✍ दिलीप वसंत बेतकेकर
“हमारा राजू लेटे हुए पढ़ाई करता है कितनी बार कहा उसे कि ऐसी स्थिति में पढ़ाई ना करो, परन्तु मानता ही नहीं आप जाए समझाओ ना सर!!” राजू की मां दुःखी, हृदय से कह रही थी। कहते हुए राजू की ओर देख रही थी और राजू सिर झुकाकर खड़ा था!
अनेक माता-पिता की ऐसी ही शिकायत रहती है। हमारे बार बार कहने पर भी बच्चे मानते नहीं। लेटे हुए पढ़ते हैं, और कुछ समय पश्चात पुस्तक छाती से लगाकर निद्रा ग्रस्त हो जाते हैं।
लेटे हुए स्थिति में पढाई ना करो ऐसा पालक और शिक्षक अनेक बार बच्चों को समझाते हैं, परंतु परिणाम शून्य ही होता है!
ऐसे लेटे हुए अभ्यास न करो हजार बार कहने पर भी परिणाम शून्य होगा। मुझे मालूम है, निश्चित ही आज्ञा देने पर भी नहीं आदत नहीं बदलेगी। ऐसा क्यों होता है? आदत क्यों नहीं बदलती? बच्चे सुनते क्यों नहीं? इसलिए कि उन्हें लेटे हुए पढाई करने पर क्या नुकसान होता है यह मालूम नहीं। इस बात का वैज्ञानिक पहलू जब तक वे नहीं जान पाते, तब तक वे ऐसा ही करेंगे। तो फिर क्या करें? शास्त्रीय पद्धति से, वैज्ञानिक दृष्टि से उन्हें अवगत कराएं। जिन्हें समझ में आएगा वे आदत में अवश्य बदलाव लाएंगे। आज की परिस्थिति में अनलर्न, रिलर्न की आवश्कता है। आज तक किया हुआ यदि गलत हुआ तो अनलर्न करके नई पद्धति से रिलर्न करना होगा।
केवल लेटे हुए अभ्यास करना अथवा न करना इतना ही विषय ना होकर यह केवल छोटा सा हिस्सा है, अंश है। सर्वथा उठते हुए, बैठते हुए, चलते हुए, और सोते हुए भी शरीर की आसन पद्धति (Postures), कैसे हो यह एक महत्वपूर्ण विषय है। फिर भी अंग्रेजी, गणित, आदि जैसे महत्वपूर्ण (?) और गहन (?) विषयों की तुलना में आसन ये विषय महत्त्वपूर्ण माने नहीं जाते हैं, यही दुर्भाग्य पूर्ण है। क्या किया जाए? अध्ययन करते समय रीढ़ की हड्डी को पीठ को सीधा रखना चाहिए। कुर्सी अथवा दीवार का पीठ को सहारा दिया जा सकता है। अध्ययन के लिए बैठक स्थिति, आसन सही स्थिति में रखने हेतु आदत बदलनी ही पड़ेगी।
पीठ सीधी होने पर हम अधिक हवा अंदर खींच सकते हैं। ऐसे में फेफड़ों द्वारा श्वसन क्रिया पूर्ण क्षमता पूर्वक होगी। इससे पर्याप्त प्राणवायु मिलेगा। यह प्राणवायु जितना अधिक मात्रा में होगा उतना ही दिमाग ताजा, तल्लख रहेगा। शरीर के मान से दिमाग आकार में छोटा है परन्तु उसे प्राणवायु, रक्त, गुलुकोज, 20% ! अर्थात दिमाग के लिए अपेक्षाकृत अधिक प्राणवायु आवश्यक होता है। दिमाग का प्रदाय कम होने पर उनकी कार्य क्षमता कम हो जाती है। आलस्य हो जाता है, सुस्ती आती है, नींद आती है। इस सब प्रक्रिया के लिए पूर्ण श्वसन चाहिए। इस पूर्ण श्वसन हेतु सही ‘आसन’ स्थिति आवश्यक है।
लेटे हुए अभ्यास करते हुए यह सब हो सकता है क्या? आजकल टेबल, कुर्सी, विद्यालय में बेंच पर बैठने का चलन, आदत बनती जा रही है। वास्तव में तो पालथी मारकर बैठना (दोनों पैर एक दूसरे में फंसाकर सीधे बैठना) सर्वोत्तम होता है। इस प्रकार से बैठने से जमीन पर बैठकर भी, दीवार से पीठ सटाकर बैठ सकते हैं। कुर्सी पर भी इस आसन से बैठा जा सकता है। जमीन पर छात्रों को बैठाने वाला विद्यालय निकृष्ठ लगता है। किन्तु इस प्रकार की बैठक दोषमुक्त रहती है।
खड़े रहना, चलते समय भी शरीर के आसन दोषपूर्ण रहते हैं। झुके हुए कंधे, नीचे लटके कंधे (Drooping) होने पर फेफडे संकुचित होंगे। परिणामतः हुवा कम ली जाती है। कम हुवा अर्थात् कम प्राणवायु। कम प्राणवायु के कारण दिमाग के लिए प्रर्याप्त मात्रा में प्राणवायु की पूर्ति नहीं होती। ऐसी ये एक दूसरे पर निर्भर रहने वाले, एक दुजे के लिए सहयोगी प्रक्रिया है।
मानव नींद किस प्रकार-किस आसन में लेते हैं इस का सही (परफेक्ट) वर्णन समर्थ रामदास स्वामी द्वारा किया गया है। दोनों पैर छाती के पास सिमटा कर अथवा पेट के बल लेटना ये दोनों स्थितियां सदोष है। चलते हुए गर्दन झुकाकर चलना, खड़े रहते हुए कंधे झुकाकर रखना, पीठ झुकाकर बैठना, आदि आसन दोषपूर्ण होते हैं। इन दोषपूर्ण आसनों के परिणाम दूरगामी दृष्टि से गंभीर, हानिकारक होते हैं, वर्तमान में भले ही वे सामान्य लगे!
शरीर को अधिकाधिक आराम देने के विचार से और पड़ोसियों के पास जो जाते हैं उसकी अपेक्षा अधिक कीमती, ऊंची किस्म का सोफासेट, फर्नीचर चाहिए, इस स्पर्धा के कारण अपने हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं, यह बात किसे मालुम और कौन समझे!!
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
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