नव संवत्सर मंगलमय हो’, ‘गुढ़ी पाडवाची शुभेच्छा’, ‘सनातन नववर्ष ५१२६ का स्वागत है।‘, ‘विक्रम संवत् २०८१ का स्वागत’ जैसी शुभकामना पट्टियां तैयार होने लगी तो सब जाने लगे कि उस दिन किसलय ने गलती से कुछ कह दिया था। कुछ नया होने वाला है। चर्चाएं घरों तक भी पहुंची और चर्चाएं ही क्या सुंदर अक्षरों में हाथों से हिंदी, संस्कृत, मराठी, गुजराती, बांग्ला आदि भारतीय भाषाओं में लिखे शुभकामना सह आमंत्रण पत्र भी घरों में पहुंच गए।

फिर चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा की वह सुबह कितनी अद्भुत अनुभूति लेकर आई। सूर्योदय के थोड़ा पहले ही सब बच्चे अपने-अपने परिवार, जी हाँ परिवार अर्थात् दादा-दादी, चाचा-ताऊ, भाई-बहन सब भारतीय वेशभूषा, टोपी-पगड़ी आदि पहने आते जा रहे थे। द्वार पर तिलक लगाया। विद्यालय के विशाल प्रांगण को केसरिया  पताकाओं, आम व केले के पत्तों, पुष्पमालाओं से सजाया गया था। एक ओर सजे मंच पर पंक्तिबद्ध भैया धोती-कुर्ते और बहिनें साड़ी में सजेधजे खड़े थे। उनके हाथों मे तांबे के चमचमाते कलश थे। कुछ भैया-बहिन शंख लिए खड़े थे तो कुछ ढोलक। फिर जैसे ही सूर्य की पहली किरण फूटी नवल किसलय ने गंभीर पर बहुत मधुर स्वरों में श्लोक पढ़ा –

मंगलम् भगवान सूर्यो, मंगलं शुभ कारक:।

मंगलं सविता देव: कुर्यात् सर्वस्य मंगलम्।।

एक साथ कलशों से धाराएं गिरने लगीं सूर्य को सामूहिक अर्घ्य प्रदान करने का दृश्य सभी दर्शकों में अद्भुत आनंद संचरित कर रहा था। शंखध्वनि से वातावरण सात्विक रोमांच से भर उठा। तभी राग भैरवी के मधुर स्वरों में एक राष्ट्रीय जागरण के भावभरी प्रभाती के स्वर वातावरण में तैर गए। कितने मधुर ओज से भरे शब्द थे –

जाग जगत जागरण जगा अब, गयी विभावरी जाग मना।

देख गगनतन विभावदन का ज्योतिर्मान वितान तना।।

फिर मंच से बच्चे उतरे और अपने माता-पिता और गुरुजनों को नवसंवत्सर की शुभकामना देते हुए चरणस्पर्श करने लगे। कई माता-पिता की तो आंखें छलक उठीं आनंद से। जिन बच्चों के दादा-दादी आए थे माता-पिता उनके भी चरण छुए बिना न रह सके और यह कैसा सुखद भावप्रवाह फैला कि अपने ही नहीं अपने जैसे सब बड़ों के पैर छुए जा रहे थे। हृदय की गहराइयों से निकलीं शुभाशीषों की सहस्रधाराएं बह चलीं चरण छूने वालों पर।

फिर जैसे मंच पर किसी कुशल कलाकार द्वारा दृश्य बदलकर नया कौतुक उत्पन्न कर दिया गया हो सरस्वती बाल मंडल के स्वयंसेवकों ने उपस्थित अभिभावकों को अलग अलग-अलग समूहों में बाँट लिया हर समूह एक अलग कक्ष में ले जाया गया। कक्षों में मनमोहक झांकियां थीं। एक कक्ष में चार मुखों वाले ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना करते दिखाया गया था, अगले कक्ष में धरती माँ का जन्मदिन मना रहे थे अंतरिक्ष के ग्रह नक्षत्र तारे, किसी में माँ नवदुर्गा तो किसी में राजा विक्रमादित्य की नवरत्न सभा में कालिदास, वराहमिहिर, शंकु, बाणभट्ट, वररुचि, घटकर्पर, अमरसिंह, धन्वंतरि, वैतालभट्ट विराजमान थे। अधिकतर दर्शक इनके नाम नहीं जानते थे। मंडल के सदस्य इनका धाराप्रवाह रूप से परिचय देकर सबको चकित कर रहे थे। एक कक्ष में भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक दृश्य जीवंत था तो दूसरे में धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हो रहा था। एक बड़े कक्ष में ऋतुराज वसंत की छटा सजाई सजाई थी। एक कक्ष में महर्षि दयानंद को आर्यसमाज की स्थापना करते दिखाया गया था। एक कक्ष में बालक केशव का जन्मोत्सव मनाया जा रहा था वही जन्मजात देशभक्त केशव जो बड़े होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक बने।

सारे दर्शक जैसे एक भव्य दिव्य अलौकिक लोक में घूम रहे थे। प्रदर्शनी से बाहर निकलने के द्वार पर नीम की पत्तियों के साथ मिश्री का प्रसाद बांटा जा रहा था साथ में मीठा-मीठा श्रीखंड। सबके मुंह सरस्वती बाल मंडल की अभिनव कल्पना की भूरि भूरि प्रशंसा कर रहे थे। आश्चर्य था कि दुपट्टे में मुंह छुपाए सुरभि भी इस समूह में थी, नवल-किसलय ने बढ़कर “मुंह मीठा कर लो दीदी!” कहकर श्रीखंड का दोना उसके हाथ में थमा दिया। वह धीरे से ‘सॉरी’ बोलते हुए दोनों हाथ में पकड़े आगे बढ़ गई फिर जाने क्या सोचकर एक अंगुली श्रीखंड चाटकर नवल-किसलय की ओर देख कर मुस्कुरा दी।

सरस्वती बाल मंडल द्वारा विद्यालय में संस्कृति बोध का नवयुग आरंभ हो चुका था।

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ बाल मासिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक है।)

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