– राजेन्द्र बघेल
प्रत्येक मनुष्य अपने द्वारा किए गए कार्य का अच्छा परिणाम चाहता है। इसके लिए वह विभिन्न प्रकार के प्रयत्न भी करता है। कार्य का नियोजन, उसे पूरा करने की प्रक्रिया, संसाधनों का समुचित प्रयोग तथा समय-समय पर किए गए कार्य का मूल्यांकन ये सभी उस कार्य को पूरा करने के उपक्रम हैं।
कार्य का परिणाम कैसे मिला? क्या वह अपेक्षित परिणाम था? यदि अपेक्षानुकूल परिणाम नहीं मिला तो कारण क्या थे? अपेक्षित परिणाम न मिलने पर कारणों का पता कर उनका निवारण किया? निवारण पश्चात् फिर आकलन किया क्या? अंत में परिणाम कैसा रहा? एक अच्छा कार्य करने वाले व्यक्ति के सम्मुख ये प्रश्न आते ही हैं।
आइए उपर्युक्त कथन को एक आचार्य होने के नाते अपनी कक्षा में प्रयोग करें। वास्तव में इस प्रंसग से जुड़ा अनुभव पिछले फरवरी माह में विद्या भारती झारखण्ड राज्य के जिला केन्द्रों पर प्रवास के समय अनेक स्थानों पर मेरे सम्मुख आया। प्रवास के क्रम में एक दिन मैं बोकारो स्टील सिटी के एक विद्यालय में था। विद्यालय में शैक्षणिक प्रगति के लिए किए जा रहे प्रयत्नों की जानकारी करते समय विभिन्न कक्षाओं से जुड़े अनुभव पाठकों के समक्ष रख रहा हूँ।
पहला प्रंसग कक्षा षष्ठ के हिन्दी विषय में विशेषण पाठ के शिक्षण से जुड़ा है। इस पाठ के शिक्षण के पश्चात् आचार्य ने यह जानने का प्रयत्न किया कि विद्यार्थियों को विशेषण की जानकारी कितनी व कैसी हो पाई। इस अवसर पर जो परिणाम प्राप्त हुआ, मैं भी उसका प्रत्यक्षदर्शी था।
परिणाम : कक्षा के 42 विद्यार्थियों में से 8 ने बताई गई परिभाषा और शिक्षण के समय दिए गए उदाहरणों को बताया। 5 विद्यार्थी ऐसे थे जो दिए उदाहरणों के अतिरिक्त भी कुछ अन्य उदाहरण जोड़ते हुए उत्तर दिए थे। शेष विद्यार्थी या तो चुप थे या एक देसरे को देखते हुए अनुत्तरित थे।
इस परिस्थिति में स्वभाविक है कि आचार्य बहुत उत्साहित नहीं हुए। मेरे पास आकर यह कहने लगे कि मैंने कोशिश तो पूरी की, पर लगता है बच्चे उसे समझ ही नहीं पाए। ऐसे में मैने उनको प्रोत्साहन देते हुए कहा कि कक्षा के 5 बच्चे तो अच्छा उत्तर दे रहे थे। देखिए फिर से एक प्रयत्न और कीजिए तथा सोचिए कि अच्छा परिणाम कैसे मिल सकता है?
इसी क्रम में आचार्य जी ने पुनः विशेषण पाठ की जानकारी विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत की। हाँ इस बार उनके प्रयत्न में कुछ अधिक नयापन था और उन्होंने कक्षा के परिवेश से जुड़े हुए ही अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए। उनके प्रयत्न इस प्रकार से थे –
वे कक्षा के बच्चों का नाम लेकर उनकी विशेषता बता रहे थे। कक्षाकक्ष में उपलब्ध सामग्रियों की क्या विशेषता है (उनका आकार, रंग, संख्या आदि) आदि उनसे जुड़े उदाहरण दे रहे थे। विद्यालय परिसर में स्थित स्थानों की विशेषता भी बताई गई। कक्षा के छात्रों को एक दूसरे के सम्मुख खड़े होकर सामने वाले छात्र की क्या विशेषता है, यह बताने को कह रहे थे।
कक्षा कक्ष में तीन समूह बनाकर एक को बाहर प्रांगण में, दूसरे समूह को बरामदे में तथा तीसरे समूह को कक्षा कक्ष में ही रहने दिया तथा उनसे कहा कि जो भी वस्तु देखें उसकी विशेषता क्या है ऐसी जानकारी एकत्र करके लाने को कहा। ऐसी जानकारी करके आने पर विशेषण के साथ छात्र यह बता रहे थे कि वस्तु का रंग, उसकी संख्या, उसका आकार कैसा है? यद्यपि बालकों को अभी विशेषण के प्रकार नहीं बताए गए थे।
स्वाभाविक है कि ऐसा करने से बच्चों की अधिक संख्या में भागीदारी रही। बच्चे नए प्रकार के कार्य से उत्साहित थे। अनेक उदाहरण विद्यालय परिसर व कक्षा कक्ष से जुड़े हाने के कारण सुलभ और सरल थे।
इससे अनेक प्रश्न उठते हैं : क्या कक्षा के वे बच्चे जो प्रायः उत्तर देने में संकोच करते या चुप ही रहते है, वे भी उत्तर देने का प्रयत्न कर रहे थे?
परिणाम स्वरुप शिक्षण के पश्चात् आचार्य का उत्साह दोगुना ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक था। आचार्यों ने यह भी बताया कि आज कक्षा के सभी स्तर के बच्चों ने उत्तर दिया और जो भी स्वयं अनुभव करके देखा या समझा था वैसा ही परिणाम मिला। आज विशेषण पाठ का प्रभाव एवं उसकी अनुभवजन्य जानकारी छात्रों को कैसे प्राप्त हुई, इसका हम सब आकलन कर सकते हैं।
दूसरा अनुभव गणित विषय से सम्बन्धित है :
कक्षा में सांख्यिकी का पाठ पढ़ाने का तीसरा दिन था। विषय से सम्बन्धित शिक्षण के क्रम में आचार्य जी ने तीन प्रश्न अभ्यास के लिए दिए। आचार्य जी से मैंने जानना चाहा कि ये तीन प्रश्न हल करने में बच्चों को कितना समय लगेगा? उनका कहना था कि 8 से 10 मिनट में छात्र सवाल को हल कर लेंगे। प्रश्न हल करने के क्रम में जो दृश्य मेरे सामने उपस्थित हुआ उसका विवरण इस प्रकार से है –
उस कक्षा में 40 विद्यार्थी थे, सबसे पहले 9 छात्रों ने तीनों प्रश्नों को हल कर लिया था।
आचार्य जी ने इनमें से 3 के उत्तर की जाँच कर उन्हें शेष 6 में से 2 के उत्तर जाँचने की जिम्मेदारी दी। जानकारी मिली कि सभी नौ के उत्तर सही थे। उन 9 बच्चों ने मात्र 8 मिनट में तीनों प्रश्न हल कर लिए थे।
यह भी जानाकरी मिली के अगले 18 छात्रों मे से 10 छात्रों के उत्तर एवं विधि बिलकुल ठीक थी पर 8 के उत्तर अधूरे थे। इन 8 छात्रों ने उत्तर शुद्ध क्यों नहीं दिए, इसकी जानकारी के लिए उनसे पूछा गया तो 5 का कहना था कि मैंने यह गलती अतिविश्वास के कारण जल्दी में की। शेष 3 ने बताया कि उनकी संकल्पना स्पष्ट नही हुई। इसलिए प्रश्न का आधा उत्तर ठीक से नहीं दे पाए। इन 18 छात्रों को ये तीन प्रश्न हल करने में 12 मिनट लगे।
शेष बचे 13 छात्रों ने 3 प्रश्नों को हल करने में 18 मिनट लगाए। 13 में से 9 के उत्तर ठीक थे।
अगले क्रम में 13 बच्चों ने बताया के वे प्रश्न हल कर चुके हैं। इन छात्रों के उत्तर कक्षा 9 में गणित की इस कक्षा के छात्रों को पूरा दृश्य आपके सामने इस प्रकार से है –
छात्र | शुद्ध उत्तर | समय लगा | समझ की स्थिति |
9 | सभी ने | 8 मिनट | सभी की अवधारणा और समझ ठीक थी। समय कम लगा |
18 | 10 के सही | 12 मिनट | समझ तो है पर समय अधिक लगाया। |
05 के उत्तर अशुद्ध | अधिक समय | समझ तो थी पर अतिविश्वास में गलत कर गए। | |
03 उत्तर गलत | 09 के सही | समझ तो है पर अधिक समय लगा | |
13 | 09 के सही | 18 मिनट लगा | समझ तो है पर अधिक समय लगा |
04 के आधे अधूरे | 25 मिनट | समझ ही नहीं पाए, विषय में भी रुचि नहीं |
प्रथम बार जिन 9 छात्रों ने प्रश्न हल किए थे, जाँच किया, सभी 9 के उत्तर सही थे। यद्यपि उन्होंने अधिक समय लिया। शेष 4 के उत्तर एवं विधि भी गलत थे। पूछने पर कारण बाताया कि उन्हें प्रश्न का आश्य स्पष्ट नहीं था।
40 में से शेष 4 बच्चे अब तक 25 मिनट में भी उत्तर नहीं दे सके। पता चला कि उनके उत्तर अधूरे थे या उत्तर ही नहीं दिया। बात करने पर उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें गणित विषय में रुचि नहीं हैं इसलिए प्रश्न को समझ नहीं पाए।
सम्पूर्ण परिणाम आचार्य जी के सामने था। यद्यपि उनके कथन के अनुसार 8 से 10 मिनट में सब बच्चे तीनों प्रश्न हल तो नहीं कर पाए पर वृत जानकर वे आनन्दित थे। क्योंकि उन्होंने अनुभव किया कि
– कक्षा के 40 में से 9 विद्यार्थियों की अवधारणा स्पष्ट है इसलिए जल्दी से ही उत्तर दे सकते हैं। ये 9 छात्र दूसरे छात्रों के उत्तर को जाँच भी सकते हैं। अर्थात् इनमें नेतृत्व करने की क्षमता भी है।
– शेष 19 विद्यार्थी उत्तर तो शुद्ध देते हैं उनको अवधारणा व समझ भी है, पर विश्वास कम होने के कारण समय अधिक लगा। इसलिए इन्हें शीघ्रता से शुद्ध उत्तर देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
– इन 40 में से 5 के उत्तर अशुद्ध हुए क्योंकि वे अतिविश्वास में गलती कर गए, इन्हें इस दृष्टि से सावधान करना होगा।
– 3 छात्रों के उत्तर इसलिए अशुद्ध हुए कि उन्हें विषय की स्पष्ट अवधरणा ही नहीं है। इनकी समझ विकसित करने कि लिए उनके गणित के बौद्धिक स्तर की जानकारी करके तदनुसार प्रयत्न करने होंगे।
– कक्षा के जिन 4 छात्रों ने अन्त तक आधे-अधूरे उत्तर दिया या कुछ नहीं कर पाए उनकी समझ को बढ़ाने के अनुरुप प्रयत्न करने होंगे।
बेकारो स्टीलसिटी स्थित इस विद्या मंदिर के इन दो आचार्यों को सामूहिक बैठक में शिक्षण से जुड़े अपने-अपने अनुभवों को सबके समक्ष प्रकट करने का अवसर दिया गया। स्वाभाविक है कि सभी आचार्यों ने आनन्द का अनुभव तो किया, साथ ही शिक्षण के बाद शैक्षिक सम्प्राप्ति की दिशा में सबकी प्रतिबद्धता अधिक सुदृढ़ हुई।
(लेखक शिक्षाविद् है)
और पढ़ें : बाल केन्द्रित क्रिया आधारित शिक्षा-12 (गणित विषय शिक्षण)