✍ दिलीप वसंत बेतकेकर
पुस्तक खुलते ही अपने को पंख लगे होने का अनुभव होता है। ‘When books are opened, you discover you have wings’ हेलेन हेयश टेलीफोन मार्गदर्शिका पुस्तिका में चाहेनुसार नाम और नंबर तलाशना है वाचन! होटल में मेन्यू में से मनचाहा पदार्थ तलाशना भी ‘वाचन’ है!
ट्रेन के आने का प्लेटफॉर्म पर प्रतीक्षा करते हुए या डाक्टर के क्लीनिक में अपनी बारी की, प्रतीक्षा करते हुए, समाचार पत्र, नियत कालिक, मासिक आदि पर नजर डालना भी ‘वाचन’ है! अपनी पसंदीदा कहानी, उपन्यास, आदि पढ़ना या स्वयं सीखने हेतु या समझने हेतु, दोबारा उपयोग में लाने हेतु, पढ़ना। यह भी ‘वाचन’ है। सरसरी तौर पर ‘वाचन’ शब्द का उपयोग करें तो भी वह एक ही है, समान है, यह कहना उचित नहीं होगा।
अंग्रेजी में अनेक शब्द हैं- स्कैनिंग, स्किमिंग, ग्लांसिंग, इत्यादि के अर्थ भी भिन्न हैं। आवश्यकता के अनुसार इन शब्दों को उचित स्थान पर उपयोग करना, जानना आवश्यक है। परन्तु विद्यार्थी होने से, अभ्यास हेतु जो वाचन करना पड़ता है वह अधिकतम 95% सघन, समझते हुए, सावधानी पूर्वक, विस्तृत, सहेतु होता है। अध्ययन के लिए किए जाने वाले वाचन में प्रत्येक शब्द महत्त्वपूर्ण होता है। जब हम बाजार में आते जाते, चलते फिरते, फलक, इश्तेहार सिनेमा फलक, दुकानों पर लिखा, आदि कुछ पढ़ते हैं वह निरूद्देश्य वाचन है। अध्ययन हेतु इस प्रकार का वाचन योग्य नहीं होता और लाभकारी नहीं होता।
अध्ययन-अभ्यास हेतु हम वाचन के लिए कौन से तंत्र, प्रकार, पद्धति का उपयोग कुरें, वह अब देखें –
(१) कक्षा में जिस अध्याय को पढ़ाया जाना है वह पूर्व से ही एक बार पढ़ लेना चाहिए। उसका वाचन करते समय हाथ में पेंसिल रखें। कठिन शब्द, संकल्पना, समझ में न आने वाला अंश, महत्त्वपूर्ण अंश को नीचे रेखंकित करें अथवा बाजू में/हाशिए में निशान लगा लें।
(२) वाचन करते हुए अथवा वाचन समाप्त होने पर स्वयं को ही तीन प्रश्न पूछें। (अ) मुझे क्या समझ में आया? (ब) मुझे कौन सा अंश समझ में नहीं आया, अथवा कठिन लगता है? और (स) मुझे क्या जानना, समझना आवश्यक है? इन से वाचन फोकस्ड होगा, सार्थक होगा, हेतुपूर्ण होगा। इस पद्धति से अभ्यास करना लाभदायक होगा।
(३) वाचन अधिक अर्थपूर्ण, केंद्रगामी होने के लिए एक अन्य पद्धति का उपयोग कर सकते हैं। पेंसिल अथवा रंगीन शाई वाले पेन से छः प्रकार के निशान लगाएः
- हम जो सोचते हैं वैसा, हम सहमत हों तो, या जो ज्ञान है ऐसे अंश पर, मजमून के समक्ष, कल्पना के समक्ष ‘३’ निशान लगाए।
- हम जिससे सहमत नहीं, जो हमे ज्ञात नहीं, उसके समक्ष ‘x’ निशान लगाए।
- पूर्व में जो मालूम नहीं था, किन्तु अब ज्ञात हुआ है, अभी समझ में आया हो तो वहां ‘’ निशान लगाए।
- हमें आश्चर्यजनक अनुभव कराने वाला, अथवा नया सा लगने वाला हो तो ‘!’ निशान लगाए।
- हमें उलझन भरा लगने वाले अंश पर ‘?’ निशान लगाए।
- अत्यंत महत्वपूर्ण, जिसे हम भूलें नहीं, अथवा याद रखना है, उस स्थान पर * निशान लगाए। । ऐसी आदत डालने पर वाचन अधिक अर्थपूर्ण, फलदाई सिद्ध होगा।
जोसेफ वांगन और थामस इस्टस ने एक सुंदर पद्धति विकसित की है। यह ‘जोडी वाचन’ और ‘पुनः प्रश्न’ इनका मिश्रण है।
दो बच्चों की एक ‘जोड़ी’ बनाते हैं। दोनों ही किसी अध्याय के ‘शीर्षक’ और ‘उप शीर्षक’ का वाचन कर पुस्तक बंद कर देते हैं। अब प्रत्येक ने अपनी जोड़ीदार को, उन शीर्षक और उप शीर्षक पर आधारित प्रश्न पुछकर उत्तर पाना है। इसी प्रकार, क्रमवार एक परिशिष्ट, एक अध्याय, विभाग पढ़कर एक दूसरे को प्रश्न करना, उत्तर पाना। आवश्यक हुआ तो पुस्तक खोलकर देख सकते हैं।
फिर एक जोड़ीदार दूसरे को यह बताएगा कि पढ़े हुए अंश में क्या अधिक महत्तवपूर्ण है और उसका महत्व क्या है यह कारण सहित प्रस्तुत करेगा। दूसरा जोड़ीदार इस पर अपनी सहमति अथवा असहमति, कारण सहित बताएगा। फिर दोनो ही उस पढ़े हुए अंश का एक सारांश लिखेंगे। आवश्यकतानुसार चित्र, आकृति भी बनाएंगे।
इस पद्धति से निष्क्रिय वाचन नहीं होगा। दोनों ही (जोड़ीदार) सक्रिय रहते हैं। अत्यंत मौलिक ऐसी इस पद्धति का उपयोग अवश्य करके देखें। पढ़ा हुआ अंश लिखते समय हम एक दूसरे को समझा रहे हैं, सिखा रहे हैं ऐसा अनुभव होगा।
मरिलीन इनेट और एंथोनी मनझो की भी एक पद्धति है – Read, Encode, -Annotate, Ponder. अर्थात RE-P!!
चुने हुए भाग को पढ़ें (Read).
Encode – वाचन पश्चात जितना याद रहे उसे लिखे। पुस्तक बंद करने तक आप उसमें देख सकते हैं, किन्तु एक बार बंद करने के बाद उसमें बगैर देखे ही लिखें।
Annotate – अपने पढ़े हुए भाग का सारांश तैयार करें। यह तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखें कि कौन सा भाग सम्मिलित करना है और कौन सा नहीं! अधिक महत्वपूर्ण संकल्पना को ही सारांश में ध्यान दें।
Ponder – पढ़े हुए भाग का मनन चिंतन करें।
केवल ऊपरी तौर पर, सतही वाचन का कुछ उपयोग नहीं है।
अल्डस हक्सले के अनुसार –
Every man who knows how to read has, it in his power to magnify himself, to multiply the way in which he exists, to make his life full, significant and interesting.
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
और पढ़ें : पढ़ेंगे तभी बढ़ेंगे – १