✍ रवि कुमार
बालक के पालन-पोषण में माँ की भूमिका व जिम्मेदारी महत्वपूर्ण होती है। और माँ इस भूमिका व जिम्मेदारी को पूर्ण करने में पूरा प्रयास करती है। एक वीडियो में एक माँ हाथ में पात्र व चम्मच लेकर बालक को भोजन करवाने के लिए तत्पर है और बालक मोबाइल में लगा हुआ है। वह भोजन ग्रहण ही नहीं कर रहा। माँ बार बार प्रयास करती है और विफल हो जाती है। बालक के लिए मोबाइल का आकर्षण अधिक है। ऐसे में माँ एक मार्ग निकालती है। वह एक गुड्डा व एक डंडा लेकर आती है और चम्मच में भोज्य पदार्थ भरकर गुड्डे के मुँह से लगाती है। गुड्डा वह ग्रहण नहीं करता और गुड्डे को वह डंडे से पिटती है। यह दृश्य बालक देखता है तुरंत मोबाइल छोड़कर भोजन ग्रहण करने लगता है। इस प्रसंग का अर्थ यह नहीं है कि बालक न माने तो उसे डंडे से पीटे। लेकिन मोबाइल को लेकर समाज में जो स्थिति बनी है उसका प्रतिबिम्ब इस वीडयो में दिखाई देता है।
आज मोबाइल व इंटरनेट की पहुंच सभी तक होने से उसका उपयोग भी बढ़ता जा रहा है। सोशल मीडिया की दुनिया में हर व्यक्ति खोता जा रहा है। पूरे विश्व में फेसबुक यूज़र्स की संख्या 2.91 बिलियन है और यह संख्या भारत में 329.65 मिलियन है। इसी प्रकार विश्व में यूट्यूब यूज़र्स 2.6 बिलियन और भारत में 467 मिलियन; इंस्टाग्राम के 2 बिलियन यूजर्स विश्व में और 230 मिलियन भारत में तथा व्हाट्सएप्प यूज़र्स की संख्या विश्व में 2 बिलियन व भारत में 487 मिलियन है। यह संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। मोबाइल-इंटरनेट व सोशल मीडिया के अधिकाधिक उपयोग ने मनुष्य की जीवन शैली को प्रभावित किया है।
आहार पर प्रभाव
सोशल मीडिया पर कंटेंट की भरमार है। सोशल मीडिया के टूल पर कंटेंट यूजर जनरेटेड होने के कारण हर समय यह कंटेंट बढ़ता जाता है। एक बार व्यक्ति देखना प्रारम्भ कर दे तो उसे चाह कर भी छोड़ नहीं सकता। किसी कारण से कुछ समय के लिए मोबाइल बंद भी कर दे तो खाली होते ही तुरंत देखना प्रारम्भ कर देता है। मध्य अंतराल में भी मन में रहता है कि पुनः सोशल मीडिया पर जाने का कब अवसर मिलेगा। ऐसे में वह भोजन समय पर लेना भी भूल जाता है। वह जब भोजन लेता भी है तो एक हाथ में मोबाइल और आँखे उस पर, दूसरे हाथ से भोजन ग्रहण करता है। ऐसा करने से जो खा रहा है और कितनी मात्रा में खा रहा है, यह उसे भान ही नहीं होता। भोजन से जो स्वाद ग्रहण करना है, वह उसे नहीं पता लगता। मनुष्य को भोजन में क्या खाना, क्या नहीं खाना इसका निर्णय व चयन भी वह नहीं कर पाता।
सोशल मीडिया पर विज्ञापन व फ़ोटो-वीडियो के माध्यम से उसके सामने अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों की जानकारी आती रहती है। ऐसे में वे सभी भोज्य पदार्थ उसके स्वास्थ्य के लिए सही है या नहीं, ये जाने बिना उसे ग्रहण करने का मन बना लेता है। अंततः वह उन भोज्य पदार्थों को ग्रहण करके ही मानता है। यह सब भी उसकी आहार की आदतों को प्रभावित करता है। एक अध्ययन के अनुसार जो लोग खाने-पीने की सामग्री की फोटो सोशल मीडिया पर प्रेषित करते रहते हैं तो उनकी खाने-पीने की इच्छा अधिक बढ़ती रहती है और वे दूसरों की अपेक्षा अधिक खाते हैं।
विहार पर प्रभाव
मनुष्य का जो समय प्रतिदिन खेल-व्यायाम में लगना चाहिए वह समय सोशल मीडिया की लत के कारण उसमें लग जाता है। खेल-व्यायाम के लिए समय ही नहीं निकलता। आजकल नींद की समस्या से अधिक लोग परेशान है। नींद की समस्या के पीछे बड़ा कारण सोशल मीडिया का अधिक उपयोग है। देर तक मोबाइल चलाने से वास्तविकता में नींद का सही समय व्यक्ति को मिल नहीं पाता। जब व्यक्ति सोता है तो सोशल मीडिया पर देखे गए कंटेंट के प्रभाव के कारण उसे ठीक से नींद आ नहीं पाती। बाद में व्यक्ति अनिद्रा के रोग से ग्रसित हो जाता है।
एक बार कुछ मित्रगण भ्रमण के लिए सागर तट पर गए। उनमें से एक ने अपने मोबाइल को होटल के कक्ष में ही छोड़ दिया। सभी ने विचार किया कि कुछ जलपान कर लेते हैं। जलपान की मेज पर सभी बैठे हैं और स्वयं के मोबाइल में लगे हुए हैं। बिना मोबाइल वाला व्यक्ति दूसरों से बात करने का प्रयास कर रहा है। परंतु बार बार प्रयास करने पर भी सफल नहीं हो रहा है। सोशल मीडिया के युग में संवाद कहीं खो सा गया है!
सोशल मीडिया संयम व पथ्य-परहेज
उपरोक्त वस्तुस्थिति से हम घिरे हुए है। सोशल मीडिया के आहार-विहार पर विपरीत प्रभाव के कारण मानव स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। आने वाले समय में कुछ रोगों का कारण ही मोबाइल-इंटरनेट होने वाला है। इस प्रकार की स्थिति कुछ कुछ दस्तक दे रही है। सब कुछ जानते हुए भी मनुष्य कहता है कि क्या करें?
- जीवन में सोशल मीडिया संयम का पालन करना आवश्यक है। ये कहना तो ठीक नहीं होगा कि सोशल मीडिया का उपयोग बंद करें। सोशल मीडिया पर जीवन उपयोगी अनेक प्रकार की जानकारी भी आती है।
- जब हम संयम का पालन करेंगे तो कितना देखना व क्या देखना, यह प्राथमिकताएं भी निश्चित करें।
- संयम के लिए मन पक्का कर अभ्यास करें। छोटे छोटे निश्चय कर पालन करने से अभ्यास बनता है।
श्रीमद भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है –
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥ (गीता – ६.३५)
अर्थात – हे महाबाहु कुन्तीपुत्र! इसमे कोई संशय नही है कि चंचल मन को वश में करना अत्यन्त कठिन है, किन्तु इसे सभी सांसारिक कामनाओं को त्याग (वैराग्य) और निरन्तर अभ्यास द्वारा वश में किया जा सकता है।
- मोबाइल उपवास भी कुछ कुछ प्रचलन में आने लगा है। यदि आप सोशल मीडिया की अधिक गिरफ्त में तो यह उपवास आपके लिए अधिक उपयोगी रहेगा। इसे जीवनचर्या का भाग बनाएं।
- घर में छोटे बालक है तो उनके सामने मोबाइल का उपयोग अधिक न करें। उनकी आयु अवस्था में नकल (कॉपी) करने की आदत होती है। घर में बड़ों को मोबाइल का अधिक प्रयोग करते देख बालकों को भी इसकी इच्छा होने लगती है।
- विद्यालयीन शिक्षा में जब तक बालक है तो उन्हें स्वतंत्र मोबाइल न देवे।
- आपका मोबाइल बालक को उपयोग करना है तो निश्चित अवधि के लिए आपकी देखरेख में ही वे उपयोग करें।
- भोजन करते समय मोबाइल दूर रखें और उसमें इंटरनेट बंद कर देवे।
- घर में हर समय मोबाइल अपने साथ रखना भी आवश्यक नहीं है।
- किसी से बातचीत करते समय मोबाइल मौन अवस्था (साइलेंट मोड) में कर देवे ताकि आप दूसरे से ठीक से बातचीत कर सके।
- जब इंटरनेट संबंधी कुछ कार्य है तो तभी मोबाइल में इंटरनेट ऑन करें।
- आजकल भी कुछ लोग ऐसे मिलते हैं जो सोशल मीडिया पर हैं ही नहीं। कुछ लोग ऐसे भी मिलते हैं जिनके पास स्मार्ट फोन की बजाय कीपैड वाला फोन है। वे अपना व्यावसायिक/अध्ययन कार्य लैपटॉप या डेस्कटॉप पर करते हैं। कितने सुखी होंगे वे लोग!
मोबाइल-इंटरनेट व सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा है तो उससे मानव जीवन में कुछ लाभ भी हुआ है। चाणक्य नीति में कहा गया है – ‘अति सर्वेत वर्जयेत्’ अर्थात अति का सर्वत्र त्याग किया जाना चाहिए। किसी की भी अधिकता हानिकारक होती है। सोशल मीडिया के युग मे उसके अधिकाधिक उपयोग से समस्याएं दिखनी प्रारंभ हुई है। इस कठिनाई से हम स्वयं संयम का पालन कर उभर सकते हैं। निश्चय हमें स्वयं ही करना है!
(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)
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