✍ गोपाल माहेश्वरी
देश में रह देश के जो शत्रुओं के मित्र हैं।
उन शत्रुओं को दण्ड देना कर्म पुण्य पवित्र है।
कोई विदेशी शत्रु किसी देश को तब तक पराधीन नहीं बना सकता जब तक कि अपने तुच्छ स्वार्थों से घिरे कुछ पतित लोग उन्हें अपने ही देश के विरुद्ध सहायता नहीं पहुँचाते हैं। अंग्रेज संख्याबल में इतने तो नहीं थे कि केवल अपने बल पर भारत जैसे विशाल राष्ट्र को अपने अधीन करने का साहस करते। उन्हें सफलता मिली क्योंकि वे इस देश में ही कई कमजोर कड़ियाँ खोज पाए। यह घटना एक ऐसे ही पापी को दण्ड देने की है। पापी इसलिए कि देशद्रोह से बड़ा पाप कोई होता ही नहीं है।
हाँ, वह पापी था महाराष्ट्र के जलगांव के पास स्थित शेन्दुर्णी गाँव का पाटिल। गाँव का पटेल वैसे तो गाँव का पिता समान पालक संरक्षक होता है लेकिन यह तो अंग्रेजों की कृपा पाने व धन कमाने के लालच में गाँव और गरीब गाँववासियों को केवल लूटता था। फसल कैसी भी हो, लगान वसूली के लिए गाँव के गरीब किसानों के घर में खाने को दाने न हों, तो भी उसे दया नहीं आती। धन नहीं तो अनाज, अनाज न हो तो पालतू पशु, पशु न हो तो घर, खेत सब कुछ लूटते समय उसे लज्जा भी नहीं आती। विवश किसानों की बहू-बेटियाँ तक बंधुआ मजदूर बना ली जाती थीं। ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा मिला तो सारा देश स्वाधीनता की आशा से उठ खड़ा हुआ। इसमें एक आशा यह भी थी कि अंग्रेजी राज्य जावे तो पटेल जैसे दुष्टों से भी मुक्ति मिले क्योंकि प्रशासन का सहयोग और कृपा से इनके अमानवीय अत्याचार सारी सीमाएँ पार कर चुके थे। शेन्दुर्णी के सत्याग्रही मिश्रीलाल जम्बर अभी पुलिस के हाथ न आए थे। वे जनता के बीच इन भावों को व्यक्त कर जनजागरण करते घूम रहे थे।
10 अगस्त 1942 शेन्दुर्णी के डाकघर पर तिरंगा लहराने की योजना बनी तो 16 साल का सुखलाल गूजर बोल पड़ा “देश को अंग्रेज लूटते हैं और गाँव को उनके पिट्ठू पटेल। क्या उसे सबक सिखाना जरूरी नहीं है?” मिश्रीलाल जी उससे सहमत हुए। ग्रामीणों में जोश भर गया। पटेल से परेशान न हो ऐसा कोई था ही नहीं गांव भर में। निश्चित हुआ डाकघर पर तिरंगा, फिर पटेल के घर का घेराव।
गाँव के भीखालाल जी गूजर का बेटा सुखलाल देशभक्ति के संस्कारों से ओतप्रोत था। वह सभा, सत्याग्रहों, जुलूसों, प्रदर्शनों में आगे-आगे भाग लेता, सूचनाएँ पहुँचाता। उसे इन कामों में इतनी अधिक रुचि थी कि इनमें सक्रियता के कारण वह पढ़ाई पर भी इतना ध्यान न दे पा रहा था। वह अपना भविष्य गढ़ने से अधिक देश के भविष्य के लिए अधिक समर्पित था। इसी कारण वह 16 वर्ष का होने पर भी अभी सातवीं कक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर सका था। पढ़ाई में पिछड़ा था किन्तु देश सेवा में वह सबसे आगे था।
निर्धारित योजना सफल रही। डाकघर पर तिरंगा फहरा दिया गया। सुखलाल के नेतृत्व में सब उत्साह से भरपूर पटेल के घर की ओर बढ़ चले। पुलिस ने घर को चारों ओर से घेर रखा था। मिश्रीलाल जी सच्चे नेता थे। शेन्दुर्णी में आज के जुलूस का नेतृत्व सुखलाल को सौंप कर वे स्थानीय नेतृत्व को विकसित करना चाहते थे पर जब पटेल के घर की ओर बढ़ते ग्रामीणों पर पुलिस की गोलियाँ बरसने लगीं, तो सुखलाल को गोली लगते ही वे उसके सामने आ गए और गोलियाँ अपने सीने पर झेल गए। लेकिन यह प्रयास विफल हुआ। सुखलाल गूजर को गोली मर्मस्थान पर लगी। उसने वहीं अपने प्राण विसर्जित कर दिए। मिश्रीलाल जी भी घायल अवस्था में बंदी हुए और एक दिन बन्दीगृह से ही वे भी सुखलाल से मिलने स्वर्ग को चल पड़े।
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ बाल मासिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक है।)
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