पाती बिटिया के नाम-33 (गणपति बप्पा-मोरिया!!!)

– डॉ विकास दवे

प्रिय बिटिया!

लो गणेश चतुर्थी आ पहुँची। गणपति बप्पा मोरिया के नारों के साथ एक बार फिर लगातार दस दिनों तक अपने विद्यालयों में, बाजारों में, मोहल्लों में गणनायक गणेश जी की धूम मची रहेगी और साथ ही झाँकियाँ भी सजेंगी। आपने अक्सर प्रत्येक कार्यक्रम में सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा होते देखी होगी। कई बार आपके मन में यह प्रश्न भी उठता होगा कि आखिर तैतीस करोड़ देवताओं में गणेशजी की ही प्रथम पूजा क्यों होती है? इसकी भी बड़ी रोचक कथा है। आओ देखें आप जैसे नन्हें गणेशजी ने कैसे पाया प्रथम स्थान।

एक बार सभी देवताओं में इस बात को लेकर चर्चा चल पड़ी कि मंगल कार्यों में सर्वप्रथम कौन से देवता की पूजा होनी चाहिए। स्वाभाविक रूप से कोई किसी से कम नहीं था, इसलिए अनिर्णय की स्थिति रही। सभी ने इस बात का निर्णय भगवान शंकर एवं माता पार्वती से करवाने का विचार किया। सभी कैलाश पर्वत पर पहुँचे तो गणेजी अपनी माताजी के पास ही विचरण कर रहे थे। वे भी प्रतियोगिता में शामिल हो गए। शर्त यह रखी गई कि जो सबसे पहले सम्पूर्ण पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटेगा। वहीं प्रथम पूजा का अधिकारी होगा। सभी चल पड़े, किन्तु बुद्धि के दाता गणेशजी की बुद्धि तो कुछ और ही सोच रही थी सभी के चले जाने के बाद गणेशजी उठे और भगवान शंकर और माता पार्वती की एक परिक्रमा लगाकर पुन: अपने स्थान पर आ बैठे। जब सभी देवता वापस लौटे तो उन्हें वहाँ पाकर आश्चर्य करने लगे। तब भगवान शंकर और माता पार्वती ने सारी बात बताकर निर्णय दिया कि वास्तव में माता-पिता सारे ब्रह्माण्ड से बढ़कर हैं, अत: गणेशजी ही अपने तीव्र बुद्धि का चमत्कार।

आओ हम सभी गणेशजी की वन्दना तो करें ही उनके विश्ष्टि नामों और विशिष्ट शरीर रचना से भी कुछ सीखें। शुर्पकर्ण (गणेशजी) के सूप जैसे कान हमें बताते हैं कि जिस प्रकार सूप द्वारा झटककर हम अच्छा-अच्छा अन्न रखकर बेकार कचरा फेंक देते हैं, उसी प्रकार हम भी सुनी हुई ढेरों बातों में से सिर्फ अच्छी बातों को अपने पास रखें शेष सब बेकार कचरा मानकर भूल जाएं। लम्बोदर (गणेशजी) का बड़ा पेट यही सिखाता है कि हम अपनी ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाएँ, लेकिन केवल भोजन नहीं विद्या एवं ज्ञान भी। एकदन्त (गणेशजी) का दिखने वाला बड़ा दाँत और स्वयं के उपयोग के छोटे दाँत कहते हैं अपने हृदय को परहित एवं राष्ट्रकार्य हेतु बड़ा रखो, किन्तु जहाँ केवल अपना स्वार्थ हो हृदय छोटा रखोगे तो चलेगा। बड़े एवं भारी पैर स्थिरता का पाठ पढ़ाते हैं तो नन्हा सा वाहन मूषक (चूहा) हमें कह रहा है तुम छोटे हो तो क्या यदि श्रद्धा हो तो राष्ट्र का बड़ा से बड़ा बोझ भी तुम अपने कंधों पर उठा लोगी।

तो वादा रहा ना! इस बार गणेशजी से ली गई सभी शिक्षाओं पर अमल होगा।

(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)

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