– रवि कुमार
भिवानी की एक विद्यार्थी शाखा में नीतिश नाम के विद्यार्थी ने आना प्रारम्भ किया। नीतिश 11वीं कक्षा में विज्ञान संकाय का विद्यार्थी था। कक्षा 11, 12 और विज्ञान संकाय, अध्ययन का काफी दबाव विद्यार्थी पर रहता है। इसके सायंकाल शाखा के लिए एक घंटा निकलना कठिन होता है। इस कारण मन में जिज्ञासा हुई और उत्तर प्राप्त करने के लिए नीतिश से बातचीत हुई। नीतिश का उत्तर था – मेरा बड़ा भाई बिट्स पिलानी में इंजीनियरिंग का छात्र है। अभी से उसकी पीठ में दर्द रहने लगा है। इसका कारण ध्यान में आया कि वह कभी खेलता नहीं है और न ही उसने कभी शारीरिक व्यायाम किया, केवल पढ़ाई ही पढ़ाई की। कक्षा 10 तक मेरी दिनचर्या भी ऐसी ही रही। मैं नहीं चाहता कि मेरे साथ भी मेरे भाई जैसा हो यानि कम आयु में ही स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों से घिर जाऊं। इसलिए शाखा आने को मैंने दिनचर्या का अनिवार्य अंग बनाया है।
नीतिश के बड़े भाई जैसे प्रसंगों को हम अपने आसपास खोज सकते हैं। आजकल ऐसे प्रसंग काफी संख्या में इर्द-गिर्द दिखाई देते हैं।
स्वास्थ्य की दृष्टि से आहार जितना महत्वपूर्ण है, विहार भी उतना ही महत्वपूर्ण। आहार के साथ-साथ विहार भी ठीक रहा तो स्वास्थ्य अच्छा रहता है। ये विहार क्या है और इसका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, आइए जानने का प्रयास करते हैं।
विहार में मुख्यतः चार-पांच प्रकार के विषय आते हैं। ये विषय हैं – हमारी दिनचर्या, नींद-विश्राम, व्यायाम-खेल-शारीरिक, वायु व प्रकाश और चर्चा-संवाद। अस्त-व्यस्त दिनचर्या स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव डालती है। दिनचर्या के विषय में जब बात करते हैं तो सामने वाला उत्तर देता है कि इस भागदौड़ के जीवन में व्यवस्थित दिनचर्या के बारे में कैसे सोच सकते हैं। दिनचर्या के विषय में सोचने का अवसर ही नहीं मिलता, क्या करें? लेकिन व्यक्ति यह नहीं विचार करता कि अस्त-व्यस्त दिनचर्या का जब स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ना प्रारम्भ होता है तो उसी भागदौड़ के जीवन में से समय निकालकर लम्बा विश्राम करना पड़ता है, बार-बार चिकित्सक के पास भी जाना पड़ता है और लंबे समय तक औषधि भी लेनी पड़ती है। अस्त-व्यस्त दिनचर्या के विपरीत प्रभाव के कारण हमारी कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। ये सब न हो, अतः दिनचर्या को व्यवस्थित करने का भरपूर और बार-बार प्रयास करने की आवश्यकता है। दिनचर्या के बारे में कहा गया है – ‘व्यस्त रहो, मस्त रहो, अस्त-व्यस्त मत रहो।’
दिनचर्या में क्या व्यवस्थित करना – रात्रि सोने व प्रातः जागरण का समय, अवस्था अनुसार नींद के निर्धारित घंटे व दिन का विश्राम, भोजन-जलपान का समय, शारीरिक-व्यायाम-खेल का न्यूनतम समय, व्यावसायिक कार्य के घंटे और परिवार व मित्र मंडली में चर्चा संवाद। इन विषयों के लिए न्यूनतम कुछ बिंदु निर्धारित करने से दिनचर्या व्यवस्थित होती जाती है।
आजकल रात्रि में देरी से सोना व प्रातः देरी से उठना, ऐसा आम हो गया है। ऐसा विशेषकर नगरीय अंचल में तो दिखाई देता ही है। ग्रामीण आंचलों में भी कहीं-कहीं इसका प्रभाव दिखता है। वैसे तो शास्त्रों में ब्रह्ममूर्त (सूर्योदय से एक घंटा 36 मिनट पूर्व से अगले 48 मिनट तक) में जागरण के लिए कहा गया है। परंतु सूर्योदय से पूर्व तो जग ही जाना चाहिए। एक स्वस्थ मनुष्य को 6 से 7 घंटे की नींद अवश्य लेनी चाहिए। अधिक सोना भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। शिशिर व सर्द ऋतु में दिन में नहीं सोना स्वास्थ्य के लिए अहितकर होता है। वैसे नींद के लिए प्रकृति ने रात्रि ही बनाई है।
दूसरा विषय आता है – खेल-शारीरिक-व्यायाम। कहते हैं दिनभर में जितना समय हम खाने के लिए लगाते हैं न्यूनतम उतना समय शारीरिक-व्यायाम के लिए लगाना चाहिए। अवस्था अनुसार शारीरिक व्यायाम का प्रकार व समय योजित करना ठीक रहता है। विद्यार्थी काल में खेल दिनचर्या का अनिवार्य अंग हो, ऐसा स्वयं विद्यार्थी व अभिभावक को ध्यान रखना आवश्यक है। आजकल एक आयु (30-35 वर्ष) के बाद चिकित्सक सैर के लिए अवश्य कहते है। प्रतिदिन निर्धारित समय पर (प्रातः या सायंकाल) 30 से 60 मिनट की सैर करना स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है।
तीसरा विषय है – वायु व प्रकाश। हम यह सोच रहे होंगे कि वायु व प्रकाश का विहार के साथ क्या संबंध है। आजकल दिखाई देता है कि अधिकतर मनुष्यों में विटामिन डी की न्यूनता रहती है। मनुष्य में विटामिन डी की 80-90% पूर्ति सूर्य के प्रकाश से ही होती है। और आजकल मनुष्य सूर्य के प्रकाश से ही दूर भागता है। घरों की बनावट ऐसी होती है कि प्रकाश ठीक से नहीं आ पाता और मनुष्य का धूप के संपर्क में रहने का अभ्यास धीरे-धीरे कम हो गया है। कृत्रिम प्रकाश यानि ट्यूबलाइट में रहने का अभ्यास मनुष्य ने बना लिया है। मानव शरीर पंच महाभूतों से मिलकर बना है। इन पंच महाभूतों में से एक आकाश तत्व सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होता है। पंच महाभूतों में दूसरा तत्व है वायु। मानव शरीर को पर्याप्त मात्रा व शुद्ध रूप में आक्सीजन की आवश्यकता रहती है। हम शुद्ध वायु के सम्पर्क में कितना रहते हैं, उसी अनुपात के हमें शुद्ध वायु मिलेगी अन्यथा वायु विकारों से हम घिर जाएंगे। हम विचार करें कि शुद्ध वायु के संपर्क में रहने के लिए हम क्या प्रयास करते हैं? हमारे घर में बिना बाधा के शुद्ध वायु आ-जा सकती है या नहीं? नाक के अलावा शरीर के रोम छिद्रों से भी वायु शरीर में जाती है। और हम तंग व बिना हवादार कपड़े पहनकर ये मार्ग बंद रखते हैं। इसके बारे में भी विचार करना आवश्यक है।
मन स्वस्थ है तो शरीर भी स्वस्थ रहता है। मन में अस्वस्थता है तो उसका शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है। मन को स्वस्थ रखने के लिए महत्वपूर्ण है मन को खोल लेना। पारिवारिक सदस्यों एवं मित्रों के साथ अनौपचारिक चर्चा-संवाद से मन प्रसन्न रहता है। दिनभर की औपचारिक व्यावसायिक बातचीत से अलग चर्चा करने से मानसिक दवाब भी कम होता है और खाली अंतराल से अच्छे व नवीन विचार उत्पन्न होते रहते हैं।
व्यवस्थित दिनचर्या हमें स्वस्थ व निरोगी जीवन की ओर ले जाती है। इससे हमारी कार्यक्षमता तो बढ़ेगी ही, साथ ही हमारी उत्पादकता में भी वृद्धि होगी। व्यवस्थित दिनचर्या से मानसिक दृढ़ता निर्माण होने में भी सहायता मिलती है।
(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
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