बाल केन्द्रित क्रिया आधारित शिक्षा- 30 (विद्यालय में विशेष आयोजन)

 – रवि कुमार

 

विद्यार्थियों में विशेष गुणों के विकास की दृष्टि से अनेक विशेष आयोजनों की योजना होती है। कुछ आयोजन उस वर्ष में आने वाले विशेष दिवस के साथ जुड़े होते हैं। कुछ आयोजन प्रतिवर्ष होते हैं और सर्वदूर उनकी मान्यता हैं। बाल केंद्रित शिक्षा में  ऐसे दो विशेष प्रकार के आयोजन विद्यालय में करना आवश्यक है – १ शैक्षिक भ्रमण २ वार्षिकोत्सव। आइए इन दोनों विशेष आयोजनों के विषय में जानते है-

शैक्षिक भ्रमण

सामान्यतः सभी विद्यालयों में शैक्षिक भ्रमण का आयोजन होता तो है। परंतु यह आयोजन होता है कुछ प्रतिशत विद्यार्थियों के लिए। विद्यालय में सूचना दी जाती है कि आमुख स्थान पर भ्रमण जाएगा, आप अपना पंजीकरण करवा सकते है। भ्रमण पर जाने की साधन व्यवस्था एक बस है जिसकी क्षमता 40/50 ही है। प्रायः बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थियों को ही इस भ्रमण में जाने का अवसर मिलता हैं। यात्रा व भोजन आदि का अधिक शुल्क के कारण सभी विद्यार्थियों के अभिभावक भ्रमण पर जाने की अनुमति नहीं देते। वे अन्यान्य कारण बताकर विद्यार्थी से मना करवा देते हैं। जिन विद्यार्थियों का मन भ्रमण पर जाने का है उपरोक्त दोनों कारणों से वे नहीं जा पाते। विद्यालय के 40-50 विद्यार्थी दो-तीन दिन का भ्रमण करके आते हैं और विद्यालय के गतिविधि पंचांग में जुड़ गया शैक्षिक भ्रमण!

अब ये शैक्षिक भ्रमण था या केवल भ्रमण? इस पर भी विचार करना आवश्यक है। यह भ्रमण सभी विद्यार्थियों के लिए था या कुछ % के लिए?

शैक्षिक भ्रमण की योजना कक्षा अनुसार की जाए। छोटी कक्षाओं के विद्यार्थी कम दूरी पर कम समय के लिए जा सकते है। कक्षा स्तर व आर्थिक स्थिति अनुसार दूरी व समय बढ़ा सकते है। चालू सत्र में जो पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है उसके अनुसार आसपास देखने के लिए कौन-कौन सा स्थान है जिसका ऐतिहासिक, सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व है, यह विचार कर योजना हो। जहां जा रहे है, उस स्थान पर जाने से विद्यार्थी क्या सीखने वाले हैं, इसे योजना में सम्मिलित किया जाए। यह सब करने से तभी सही स्थान का चयन हो पाएगा।

एक विद्यालय में कक्षा 6 से 8 के विद्यार्थियों का ग्राम भ्रमण रखा। अब ग्राम भ्रमण में क्या विशेष है? यह प्रश्न हमारे मन में आना स्वाभाविक है। परन्तु इस भ्रमण में भी कुछ विशेष था। कक्षा 6 से 8 में अध्ययन करने वाले नगरीय अंचल के विद्यार्थियों का यह भ्रमण था। सामान्यतः नगरीय विद्यार्थियों को ग्राम्य जीवन का अनुभव न के बराबर होता है। ग्राम्य जीवन से जुड़ी बातें पाठ्यक्रम का भाग तो होती ही हैं। ग्रामीण विद्यार्थियों को इसका अनुभव दैनदिन होता रहता है। ऐसे में नगरीय विद्यार्थियों को ग्रामीण जीवन का अनुभव प्रत्यक्ष मिलने से अच्छा रहता है।

विद्यालय के आसपास का धार्मिक स्थल- मन्दिर, गुरुद्वारा; सब्जी मंडी, डाकघर, रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन, हस्पताल, पैथ लैब, समाचार पत्र-पत्रिका कार्यालय, रेडियो स्टेशन, टीवी चैनल, ऑटो वर्कशॉप, फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट, संग्रहालय, कुम्हार-लोहार-फर्नीचर कार्यस्थल आदि सभी भ्रमण के स्थान हो सजते हैं। भ्रमण विद्यार्थी के मन को आनन्दित करता है। सही स्थान का चयन व योजना इस आनन्द के साथ अधिगम को बढ़ाएगी।

वार्षिकोत्सव

वर्ष में एक बार किया जाने वाला उत्सव वार्षिकोत्सव कहलाता है। कहीं-कहीं यह विद्यालय के स्थापना दिवस पर भी होता है। वर्षभर में विद्यार्थियों को जो सिखाया जा रहा हैं उसको अभिभावकों व समाज के सामने अभिव्यक्त करने का अवसर वार्षिकोत्सव प्रदान करता है। अतः वार्षिकोत्सव की योजना भी वर्षभर करना आवश्यक है। वर्षभर में जो सीखा-सिखाया गया उसे ही वार्षिकोत्सव में शारीरिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। हाँ, प्रस्तुति अच्छी हो सके इसके लिए एक मास पूर्व उन सभी कार्यक्रमों का अधिक अभ्यास आवश्यक है।

सामान्यतः वार्षिकोत्सव के लिए ही कार्यक्रम तैयार करवाए जाते हैं। ऐसे में वो वार्षिकोत्सव है या तत्काल उत्सव? यह विचारणीय है। सांस्कृतिक (भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत) कार्यक्रम है या फिल्मी रंगमंच? कुछ विद्यार्थियों को अवसर है या अधिकतम विद्यार्थियों को? तैयारी आचार्य करवाएंगे या बाहर से कोई प्रोफ़ेशनल? व्यवस्थाएं विद्यालय के संसाधनों से होंगी या बाहरी संसाधनों से? व्यवस्थाएं व सज्जा विद्यालय के विद्यार्थी व आचार्य करेंगे या बाहरी किराए के व्यक्ति? सहयोग अभिभावकों-पूर्व छात्रों का लेना है या किराए के व्यक्तियों का? प्रतिभा प्रदर्शन विद्यार्थियों का है या डिजिटल ऑडियो/वीडियो का? ये सब प्रश्न विचार के योग्य है। उपरोक्त में से सही चुनाव ही आपके वार्षिकोत्सव का सही प्रकटीकरण करेगा, जो अभिभावकों व समाज के लिए विद्यालय का चेहरा होगा।

एक स्थान पर एक मंचीय कार्यक्रम प्रस्तुत हुआ। कक्षा 3 व 4 के विद्यार्थियों ने एक समूह गीत प्रस्तुत किया। गीत था – “धरती की शान तु है मनु की संतान, तेरी मुट्ठियों में बंद तूफान है रे, मनुष्य तु बड़ा महान है।” लगभग 25 विद्यार्थियों ने इस गीत पर अभिनय किया, गायन बड़ी कक्षा की बालिकाओं ने और वादन का कार्य वंदना विभाग के छात्रों द्वारा किया गया। विद्यार्थियों ने विद्यालय वेश पहना हुआ था। इस कार्यक्रम की तैयारी कक्षा 3 व 4 की आचार्य दीदी द्वारा करवाई गई। गीत के बोल के साथ अभिनय करते हुए सुंदर प्रस्तुति! भारतीय संस्कृति के संस्कार व विचार के साथ विद्यार्थियों की कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों की सक्रियता। कोई बाह्य सहायता नहीं, कोई विशेष खर्च नहीं, विद्यार्थियों द्वारा दैनदिन रूप से सहज तैयारी व प्रस्तुति।

विद्यार्थी काल में सम्पन्न हुए विशेष आयोजन शैक्षिक भ्रमण व वार्षिकोत्सव का जीवनभर प्रभाव रहता है इन दोनों कार्यक्रमों की स्मृतियाँ विद्यार्थी के मानस पटल पर सदा अंकित रहती हैं आचार्य परिवार द्वारा चिंतन-मनन कर सकारात्मक एवं दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखकर इसकी योजना होनी चाहिए और विद्यालय के प्रत्येक विद्यार्थी को इन विशेष आयोजनों में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो, इसका भी ध्यान रखा जाए    

(लेखक विद्या भारती हरियाणा प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)

और पढ़ें : बाल केन्द्रित क्रिया आधारित शिक्षा- 29 (योग शिक्षा)

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