पाती बिटिया के नाम-28 (आओ करें!)

 – डॉ विकास दवे

प्रिय बिटिया,

आज आपको दो घटनाएं सुनाने जा रहा हूँ। घटनाएँ हैं तो छोटी-छोटी किन्तु अपने में बहुत बड़े संदेश छुपाए हुए है।

प्रथम घटना कुछ इस प्रकार है सेना के कई जवान एक विशाल लकड़ी के लट्ठे को उठाने का प्रयास कर रहे थे। लट्ठा थोड़ा ऊपर होता और हाथ से छुट जाता। उनका अफसर उन पर बार-बार क्रोधित हो रहा था। वह चाहता था कि शीघ्रता हो। तभी उधर से एक नौजवान घुड़सवार गुजरा उसने जब इस स्थिति को देखा तो मुस्कराया, घोड़े से नीचे उतरा और आकर अफसर से बोला – ‘दूर खड़े रहकर चिल्लाने से कुछ नहीं होगा मेरे भाई यह काम ऐसे होगा।’

इतना कहकर वह युवक उन सैनिकों से हँसते हुए बोला – ‘मित्रों यह लट्ठा अकेला है और हम सब इतने सारे लोग हैं, कहीं ऐसा न हो कि यह अकेला लट्ठा अपने आपको हम सबसे बलवान समझने लगे।’ सारे सिपाही इस मजाक पर हँसे और एक जयकार के साथ लट्ठा सिर से ऊपर उठ गया। तीन घण्टे से जहाँ का तहाँ रुका कार्य कुछ सैकण्डों में सम्पन्न हो गया। बाद में जब उस अफसर को पता लगा कि वह युवक और कोई नहीं उनका सेनापति जार्ज वाशिंगटन था तो उसका शर्म से सर झुक गया और सिपाही गौरवान्ति हो उठे।

यह भी पढ़ें : पाती बिटिया के नाम-27 (न दैन्यं, न पलायनम्)

यही वाशिंगटन जब अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो उन्होंने एक बार अपने कुछ मित्रों को भोजन पर तीन बजे आमंत्रित किया। साढ़े तीन बजे अचानक सैनिक कमाण्डरों की बैठक तय की गई। नौकर चूँकि उनकी समय पाबंदी से परिचित था इसलिए ठीक तीन बजे टेबल पर भोजन लगा दिया। मेहमान तो एक भी नहीं आ पाया था लेकिन वाशिंगटन ने ठीक तीन बजे भोजन प्रारम्भ कर दिया। पन्द्रह मिनिट बाद जब मित्र लोग आएं तो उन्हें देखकर बुरा लगा कि उनकी भोजन हेतु प्रतीक्षा नहीं की गई।

खैर … वे भी भोजन करने बैठे लेकिन यह क्या? जार्ज वाशिंगटन उठे और हाथ धोकर बैठक के लिए चल दिए। मेहमानों को तो मानों साँप सूंघ गया। लेकिन अगले ही दिन उन्हें पता लगा कि यदि जार्ज को भोजन के कारण विलम्ब हो जाता तो अमेरिका के एक भाग में विद्रोह हो जाता। समय की पाबंदी से ही जन-धन की बड़ी हानि होने से बच गई। अब मित्रगण माफी मांगने के अलावा और कर भी क्या सकते थे?

दोनों घटनाएं हमें दो विशिष्ट प्रकार की सीख देती हैं। पहली तो यह कि यदि आप नेतृत्व करना चाहते है तो ‘जाओ करो’ का मन्त्र आपको विफल कर देगा अत: सदैव ‘आओ करें’ का मंत्र ही उपयोग में लाएं। और दूसरी सीख तो स्पष्ट है ही यदि आप अपने जीवन की व्यवस्था, परिवार, समाज और राष्ट्र की उन्नति चाहते हैं तो समय का कड़ाई से पालन करिए यही मंत्र है सफलता के।

  • तुम्हारे पापा

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
और पढ़े : पाती बिटिया के नाम-26 (ये कहाँ आ गए हम?)

One thought on “पाती बिटिया के नाम-28 (आओ करें!)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *