– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया!
केसर की क्यारी कश्मीर गोला बारूद की जहरीली हवा की चपेट में एक बार फिर आ गई। एक बार फिर भारत माता के मुकुट पर दुश्मनों की नजर है। तीन-तीन बार मुँह की खाने के बाद भी पाकिस्तान ने एक बार फिर घुसपैठ कर कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिश की है। संघर्ष जारी है। प्रतिदिन कई-कई जवान अपना रक्त माँ भारती के चरणों में अर्पित कर रहे हैं। ऐसे में ‘हम बच्चे क्या कर सकते हैं?’ कहकर अपने कर्तव्यों से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता। छोटे-छोटे बच्चे युद्धों में कैसी भूमिका निर्वाह कर सकते हैं इसका उदाहरण देने के लिए आपको एक छोटी सी घटना सुनाता हूँ।
बात है तब कि जब विश्वयुद्ध चल रहा था जापान पर हुए शत्रु राष्ट्र के आक्रमण से जापान को हुई जन-धन की हानि इतनी अधिक थी कि ऐसा लगने लगा कि अब जापान वर्षों तक विश्व में सर उठाने के लायक नहीं रहेगा। ऐसे कठिन समय में भी वहाँ के सैनिकों ने साहस नहीं खोया था। ऐसे समय में सीमा से सटे हुए गाँव का एक छोटा सा गडरिया बालक बकरियाँ चराते हुए जब एक ऊँचे टीले पर पहुंचा तो देखा शत्रु राष्ट्र के सैनिकों की एक टोली ने वहाँ मोर्चा लगा दिया है।
बालक को देखते ही शत्रु सैनिकों ने पहले तो सोचा उसे मार दें लेकिन फिर लगा कि छोटा सा बालक है, बेकार इसे क्यों मारा जाए? इधर बालक ने सोचा दुश्मनों को यहाँ से किस तरह भगाया जाए? बेचारे की छोटी सी बुद्धि में और कुछ नहीं आया तो उसने उन सैनिकों से बाल सुलभता से कह दिया, “अरे आप लोग इस पहाड़ी पर क्यों आ गए? यहाँ तो भूत रहता है। आप सबको एक-एक कर वह मार डालेगा।” बच्चे की बात सुनकर कुछ सैनिक तो सामान्य रहे लेकिन कुछ भयभीत हो गए। सोचने लगे इस छोटे से बालक को क्या पता? जो बड़ों से सुना होगा वही तो बता रहा है। कहीं सचमुच यहाँ भूत तो नहीं?
बालक उस समय तो सैनिकों को असमंजस में छोड़कर घर आ गया किन्तु रात्रि में उसे नींद नहीं आ रही थी। वह यही सोच रहा था कि अपने देश की सेना को सूचना देने का समय तो बचा नहीं। गाँव के लोग भी तोप का मुकाबला नहीं कर सकते। अब तो बस एक ही रास्ता उसे सूझ रहा था। उसने मन ही मन दृढ़ निश्चय किया और आधी रात में धीरे से उठकर उसी टीले की ओर चल दिया। चुपचाप वह तोप के पास तक पहुँच गया। केवल एक पहरेदार जाग रहा था वह भी तोप से कुछ दूरी पर। बच्चा धीरे से तोप की नाल के सामने की ओर से अन्दर घुस गया। रात्रि में कड़ाके की सर्दी में भी उसने आवाज नहीं की।
सुबह उठते ही शत्रु राष्ट्र के सैनिकों ने गोला-बारूद भरकर जैसे ही तोप चलाई उसकी नाल में से रक्त की धार फूट पड़ी। हड्डियों और माँस के चिथड़े हवा में तैर उठे। यह दृश्य इतना भयानक था कि पूरा दल भय के मारे काँप उठा। जब दो-चार सैनिक भूत-भूत कहकर भागे तो बाकी सैनिकों की भी हिम्मत जवाब दे गई। वे भी भूत-भूत चिल्लाते हुए सर पर पैर रखकर भाग खड़े हुए।
धमाके की आवाज ने ग्रामवासियों को सतर्क कर दिया। वे दौड़ते हुए टीले पर पहुँचे तो तोप और गोला बारूद खाली पड़े देख तथा चारों ओर रक्तरंजित मानव अवशेष बिखरे देख आश्चर्य में पड़ गए। तुरन्त जापान की सेना को सूचना दी गई सैनिकों ने तोप पर कब्जा कर लिया। सैनिक कमाण्डर ने कहा – ‘इस ओर से आक्रमण की तो हमें कल्पना भी नहीं थी।’ हाँ, बाद में शत्रु राष्ट्र के एक सैनिक ने गिरफ्तार होने पर उस भूतहा घटना का विवरण सुनाया और नन्हें से लापता बालक के बलिदान की कहानी जब सभी को पता लगी तो सेना ही नहीं सारा राष्ट्र उस बाल शहीद को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली देने लगा।
तो देखा न बेटे! किस तरह एक छोटा सा बालक भी अपने राष्ट्र की सेवा कर सकता है? भला आयु इसमें बाधा कैसे बन सकती है? अंत में एक बात जरूर कहना चाहुँगा। अपना देश हर क्षेत्र में विजयी हो और नाम ऊँचा करें यह इच्छा तो हम सबकी रहती ही है। किन्तु क्रिकेट के बुखार में एक विकेट डाऊन होने पर सर पीट लेने वाले बच्चे क्या कभी कारगिल में शहीद होते सैनिकों पर दु:ख प्रकट करते हैं?
कहीं ऐसा न हो मैच जीतने की खुशी में सारे पटाखे छोड़ दो और अपना पूरा कश्मीर जब जीत लिया जाए तो एक पटाखा भी हमारे पास प्रसन्नता प्रकट करने के लिए न बचे। सावधान! राष्ट्र रहा तो ऐसे सैकड़ों कप हम जीत लेंगे। लेकिन एक इंच भूमि भी यदि शत्रु ने ले ली तो ऐसे लाखों कप भी उसकी कीमत नहीं चुका पाएंगे।
-तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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