✍ दिलीप वसंत बेतकेकर
क्या सदैव ‘नारायण नारायण’ जपते रहते हो, इस खंभे में है तेरा नारायण? गुस्से से लाल, तमतमाते चेहरे से हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद से, अपने ही बेटे से पूछा! हां, हां! मेरा नारायण इस खंभे में भी है! दृढता पूर्वक, श्रद्धा से प्रहलाद ने पिता हिरण्यकश्यपु से कहा! हिरण्यकश्यपु ने गुस्से में उस खंभे पर जोर से लत्ता मारी…… और उसी खंभे से ही नारायण प्रकट हो गए, नरसिंह रूप में, नरसिंह अवतार। प्रहलाद की श्रद्धा सार्थक सिद्ध हुई!
ज्ञान तो अपरंपार है, असीम है। हमें भी वह प्राप्त हो सकता है। इस हेतु चाहिए दृढ़, भावपूर्ण, अविचल, श्रद्धा!
एकलव्य ने द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाई। श्रद्धा से गुरूरूप से उनका वंदन किया और निरंतर धनुर्विद्या का अभ्यास किया और प्रथम श्रेणी का धनुर्धर बना। इतिहास के पन्नों में ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। श्रद्धा होने पर मन अस्थिर न रहते हुए ज्ञान और ज्ञानी की ओर स्थिर रहता है। तब ज्ञान उनकी ही दिशा में प्रवाहित होने लगता है। यह दिखना, दिखाना, सिद्ध करना, संभव नहीं है। अपना अंतःकरण श्रद्धा से वास्तव में भरा हुआ है क्या? यह प्रश्न तो स्वयं ही स्वयं को पूछना उचित होगा।
मैं विद्यालय जाता हूँ, शिक्षा प्राप्त करता हूँ। शिक्षकों की मदद प्राप्त करता हूँ। इन सब के प्रति मेरे मन में किस प्रकार के भाव है?
आज मैं जो शिक्षा प्राप्त कर रहा हूँ वह आवश्यक है। हवा यदि प्राप्त न हो तो मेरी क्या स्थिति होगी वहीं मेरे शिक्षा ग्रहण न करने पर, अशिक्षित रहने पर होगी यह निश्चय पूर्वक समझना होगा। शिक्षा के द्वारा मेरा सम्पूर्ण जीवन बदल जाएगा, सुखमय होगा ऐसी श्रद्धा होनी चाहिए। प्रहलाद को सर्वत्र नारायण दिखता था, परमभक्त था वो उनका! हम विद्यार्थी हैं। प्रहलाद को नारायण दिखते वैसे ही हमें सर्वत्र ‘विद्या’ दिखती है क्या?
प्रत्येक पल और प्रत्येक कण शिक्षा का यह दृढ़ भाव होना आवश्यक है। अपने इर्द गिर्द, प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक प्रसंग पर, शिक्षा के अवसर छिपे हुए हैं। वह दिखने हेतु, प्राप्त करने के लिए, अनुभव करने हेतु, श्रद्धा आवश्यक है।
श्रद्धा से बलप्राप्ति….सभी प्रकार के बल।
Faith can move the mountains, but don’t be surprised if God hands you a shovel.
यह हमने सुना और पढ़ा होगा। ऐसा प्रत्यक्ष घटित होने के भी अनेक उदाहरण भी देखने-सूनने-पढ़ने को मिलते हैं। अनेक लोग इसका केवल प्रथम भाग, अर्थात- Faith can move the mountains इतना ही पढ़ते हैं, और खुश होते हैं और सुस्त हो जाते हैं। परंतु अगली पंक्तियां अधिक महत्वपूर्ण हैं अर्थात But don’t be surprised if God hands you a shovel.
एक किसान और हनुमान की कहानी तो सुनी ही होगी। तदनुसार एक किसान की अनाज की बोरियों से लदी हुई बैलगाड़ी कीचड़ में फंस गई। किसान ने हनुमान जी से प्रार्थना करना शुरू की। हनुमान जी प्रसन्न होकर प्रकट हुए। किसान ने उनसे प्रार्थना की कि उसकी बैलगाड़ी कीचड़ में से बाहर निकलवा दें। हनुमान जी ने प्रस्ताव रखा- तुम आगे से खींचो मैं पीछे से धकेलता हूँ। अपने पीछे हनुमान जी हैं यह सोचकर किसान के बल में वृद्धि हुई। उसने पूरी ताकत लगाते हुए बैलगाड़ी को खींचकर कीचड़ में से बाहर निकाल लिया। हनुमान जी को धन्यवाद देने के लिए किसान ने पीछे मुड़कर देखा तो हनुमान जी तो बहुत पीछे ही कमर में हाथ रखे और गदा लिए खड़े दिखे। किसान को गुस्सा आया। उसने हनुमान जी से कहा आपने बोला था, पीछे से धकेलता हूँ परन्तु आपने वैसा किया नहीं। क्या मजाक उड़ाया मेरा?
उस पर हनुमान जी ने उत्तर दिया- तुम्हारे पास तो बहुत बल है, मेरी आवश्यकता ही नहीं। बल आपका ही है। प्रत्यक्ष हनुमान जी अपने पीछे हैं, इसी श्रद्धा के कारण किसान का बल हजार गुना बढ़ गया।
शिक्षक, शाला और शिक्षण इन पर अटूट श्रद्धा रहने पर अपने बल की भी वृद्धि होती है, इसमें कोई संदेह नहीं।
इस प्रकार श्रद्धा से सबसे महत्वपूर्ण बात जो सिद्ध होती है वह है कि अपना मन अपने आप ही शिक्षक, शाला और शिक्षण की ओर आकृष्ट होने लगता है, इन पर केन्द्रित होने लगता है। सीखने के लिए योग्य, पोषक, अनुकूल परिस्थिति निर्मित होती है।
गुरुदेव टैगोर द्वारा ‘श्रद्धा’ का अत्यंत सुंदर, सरल, मार्मिक वर्णन किया गया है। उनके अनुसार – ‘Shraddha is birds’ chirping when the dawn is still dark.
अब सुबह जब ठीक से पौ नहीं फटी हो… जब लगभग अंधेरा ही हो… फिर भी तब पंछियों की चहचहाहट होती है……. इस श्रद्धा से कि अब थोड़े ही समय पश्चात उजाला होगा, अंधेरा दूर होगा.. केवल यही श्रद्धा!!
शिक्षक, शाला और शिक्षण इन सब की सहायता से अब मेरे भी जीवन का अंधेरा छट कर नया प्रकाश प्रवेश करेगा ऐसी दृढ़ श्रद्धा मन में रहे तब मुझे शिक्षा, विद्या, ज्ञान अवश्य प्राप्त होगा।
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
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