पाती बिटिया के नाम-32 (देव पशु?)

 – डॉ विकास दवे

प्रिय बिटिया!

वैसे तो ‘पशु’ शब्द ही अपने आप में निम्रता का सूचक होता है किन्तु क्या जब भी आप किसी पशु का नाम लेते हैं आपको हृदय में तिरस्कार के भाव ही आते हैं? मेरा ख्याल है, नहीं। हमारी संस्कृति ही कुछ ऐसी है कि हमने पशु, पक्षी, नदी, पहाड़, हवा, पेड़ यानी सम्पूर्ण प्रकृति में ही ईश्वर के दर्शन किए हैं। शायद यही कारण है कि हमारे धर्म अवतारों पर एक दृष्टि डालें तो हम पाएंगे कि अधिकांश अवतारों ने किसी न किसी पशु योनि को ही कृतार्थ किया है। खैर… तुम कहोगी आज यह कौनसा विषय छिड़ गया? आज हम चर्चा कर रहे हैं एक अश्व की। यह अश्व कोई साधारण अश्व नहीं इसका नाम है ‘चेतक’। तुम बिल्कुल ठीक समझी यह है शूरवीर राणा प्रताप का चेतक। क्या तुम जानती हो चेतक राणाजी को मिला कैसे? आओ देखें –

राणाजी का दरबार सजा है। एक अरब देश का अश्व सौदागर आता है। राणाजी को प्रणाम कर कहता है – ‘महाराज! दो अश्व शावक विशेष रूप से आपके लिए लाया हूँ। इन्हें आप खरीद लें। दुनिया में इतने अच्छे अश्व आपको कहीं नहीं मिलेंगे। राणा जी ने सौदागर की गर्वोक्ति सुनकर कहा – ठीक है आप सिद्ध कर दें कि ये अश्व शावक सर्वश्रेष्ठ है।

एक बड़े मैदान में एक अश्व शावक के चारों पैरों को लौह श्रृंखलाओं से खुंटे गाड़कर बांध दिया गया। पास जाकर अचानक सौदागर अश्व शावक को उछाल भरने का इशारा करता है। आश्चर्य से सभी की आंखे फटी की फटी रह गई जब शावक ने पूरी ताकत लगाकर उछाल भरी, किन्तु परिणाम बहुत दर्दनाक था। शावक के चारों पैरों के खुर टूट कर लौह श्रृंखलाओं में ही बंधे रह गए और शावक कई फुट ऊपर उछल कर जमीन पर गिरा और सदा के लिये सो गया। राणाजी ने आँखों में पानी भरकर तुरन्त दूसरे शावक को गले से लगाया और पुचकारकर स्वयं साथ लेकर वहाँ से चल दिए।

यही दूसरा शावक महाराण प्रताप का प्रिय चेतक बना। कभी देश दर्शन यात्रा पर हल्दी घाटी जाओ तो आपको हल्दी घाटी की पीली मिट्टी का हर कण चेतक के गुण गाता महसूस होगा। जब आप उस ऊँचाई को देखोगी जहां से चेतक ने छलांग लगाई थी तो आश्चर्य कर उठोगी। जब चेतक की समाधि पर पहुँचोगी तो अनुभव करोगी आँखों में आँसू लिए चेतक को हमेशा के लिए विदा करते राणा प्रताप की भावनाओं को। वहाँ आप पाओगी कि राष्ट्रभक्ति की एक विद्युत तरंग आपकी नस-नस में दौडऩे लगी है। और यह सब होगा उस मूक प्राणी की राष्ट्र और अपने स्वामी के प्रति भक्ति एवं आत्मोत्सर्ग की भावना के कारण। आज जबकि हम झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, शिवाजी महाराज एवं राणा प्रताप का पुण्य स्मरण कर रहे हैं हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम उन मूक प्राणियों को भी याद करें जिनके सहयोग से हमारे महानायकों ने कई समर जीते। स्वार्थ का जीवन जीकर अज्ञात मरने वाले सैकड़ों मानव जीवन से श्रेष्ठ है इनकी साहस भरी मौत। आओ प्रेरणा लें इनसे और समर्पित करें श्रद्धा सुमन इन्हें भी।

  • तुम्हारे पापा

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)

और पढ़ें : पाती बिटिया के नाम-31 (शक्तिशाली बाल मन)

Facebook Comments

One thought on “पाती बिटिया के नाम-32 (देव पशु?)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *