सनातन धर्म में दीपोत्सव महापर्व

✍ डॉ. रवीन्द्र नाथ तिवारी

Dipotsava

भारत के विभिन्न अंचलों में मनाये जाने वाले त्योहार समृद्ध सनातन संस्कृति के द्योतक हैं। ये त्योहार राष्ट्र की एकता, अखंडता, अटूट प्रेम और हर्षोल्लास की भावना को दर्शाते हैं। इनमें दीवाली सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह त्योहार न केवल भारत में अपितु दुनिया भर में भारतीय समुदाय में भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दीवाली भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो पांच दिवसीय उत्सव है। इस शृंखला में पहला त्योहार त्रयोदशी है, जो आयुर्वेद के जनक आचार्य धन्वंतरि के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है। ऐसा मान्यता है कि सागर मंथन के दौरान आचार्य धन्वंतरि अमृत घट लेकर निकले थे। स्कंद पुराण के अनुसार, त्रयोदशी की शाम को लोग यमदीप अर्पित करने के बाद देवी लक्ष्मी और कुबेर के साथ आचार्य धन्वंतरि की पूजा करते हैं। इस दिन चिकित्सक अपनी दवाओं की प्रभावशीलता के लिए भी प्रार्थना करते हैं। दूसरे दिन, जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है, पितरों को दीपदान किया जाता है। तीसरे दिन महानिशा अमावस्या की रात को दीपोत्सव मनाया जाता है। नवान्न-पूजा या अन्नकूट-पूजा उत्सव दीपोत्सव के बाद प्रतिपदा को होता है। अंत में, कार्तिक शुक्ल को भाईदूज के दिन बहनें अपने भाई के माथे पर मंगल तिलक लगाती हैं और उनकी सुरक्षा व दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।

दीवाली का वर्णन पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। ऐसा वर्णित है कि जब भगवान राम रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटे, तो लोगों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया। एक और लोकप्रिय कहानी यह है कि जब श्रीकृष्ण ने दुष्ट राक्षस नरकासुर का वध किया, तो ब्रज के लोगों ने दीपक जलाकर अपनी खुशी व्यक्त की। इसी प्रकार विष्णु ने राजा बलि की दानशीलता से प्रभावित होकर आश्वासन दिया था कि उनकी याद में भू-लोकवासी प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाएंगे। राक्षसों का नाश करने के लिए देवी मां ने महाकाली का रूप धारण किया और जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तो भगवान शिव ने उनके चरणों में लेटकर उनके क्रोध को शांत किया। उसके बाद लक्ष्मी के शान्त स्वरूप की पूजा प्रारम्भ हुई। इसी रात काली के रौद्र रूप की पूजा करने की भी परंपरा है।

ऐतिहासिक ग्रंथों में उल्लेख है कि गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 साल पहले उनके स्वागत में असंख्य दीपक जलाकर दीवाली मनाई थी। सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी दीवाली के दिन हुआ था और इसे दीपक जलाकर खुशी के साथ मनाया जाता है। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में लिखे गए कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार, कार्तिक अमावस्या पर मंदिरों और नदी तटों पर बड़े पैमाने पर दीपक जलाए जाते थे। अंधकार को दूर कर नई उमंग और चेतना लाने के लिए शुभ कार्य से पहले दीपक जलाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।

दीपक सिर्फ प्रकाश से कहीं अधिक का प्रतिनिधित्व करता है; यह हमारे आध्यात्मिक संबंध का प्रतीक है और हमारे भौतिक और आध्यात्मिक स्वयं के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है। दीपक जलाने से हमारी अंतरात्मा से सीधा संबंध स्थापित होता है तथा व्यक्ति यह प्रार्थना करता है कि दीपक उसके पापों को दूर कर स्वास्थ्य, धन-धान्य, समृद्धि और सुरक्षा प्रदान करे। यह हमें सच्चाई और न्याय के साथ जीने की प्रेरणा देती है।

दीपक अज्ञानता और अंधकार के भय को नष्ट कर ज्ञान और प्रकाश उत्सर्जित करके पूर्णता का आनंद फैलाता है। यह परोपकार के मूल्यों को मूर्त रूप देने और इसके लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए अंतिम मानक के रूप में कार्य करता है। निराशा के समय में, दीपक आशा की किरण बन जाता है, जो व्यक्तियों को खुशी के क्षणों में उत्साहपूर्वक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए मार्गदर्शन करता है। दीपक के निर्माण और प्रदर्शन में विभिन्न संरचनाएं शामिल हैं जो एक सुव्यवस्थित जीवन में योगदान करती हैं। यह हमारे मन-मस्तिष्क की संपूर्ण प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है और हमारे जीवन को अर्थ देता है। दीपक की उपस्थिति आध्यात्मिक प्रगति और शांति लाती है, बाह्य स्रोतों से नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जाती है। हम दीपक की पूजा करते हैं और उसकी कामना करते हैं, क्योंकि यह परब्रह्म का प्रतीक है और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के भाव को समाहित करता है। यह त्योहार ‘अप्प दीपो भवः’ अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो के भाव को बढ़ावा देता है।

आजादी के अमृतकाल में दीपोत्सव पर्व का अपने आप में विशेष महत्व है। दीपावली के अवसर पर प्रत्येक जन द्वारा स्वदेशी और स्थानीय वस्तुओं का प्रयोग करने से देश में स्वावलंबन का भाव बढ़ेगा। अयोध्या में श्री राम मंदिर का पुनर्निर्माण भारत की नव सांस्कृतिक जागरूकता और राम राज्य के सिद्धांतों के प्रति हमारे समर्पण का प्रतिनिधित्व करता है। राम राज्य सभी के लिए शांति, न्याय और समानता सुनिश्चित करता है। यह राष्ट्र मंदिर के निर्माण का प्रतीक है जो देश के मूल तत्व और भावना का भी प्रतीक है। राष्ट्र के प्रत्येक जन-जन में राष्ट्रभक्ति, सामाजिक एकता, समरसता, स्वावलंबन और कर्त्तव्यबोध का भाव बढ़े ऐसी मनोकामना के साथ समस्त देशवासियों को दीपोत्सव महापर्व की अनंत शुभकामनाएं।

ये भी पढ़े: अंदर के दीपक

(लेखक मध्य प्रदेश भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय में क्षेत्रीय निदेशक हैं।)

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *