✍ दिलीप वसंत बेतकेकर
हम निरंतर बोलते रहते हैं- एक प्रकार से अन्य व्यक्ति के साथ जो तेज आवाज के साथ प्रक्रिया है। और दूसरे प्रकार से, स्वयं से, जो आवाज रहित प्रक्रिया होती है। ऐसा कोई पल याद करें जब ये दोनों ही प्रक्रियाएं न होती हो। अखंड बोलना चलता रहता है न?
स्वयं से बात अर्थात ‘स्वगत’। अन्यों के साथ बात करने की अपेक्षा हम कई गुना अधिक स्वगत बात करते हैं। दिनभर में हमारे मन में लगभग साठ हजार विचार आते हैं, ऐसा तज्ञ जन कहते हैं। और मज़े की बात यह है कि इनमें से पिचानवे प्रतिशत (95%) विचार नकारात्मक होते हैं, कुछ पुनरावृत्त भी!
मेरा अभ्यास अच्छा नहीं हो रहा, फलां विषय कठिन है, पढ़ा हुआ ध्यान में नहीं रहता, फलां कार्य मेरे से नहीं बन सकता, अथवा मैं नहीं कर सकता, फलां विषय में मुझे आलस आता है, आदि वाक्य हम दिनभर में, स्वगत ही, कितनी बार दोहराते हैं। चोरी छुपे ऐसे अनेक विचार हमारे मन में आकर एकत्रित हो जाते हैं न? ये यदि नकारात्मकता से सकारात्मकता की दिशा में मुड़ जाएं तो अपनी कार्यसिद्धि हुई! एक अनुभव तो आपने लिया ही होगा। हमें सुबह जल्दी उठकर कोई ट्रेन पकड़नी हो, अथवा क्रिकेट अभ्यास के लिए जाना हो तो रात सोते समय हम स्वयं को ऐसा कहकर सो जाते हैं। और आश्चर्य की बात, दूसरे दिन प्रातः अलार्म बजने के पूर्व ही, अथवा मां द्वारा आवाज देकर जगाने के पूर्व ही हम तुरंत बिस्तर से उठ जाते हैं। यह कैसे पटित हुआ?
हमने अपने मन की शक्ति का उपयोग किया। मन को नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर मोड़ दिया। बस इतना ही कहने में कितना आसान है? ये जो अनजाने ही किया वह हम समझते हुए, प्रयत्न पूर्वक, व्यवस्थित योजना बद्ध प्रकार से करेंगे तो सुयश हाथ आएगा। ये सब किसी विशिष्ट योजनाबद्ध तरीके से करना अर्थात स्वयं ही स्वयं को, स्वयं के मन को, सूचना देना। यह एक प्रकार का सम्मोहन ही है – स्व सम्मोहन!
यह एक मानस शास्त्रीय प्रक्रिया है। स्वयं के ही विचार और कल्पनाओं का उपयोग करके अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति बदलने की यह शास्त्रीय पद्धति है! इसमें किसी अन्य व्यक्ति की सहायता नहीं ली जा सकती। (केवल सीखने हेतु ली जाती है)। हमारी स्वयं की भूमिका महत्वपूर्ण और निर्णायक होती है। अपने ही मनः शक्ति का उपयोग किया जाता है।
Your self–talk is the channel of behaviour change.
(तुम्हारा ‘स्वगत’ यही ‘ वर्तन परिवर्तन’ का माध्यम है… साधन है।) विद्यार्थी, खिलाड़ी, नर्तक, अभिनेता, उद्योगकर्ता आदि सभी के लिए अत्यंत उपयोगी यह पद्धति आजकल लोकप्रिय हो रही है। आजकल कुछ डाक्टर भी दवाइयों के साथ ‘स्वयं सूचना तंत्र’ का उपचार पद्धति में उपयोग करते हैं। इसके बहुत अच्छे परिणाम देखें जा रहे हैं। ये अनुभव विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों द्वारा व्यक्त किए गए हैं। विद्यार्थी वर्ग के द्वारा भी इस तंत्र का उपयोग अपने अध्ययन के लिए किया जाए तो वे और अधिक प्रगति कर सकेंगे। मात्र इसका उपयोग सतत और प्रामाणिकता से और उत्साह से किया जाना चाहिए।
विचार पूर्वक अपनी समस्या-आवश्यकताओं के संदर्भ में विधान कुछ वाक्य स्वयं ही तैयार करें। ये वाक्य बनाते समय तीन ‘पी’ को ध्यान में रखें। कुछ (१) Present (वर्तमान काल ), (२) Personal (व्यक्तिश:, स्वतः) और (३) Positive (सकारात्मक)।
(१) Present (वर्तमान काल )- अपना वाक्य वर्तमान काल का हो – मैं करूंगा, बनूंगा, जाऊंगा, ऐसे भविष्यकाल का नहीं! मेरी याददाश्त अच्छी होगी.. ऐसा ना कहकर मेरी याददाश्त अच्छी है अथवा अच्छी हो रही है ऐसा कहें। मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता है मुझे वाचन पसंद है, ऐसे वर्तमान काल के वाक्य हो।
(२) Personal (व्यक्तिशः, स्वतः) – अपने विधान की शुरुआत मैं, मेरा, मुझे, ऐसे प्रथम पुरुष एकवचन से करें। उदाहरण- मैं अच्छा अध्ययनशील विद्यार्थी हूँ मेरा स्वास्थ्य अच्छा है आदि।
(३) Positive (सकारात्मक)- मेरे शरीर में किसी भी प्रकार का दर्द नहीं है, इस वाक्य में ‘नहीं’ शब्द आया है, अतः हरसंभव ‘नहीं’ शब्द न आये ऐसा प्रयास रहे।
हमें आवश्यक वाक्य तैयार होने पर स्वगत उच्चारण करने, स्वयं बोलने की आवश्यकता नहीं है।
विशेषतः अध्ययन प्रारंभ करने के पूर्व बाद से, वे विधान शांति से, श्वासोच्छवास के साथ, मन में ही, उच्चारण करें, यदि गणित विषय कठिन लगता हो तो गणित का अभ्यास शुरू करते समय मुझे गणित विषय बहुत ही प्रिय है, यह बहुत आसान विषय है, ऐसी स्वयं सूचना दें, तत्पश्चात गणित के प्रश्न हल करें।
यह स्वयं सूचना देते हुए, आंखों के समक्ष, मन ही मन एक कल्पना करें, चित्र देखे (visualise)। मेरा भाषण उत्तम हो रहा है ऐसा उच्चारण करते हुए यह कल्पना करें कि हम व्यास पीठ पर खड़े हैं, सामने अनेक श्रोतागण बैठे श्रवण कर रहे हैं और भाषण कर प्रभावित होकर सम्पूर्ण भाग तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज रहा है, ऐसा चित्र आंखों के समक्ष देखें! यह पद्धति स्वयं सूचना उपयोग करने पर आज हमें कठिन लगने वाला, नापसंद, अनमना लगने वाला विषय सरल और पसंदीदा अनुभव होगा। निरंतर, श्रद्धा से करना आवश्यक है। नुकसान तो होगा ही नहीं अपितु लाभ ही होगा।
चलो, आज से ही करके देखें!!
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
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