✍ दिलीप वसंत बेतकेकर
विभिन्न कार्यों के लिए हम विभिन्न प्रकार के औजार, शस्त्र आदि का प्रयोग करते हैं। नाई के औजार डाक्टर के औजारों से भिन्न होते हैं। प्लम्बर, इलेक्ट्रीशियन, मैकेनिक, हलवाई, किसान, सैनिक आदि सब के अपने अपने औजार होते हैं। वे सभी अपने अपने शस्त्रों की देखभाल सावधानी पूर्वक करते हैं, उन्हें अपनी जान से अधिक संभालते हैं। शस्त्र यदि अच्छे होंगे तभी उनके अपने कार्य आसानी से, जल्दी, कम परिश्रम से और सुव्यवस्थित होंगे, वरना समय, परिश्रम अधिक और कार्य की गुणवत्ता अच्छी नहीं होगी।
अब्राहम लिंकन कहते थे कि If I am given eight hours to cut the tree, I will spend first two three hours to sharpen my axe. पेड काटने के लिए मुझे यदि आठ घंटे उपलब्ध होंगे तो प्रथम दो तीन घंटे मैं अपनी कुल्हाड़ी को धार लगाने के लिए खर्च करूंगा। कुल्हाड़ी को धार लगाना एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। इस हेतु पर्याप्त समय खर्च करना आवश्यक होता है। ये समय की बरबादी नहीं अपितु उसका सदुपयोग कहलाएगा।
जिस प्रकार से विभिन्न व्यवसाय के लिए उपयोगी भिन्न भिन्न औजार हैं, शस्त्र हैं, आयुध हैं, इसी प्रकार अध्ययन के लिए भी ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनेक साधन, औजार उपलब्ध हैं। कार्य को अधिक सरल करने हेतु मानव द्वारा ऐसे साधन तैयार किए गए हैं जैसे – थर्मामीटर, स्क्रू ड्रायवर, ट्रैक्टर, कुल्हाड़ी, हसिया, संगणक, चस्मा, पेन, आदि कई प्रकार के उपकरण। परन्तु ईश्वर द्वारा प्रदत्त जन्मतः हमें साधन मिले हैं वह है- आंख, कान, नाक, जीभ, हाथ, पैर आदि। ये सभी साधन अध्ययन हेतु अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण हैं। अतः इनकी सुरक्षा, देखभाल, सावधानी पूर्वक करना भी आवश्यक है। इस बात का एहसास होना जरूरी है। दूसरी बात यह कि इनके प्रति कृतज्ञ हों। तीसरी मुख्य बात यह है कि इन साधनों, औजारों, शस्त्रों को निरंतर तीक्ष्ण धारदार बनाएं रखना भी हमारा कर्तव्य है। उन्हें जंग न लगे इसका ध्यान रखन है। उनकी क्षमता में वृद्धि करने का भी ध्यान रखना है। इस हेतु निरंतर प्रयास रत रहना होगा।
एक उदाहरण देखें – आंखों का कार्य क्या है? अंग्रेजी में अनेक शब्द है- see look, peep, gaze, stare, view, observe, perceive, visualize आदि प्रत्येक शब्द की क्रिया, अर्थ अलग अलग है। ‘See’ की ओर से जैसे जैसे Visualize की ओर जाते हैं वैसे वैसे गहनता में वृद्धि होती है। केवल देखना अलग प्रकार है और निरीक्षण करना अलग प्रकार है। ‘चर्मचक्षु’ अर्थात चमड़ी की आंखे सभी को प्राप्त हैं, परन्तु ‘मनः’ ‘प्रज्ञा चक्षु’ अल्प ही दिखते हैं। इसीलिए आंखो की क्षमता में वृद्धि करना अध्ययन के लिए हितकारी है।
इसी प्रकार कान का उदाहरण- सुनना और श्रवण करना ये दोनों भिन्न क्रियाएं हैं। दोनों की शुरुआत कान से होती है। परन्तु’ श्रवण’ हेतु केवल कान का होना पर्याप्त नहीं है। अंग्रजी में Hear और Listen ऐसे दो शब्द उपयोग करते हैं। Hear में से ‘H’ निकालने पर ‘Ear’ शेष रहता है। अर्थात सुनने के लिए कान पर्याप्त है। परन्तु ‘Listening ‘ इतना सहज, सरल, आसान नहीं है। जब आंख, कान, और मन इन तीनों का त्रिवेणी संगम होता है तब ‘Listening’ होता है। (श्रवण) सुनने के लिए (Hear) श्रम नहीं होते परन्तु ‘Listening’ के लिए (श्रवण) श्रम होते हैं। अभ्यास होना, साधना होना आवश्यक है। बोलने की प्रक्रिया तो चलती रहती है। परन्तु सुंदर, साफ बोलने हेतु जीभ, वाणी पर संस्कार होना आवश्यक है।
Hearing is with ears, but listening is with the mind. You cannot listen if you are talking, and if you are talking you are not listening. Listening is an art. Listen with your eyes also.
सौभाग्य वश आज इन सब का का विकास करने के लिए विशिष्ट पद्धति, मार्ग उपलब्ध है। कार्यशालाएं आयोजित हो रही हैं।
परन्तु दुर्भाग्य यह है कि शाला, कॉलेजों में इन विषयों की अनदेखी, उपेक्षा हो रही है। लगातार एक के बाद दूसरा शिक्षक कक्षा में आकर अपना व्याख्यान दे जाते हैं। पाठ्यक्रम पूर्ण करने का अधिक ध्यान रहता है। फटाफट अध्याय समाप्त करने की स्पर्धा ही लगी रहती है। इस अध्याय समाप्ति की स्पर्धा से विद्यार्थी समाप्त अवश्य होते दिखाई दे रहे हैं।
शाला में यह प्राप्त न हो रहा हो तो और कहीं प्राप्त है क्या इसकी तलाश पालक और विद्यार्थी द्वारा करनी होगी। और कोई अन्य पर्याय भी तलाशें।
आंख कान, नाक, हाथ, वाणी ये हैं अध्ययन के औजार…… जो प्रत्येक को ईश्वर द्वारा प्रदत्त हैं….. इनकी ओर कृतज्ञ भाव से देखें। आज दुनिया में अनेक के पास इनमे से एक दो औजार उपलब्ध नहीं हैं, जिनके पास सब है वे भाग्यवान ही तो हैं न!
ये सभी औजार हमे प्राप्त हैं इसलिए संतोष-समाधान मानना पर्याप्त नहीं। इन्हें निरंतर साफ करना होगा, दुरुस्त रखना होगा। सतर्कता से, विचार पूर्वक इनका रोज उपयोग करना होगा। वह तीक्ष्ण रहे, धार लगाने का परिश्रम करना होगा। जितने साधन धारदार होंगे उतना अधिक अभ्यास कम समय में, और अधिक परिणाम कारक होगा!!
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
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