पढ़ेंगे तभी बढ़ेंगे – १

✍ दिलीप वसंत बेतकेकर

वाचन अध्ययन का पहला पायदान है। अध्ययन की शुरुआत वाचन से ही होती है। आगे तो हम अनेक कौशल्य देखने वाले हैं। परन्तु वाचन के बिना अभ्यास में आगे बढ़ना संभव नहीं है। ज्ञानी, अनुभव प्राप्त लोग कहते हैं –

वाचन और मनन, यही है ज्ञान के साधन ‘वाचन’ अन्य सभी अध्ययन कौशल्य की जननी है।

Reading is the mother of all the study skills.

कई विद्यार्थियों को प्रामुख्य से वाचन से ही अरुचि होती है, आलस्य आता है। पढ़ेंगे तो बढ़ेंगे यह एक सुंदर वचन है। परन्तु पढ़ते हुए ही (वचन को ही, पालन नहीं) पूरी जिंदगी निकल जाती है।

कुछ विद्यार्थी अपनी पद्धति से पढ़ते हैं। उनमें अनेक दोष हो सकते हैं। पढ़ते हुए.. शब्द कौशल्य में भी अनेक छोटे छोटे बारीक दोष होते हैं। वे यदि नहीं समझे, अथवा उनकी ओर अनदेखी किया जाए तो कौशल्य आत्मसात नहीं होता। ये बातें प्राथमिक स्तर पर ही ध्यान में लाना चाहिए। उनका प्रशिक्षण देकर उसे आदत में लाना होगा। परन्तु इन सब कार्यों के लिए समय निकालें तब न!

विद्यार्थियों द्वारा प्रथम परहेज पालन है बैठकर पढ़ना, लेटे हुए नहीं। इसके कारण हम पूर्व में ही विचारार्थ ले चुके हैं। दोबारा इसकी पुनरावृत्ति करनी चाहिए।

पढ़ने के लिए (वाचन संबंध में) कुछ नियम हमे स्वयं ही निश्चित करना चाहिए। कई व्रत होते हैं, उन्ही के समान एक व्रत यह भी है- वाचन व्रत!

प्रतिदिन न्यूनतम कुछ निश्चित पृष्ठ का वाचन किए बगैर सोएंगे नहीं ऐसा निश्चय करें। ‘वाचन’ का भी एक शास्त्र है। कैसा वाचन करें, क्यों करें, वाचन की गति को कैसे बढाएं, अर्थपूर्ण वाचन, आकलन ऐसे अनेक छोटे छोटे बिंदु, उपबिंदू उसमें होते हैं। प्रतिदिन एक घंटा वाचन करने पर एक वर्ष में एक हजार पृष्ठ वाली अठारह पुस्तकें पढ़कर पूर्ण कर सकते हैं। शरीर के लिए व्यायाम की जैसी और जितनी आवश्यकता होती है वैसी और उतनी ही मन बुद्धि के लिए वाचन की जरूरत होती है। पुस्तक खोलकर पढ़ते हुए प्रत्येक बार हम कुछ नया सीख रहे होते हैं। मार्क ट्रेन के अनुसार जो मनुष्य पढ़ता नहीं है वह वाचन न आने वाले व्यक्ति के समान है। मंगेश पाडगावकर की ग्रंथ ‘आमुचे साथी’ कविता अवश्य पढ़ना चाहिए। उसमे लिखित दो पंक्तियां हैं –

वाचन आहे प्रवास सुंदर नव्या नव्या ज्ञानाचा, इतिहासाचा, साहित्याचा, आणिक विज्ञानाचा!

(वाचन नये नये ज्ञान का, इतिहास का, साहित्य और विज्ञान का सुंदर प्रवास है।) वाचन यह एक ऐसी कला है जिसके लिए कुछ भी विशिष्ट समय, स्थान, अन्य सामग्री, (पुस्तक आवश्यक है) आवश्यक नहीं होती। दिन में, रात्रि में, किसी भी समय पर वाचन कर सकते हैं। मन में आते ही पढ़ें। प्रसन्नता हो तो, दुःख के समय, बीमार होने पर अथवा स्वस्थ होते हुए, कभी भी वाचन कर सकते हैं। घर पर, वाचनालय में, रेलवे अथवा बस स्थानक पर, अस्पताल में अथवा अन्य कहीं भी वाचन कर सकते हैं। इतनी सरल, आसान अन्य कोई कला नहीं है।

ग्रंथ अपले गुरु असती, जिवा भावाचे सखे सोबती, नसता कोणी सहप्रवासी, ग्रंथचि होती तुम्हा सांगती। (ग्रंथ हमारे गुरु है, दोस्त है। प्रवास में साथ देने वाले हैं।)

हमने जब सर्वप्रथम वाचन प्रारंभ किया था, उस समय पूर्ण शब्द भी हम ठीक से पढ़ नहीं पाते थे। शब्द का एक एक अक्षर अलग अलग, धीरे धीरे पढ़ पाते थे। याद है क्या वह समय? और पढ़ने का प्रयास? ‘नमन’ शब्द पढ़ना हो तो ‘न’ ‘म’ ‘न’ ऐसा पढ़ते थे! समय चलते ‘गगन’, कमल ऐसे शब्द और उसके पश्चात गगन नमन कर ऐसे तीन शब्दों का वाक्य पढ़ने लगे। और हमारे वाचन की प्रगति अधिक न हुई। हम जितनी सहजता से छोटे वाक्य पढ़ते हैं उतनी सहजता से स्वामी विवेकानंद, नेपोलियन जैसे विद्वान एक ही दृष्टिक्षेप में पुस्तक का एक पूर्ण पृष्ठ पढ़ लेते थे। इतनी उनकी अगाध वाचन क्षमता थी।

जिस प्रकार टंकलेखन (टाइपिंग) का वेग होता है, (गति), पैंतीस अथवा चालीस शब्द प्रति मिनिट, उसी प्रकार वाचन की गति होती है………… फलां शब्द प्रति मिनिट। आदत हो जाने पर अभ्यास द्वारा, प्रशिक्षण द्वारा यह गति में वृद्धि कर सकते हैं। वर्तमान में शालाओं में ऐसी व्यवस्था नहीं दिखती। लोकमान्य तिलक कहते थे- शाला में दी गई सीख सम्पूर्ण जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए ग्रंथ वाचन आवश्यक है।

जीवनोपयोगी कौशल्य वर्तमान की शालाओं की आवश्यकता है। इसीलिए हमें शाला के बाहर भी स्वयं को बहुत अधिक सीखना है और अन्य लोगों को भी सीखना है। वाचन संबंध में अधिक गहन विचार हम भविष्य में करेंगे ही अभी तो हम यही कहेंगे-

Books are keys to wisdom treasures Books are the gates to lands of pleasure, Books are paths that upward lead Books are friends, come let’s read.

(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)

और पढ़ें : समय का मोल

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