भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात 51 (शास्त्रों की रचना एवं स्वरूप)

 – वासुदेव प्रजापति

 

अब तक हमने जाना कि परमात्मा की इस सृष्टि में मनुष्य का अति विशिष्ट स्थान है। क्योंकि केवल मनुष्य में ही मन, बुद्धि व चित्त सक्रिय रूप में व्यवहार करते हैं। इसीलिए मनुष्य को परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति कहा गया है। मनुष्य अपने इन साधनों के द्वारा परमात्मा की, जगत की तथा स्वयं की अनुभूति प्राप्त करता है। वह अपनी इस अनुभूति को जिन्हें यह अनुभूति नहीं हुई है, उनको समझाने के लिए सब प्रकार के शास्त्रों की रचना करता है। इन शास्त्रों के आधार पर मनुष्यों के समस्त व्यवहार निर्देशित होते हैं। मनुष्य अपना व्यवहार सुगमता से कर सके इसके लिए व्यवस्थाएं बनती हैं। शास्त्रों के इस ज्ञान को शिक्षा समाज तक पहुँचाने का कार्य करती है। इसलिए शिक्षा में शास्त्रों का विशेष महत्त्व है।

सब शास्त्रों के मूल में अध्यात्मशास्त्र है

इस जगत में एक परमात्मा की रचना है, जिसे हम प्रकृति कहते हैं। दूसरी मनुष्य की रचना है, जिसे हम संस्कृति कहते हैं। इसलिए शास्त्रों के भी मुख्य रूप से दो प्रकार हैं, प्रकृति से सम्बन्धित प्राकृतिक शास्त्र और संस्कृति से सम्बन्धित सांस्कृतिक शास्त्र। आज जिन्हें हम विज्ञान कहते हैं, जैसे- भौतिक विज्ञान एवं प्राणी विज्ञान ये सभी प्राकृतिक शास्त्र हैं। दूसरे मनुष्य जीवन को सुखी बनाने वाले जितने भी शास्त्र हैं, वे सब सांस्कृतिक शास्त्र हैं। इन दोनों प्रकार के शास्त्रों से भी पहले परमात्मा को समझने वाला जो शास्त्र है, वह अध्यात्म शास्त्र है। यह अध्यात्म शास्त्र इन दोनों शास्त्रों से पहले, इनसे ऊपर और इन सबके मूल में है।

दोनों प्रकार के शास्त्रों के तीन-तीन स्तर हैं

सभी प्राकृतिक शास्त्रों के तीन स्तर हैं। पहला, रचना समझना; दूसरा, रचना के अनुसार व्यवहार करना और तीसरा है, व्यवहार की अनुकूलता बनाने के लिए व्यवस्था बनाना। इस आधार पर शास्त्रों के दो प्रकार हुए – १. शुद्ध शास्त्र या तात्विक शास्त्र २. व्यवहार शास्त्र। इसी भांति व्यवहार शास्त्र के भी दो प्रकार हुए – १. मनुष्यों के लिए आचरण शास्त्र और २. पदार्थों व वस्तुओं के लिए निर्माण शास्त्र।

प्राकृतिक शास्त्रों की भांति सांस्कृतिक शास्त्रों के भी तीन स्तर हैं। पहला तत्त्व समझना, दूसरा व्यवहार करना और तीसरा व्यवस्था बनाना। व्यवहार के अन्तर्गत आचरण लक्षित है और व्यवस्था में सभी संस्थाओं का समावेश हो जाता है।

तात्त्विक कथा

हमारे शास्त्रों में जीव और जीवन से सम्बन्धित कठिनतम तत्त्वों को कथाओं के माध्यम से बड़ी सरलता पूर्वक समझाया गया है। आज हम ऐसी ही एक तात्त्विक कथा के मर्म को समझने का प्रयत्न करेंगे।

एक व्यक्ति था। एक बार वह घने जंगल में भागा जा रहा था। भागते-भागते संध्या का समय हो गया। उसे अंधेरे में कुआं दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया। गिरते-गिरते कुएं पर झुके हुए एक पेड़ की डाली उसके हाथ में आ गई। अब वह पेड़ की डाली से लटक गया। लटके-लटके उसने नीचे देखा तो वह क्या देखता है? कुए में चार बड़े-बड़े नाग मुँह फाड़े उसे डसने को तैयार हैं। जिस डाली पर वह लटक रहा है, उस डाली को दो चूहे कुतर रहे हैं। इतने में एक हाथी आया और पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। यह सब देखकर वह घबरा गया। वह चिन्ता में पड़ गया कि अब मेरा क्या होगा? संयोग से उसी पेड़ पर मधुमक्खियों का एक छत्ता लगा हुआ था। जब हाथी ने उस पेड़ को हिलाया तो मधुमक्खियां उड़ने लगीं और छत्ते में से शहद की बूंदे टपकने लगीं। एक बूंद उसके होठों पर गिरी, प्यास के मारे सूख रही जीभ को उसने होंठों पर फैलाया तो उसे वह शहद की बूंद बहुत मीठी लगी। कुछ ही पल बाद फिर से शहद की बूंद उसके मुँह में गिरी, अब वह उस मिठास के सुख में अपनी सब तकलीफों को भूल गया।

उसी समय वहां से शिव-पार्वती गुजरे। पार्वती ने अपने स्वभावानुसार शिवजी से उसे बचाने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने उसके पास जाकर कहा-

“मैं तुम्हें बचाने आया हूँ, तुम मेरा हाथ थाम लो।” शहद चाटते हुए उसने कहा, जरा ठहरो! एक बूंद शहद का मजा और ले लूँ। इस प्रकार एक बूंद और, एक बूंद और कहता रहा। शिवजी आखिर थक-हार कर चले गए। वह क्षणिक सांसारिक सुख में यह तक भूल गया कि मैं अगले ही पल में मृत्यु का ग्रास बनने वाला हूँ।

वैसे तो यह एक सामान्य कथा लगती है, किन्तु इस कथा में एक गूढ़ तत्त्व छिपा हुआ है। जिस जंगल में वह जा रहा है, वह जंगल यह मायावी दुनिया है। और अंधेरा अज्ञान का द्योतक है। पेड़ की डाली उसकी आयु है, जिसे रात-दिन रूपी दो चूहे लगातार कुतर रहे हैं। अहंकार रूपी मदमस्त हाथी उस पेड़ को ही उखाड़ रहा है, जिस पर वह लटका हुआ है। उधर नीचे कुए में काल रूपी जहरीले नाग उसे डसने के लिए तैयार हैं। और शहद की बूंदें क्षणिक सांसारिक सुख है। अज्ञानी व्यक्ति अगले ही पल आने वाले मृत्यु के खतरे से अनजान बन मायावी सुख को भोगने में ही लगा रहता है। ऐसे अज्ञानी व्यक्ति की भगवान भी कोई मदद नहीं कर सकते। यह कथा व्यक्ति को इस नाशवान संसार में उसकी वास्तविकता का दर्पण दिखाते हुए उसे अविनाशी परमात्मा को प्राप्त करने की प्रेरणा देती है।

शास्त्रों के विविध उदाहरण

परमात्मा और उसकी रचना को समझाने वाला शास्त्र, अध्यात्म शास्त्र है। मनुष्य शरीर की रचना समझाने वाला शरीर विज्ञान है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यवहार का शास्त्र, आरोग्यशास्त्र है। स्वस्थ शरीर के लिए आहार का नियमन आवश्यक है, उसके लिए आहार शास्त्र है।

पंच महाभूतों की स्थिति और गति जानने का शास्त्र, भौतिक विज्ञान है। विभिन्न पदार्थों के व्यवहार को जानने का शास्त्र रसायन विज्ञान है। जबकि मनुष्य के मन के व्यापारों को जानने का शास्त्र मानस शास्त्र है। मनुष्य को रहने के लिए घर चाहिए। घर निर्माण करने का शास्त्र स्थापत्य शास्त्र है।

प्राकृतिक शास्त्रों को हम विज्ञान भी कहते हैं। इसके अनुसार प्राण के व्यापार को जानने का शास्त्र, प्राण विज्ञान है। वनस्पति के बारे में जानने का शास्त्र वनस्पति विज्ञान है। मनुष्य का श्रम बचाने के लिए तथा कठिन कामों को सुगम बनाने के लिए विभिन्न यन्त्रों का उपयोग किया जाता है। उन यन्त्रों के निर्माण और प्रयोग का शास्त्र तंत्र शास्त्र है।

मनुष्य को अन्न चाहिए, अन्न का उत्पादन करने के लिए कृषि शास्त्र है। इसी प्रकार मनुष्य को विभिन्न वस्तुओं की आवश्यकता रहती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करते हैं, इसके लिए उत्पादन शास्त्र है। उत्पादित वस्तुओं का लेन-देन होता है, इसके लिए वाणिज्य शास्त्र है।

मनुष्यों को मिलजुलकर एक साथ रहना है, इसके लिए समाजशास्त्र है। काम व प्रेम से प्रेरित स्त्री और पुरुष के सम्बन्धों का नियमन करने के लिए जो शास्त्र है, वह विवाह शास्त्र कहलाता है। समाज जीवन की विभिन्न परम्पराओं के सम्यक् निर्वहन हेतु अधिजनन शास्त्र एवं अध्यापन शास्त्र है।

शास्त्रों का वर्गीकरण

सभी शास्त्रों का तत्त्व, व्यवहार, व्यवस्था, संस्था व निर्माण के आधार पर वर्गीकरण किया जा सकता है, जैसे- अध्यात्म शास्त्र तात्त्विक शास्त्र है। इसी प्रकार शरीरविज्ञान भी तात्त्विक शास्त्र है। आरोग्यशास्त्र एवं आहार शास्त्र व्यवहार शास्त्र है। यंत्र निर्माण एक व्यवस्था है। विवाह शास्त्र एक संस्था है। लोगों का रहन-सहन सुविधापूर्ण हो इस हेतु नगर रचना है। इस प्रकार सभी शास्त्रों को हम तत्त्व, व्यवहार, व्यवस्था, संस्था, निर्माण व रचना में से किसी एक वर्ग में वर्गीकृत करते हैं। एक बार सिद्धांत समझ में लिया तो वर्गीकरण समझना सरल हो जाता है। और वर्गीकरण समझ में आ गया तो विषयों में परस्पर क्या सम्बन्ध होता है? यह समझने में देर नहीं लगती।

(लेखक शिक्षाविद् है, भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सह सचिव है।)

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