– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया,
इंदौर के निकट ही स्थित है धार और इस जिला मुख्यालय से लगभग 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित है अमझेरा। अमझेरा के राजा साहब के घर 1802 में पुत्र रत्न प्राप्ति हुई। राजकुमार का नाम रखा गया बख्तावर सिंह। बचपन पूरा साहसी कारनामे करते बिता। तरूण बख्तावर सिंह की ताजपोशी हो गई 35 वर्ष की छोटी ही आयु में। 1837 से 1857 तक वे 20 वर्ष तो अच्छे ही बीते लेकिन 1857 का वर्ष पूरे देश में खलबली मचा रहा था। मंगल पांडे का विद्रोह जहाँ प्रेरणा बना वहीं मालवा निमाड़ की सुहानी शामें भी गर्म होने लगी। टण्ट्या मामा और भीमा नायक जैसे वनवासी योद्धाओं ने तो मानों कमर ही कस ली थी गोरों को खदेड़ देने के लिए। इन सबके कामों में सदैव सहयोगी बने राजा बख्तावर सिंह। इधर 11 जुलाई को इन्दौर में क्रांति का सूत्रपात हुआ उधर अमझेरा भी अगले ही दिन सुलग उठा। दूसरे ही दिन अमझेरा के वकील विमन राव व्यास राजा साहब की योजना से भोपावर से केप्टन हचिन्सन को बताए बिना गायब हो गए। अगले दिन दीवान गुलाबराव तथा सन्दला के ठाकुर भवानीसिंह अपनी सेवा और तोपों के साथ भोपावर जा धमके। सरकारी कागज पत्र और अंग्रेजी झण्डों को आग के हवाले कर दिया गया। बेचारी गोरी सरकार जिन भील सैनिकों के भरासे थी वे भी शत्रु हो गए।
खूब लूट मची। सारा माल अमझेरा के किले में पहुँच गया। पीठ दिखाकर भागा हचिन्सन शक्ति संग्रह कर वापस लौटा। कुछ अपनों की ही दगाबाजी तकलीफ दे गई। लालगढ़ किले पर गोरी सरकार ने कब्जा जमा लिया।
11 नवम्बर को राजा साहब को जंगल से गिरफ्तार कर महू लाया गया। न्याय का नाटक एक बार फिर रचाया गया। अन्तत: इन्दौर में रेसीडेन्सी कोठी से कुछ ही दूरी पर नीम के एक पेड़ पर उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। 10 फरवरी 1858 का दिन था वह। आज भी राजा बख्तावर सिंह के बलिदान का मूक साक्षी वह नीम का पेड़ महाराजा यशवन्त राव चिकित्सालय (एम.वाय. हॉस्पिटल) के परिसर में सर उठाए खड़ा है। पता नहीं अपने मालवा निमाड़ के कितने लोगों को इसकी जानकारी है? इन्दौर शहर की चकाचौंध देखने जाती है, इस पेड़ को छुकर अमर शहीद राजा बख्तावर सिंह को याद करेगी या नहीं पता नहीं? तुम अवश्य उस तीर्थ पर जाकर प्रणाम करना। जीवन धन्य हो जावेगा।
-तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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