– सतीश कुमार
इक्कीसवीं शताब्दी में शिक्षा का जितना महत्व है, उससे ज्यादा उतना ही महत्व शिक्षा कहाँ से ग्रहण की जा रही हैं उसका भी है। इसलिए जब हम उन महापुरुषों की बात करते हैं जो यूं तो एक साधारण मानव थे, लेकिन उनका कार्य और उनके व्यक्तित्त्व असाधारण और अभय से परिपूर्ण थे। ऐसे महान पुरुषों ने कहाँ से शिक्षा ग्रहण की, उनके गुरु कौन थे यह जानना बहुत ज़रूरी हो जाता है। इसलिए जब हम स्वामी विवेकानंद को याद करते हैं तो उनके गुरु ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस के जीवन को जानना उतना ही महत्वपूर्ण है।
ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के हुगली जिले के कमरपुकुर गांव में हुआ, गधाधर उनके बचपन का नाम था। जन्म ऐसे घर में हुआ जहां उनके पिताजी खुदीराम चट्टोपाध्याय ने एक झूठी गवाही ना बोलने की वजह से अपने पुश्तैनी घर को छोड़ना पड़ा था। ऐसी जीवंत शिक्षा और मां चंद्रा देवी द्वारा रामायण महाभारत की कहानियां सुनकर गधाधर बड़े हो रहे थे।
16 साल की आयु में गधाधर अपने बड़े भाई रामकुमार के पास कोलकाता चले गए। गधाधर का मन पुस्तकीय और मात्र जीवन यापन वाली शिक्षा में बिल्कुल नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने भाई से एक बार ऐसा कहा- “भाई मात्र रोटी पाने वाली शिक्षा से मैं क्या करूं? बल्कि मैं उस ज्ञान को प्राप्त करना चाहता हूँ जो मुझे हमेशा के लिए संतुष्टि देगा।” आज के समय में जहाँ शिक्षा का स्तर ग्रेड और नौकरी तक रह गया है जबकि शिक्षा मांगती है श्रद्धा, समर्पण और शुद्धता। यह सब विशेषताएं गधाधर में थी। गधाधर को जब दक्षिणेश्वर के एक मंदिर में एक पुजारी के रूप में काम दिया गया तो ऐसे शुद्ध मन और पवित्र विचार वाले गधाधर को मां काली के दर्शन हुए और वह गधाधर से ठाकुर श्री रामकृष्ण बने। वे ना ही कोई बड़े विद्वान थे और ना ही वेद पुराणों के ज्ञाता लेकिन अपने ज्ञान से उन्होंने ईश्वर को भी देखा। और उन्हें श्रद्धा और पवित्रता से अपने कार्य और मार्ग के प्रति ज्ञान प्राप्त हुआ जो उन्होंने चुना था।
आगे चलकर उसी शिक्षा को ठाकुर रामकृष्ण परमहंस ने गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से अपने शिष्यों को दिया। जब हम शिक्षा की बात करते हैं तो वह ऐसी शिक्षा होनी चाहिए जो हमें बड़े लक्ष्य तक ले कर जाए। ठाकुर रामकृष्ण ने अपने शिष्य विवेकानंद से पूछा कि तुम्हारे जीवन का लक्ष्य क्या है तो स्वामी जी ने जवाब दिया- ‘मुक्ति’। तब ठाकुर ने उन्हें बताया कि तुम्हारा लक्ष्य इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है। तुम्हें तो माँ का कार्य करना है। तब स्वामी जी को एक बड़ी दृष्टि देखने को मिली इसलिए शिक्षा वह जो हमें हमारे जीवन को उच्चतम् लक्ष्य तक लेकर जाए।
ज्ञान सिर्फ पढ़कर विश्वास करने से अर्जित नहीं होता उसके लिए अनुभूति चाहिए। जो ज्ञान पढ़ और सुन रहे हैं उस पर स्वयं चिंतन और अनुभव करने से ज्ञान व्यक्ति को उच्चतम् आदर्शों तक अवश्य ले जा सकता है। ऐसा ठाकुर ने अपने जीवन से सिद्ध किया था। ठाकुर के जीवन से यह भी सीखा जा सकता है कि उन्होंने अपने हर शिष्य को एक जैसी विद्या देकर एक संक्षिप्त रूप में नहीं डाला बल्कि उन्होंने अपने हर शिष्य को, जो जैसा है वैसे उसे उच्चतम ज्ञान देना चाहा। शिक्षा ग्रहण करने के हर किसी के लिए एक जैसा मापदंड नहीं हो सकता तो हर किसी की प्रतिभा को जानने के लिए एक जैसा मापदंड क्यों?
गुरु से शिष्य तक ज्ञान को संप्रेषित करने में जितनी भूमिका गुरु की होती हैं उससे कई अधिक भूमिका शिष्य की भी होती हैं। शिष्य ऐसा होना चाहिए जो अपने गुरु पर पूरी श्रद्धा से विश्वास करें। जब ठाकुर जी का स्वास्थ्य कैंसर के कारण से ठीक नहीं था और वह अपने अंतिम दिनों में थे, तब लोग उनसे बहुत घृणा करने लगे थे, क्योंकि वह खून और पस की उल्टियां करते थे। उस समय भी नरेन उनके साथ थे और उन्होंने ठाकुर का खून और पस भी पिया ताकि कोई उनसे घृणा न करें।
ठाकुर रामकृष्ण परमहंस का जन्म उस काल खंड में हुआ जब भारत परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था और अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाने के लिए भारतीय शिक्षा को कुचलने का सोचा। सन् 1836 मैकाले ने ‘मिनट ऑन एजुकेशन’ नामक शिक्षा नीति को प्रस्तुत किया। जिसमें भारतीय विचार और संस्कृति को कुचलने का सोचा; मूर्ति पूजा, धर्म, संस्कृति को गलत बताया। लेकिन यह मात्र कोई संयोग नहीं था कि उसी वर्ष ठाकुर रामकृष्ण परमहंस जी का जन्म हुआ। जिन्होंने मैकाले की इस परतंत्र करने वाली शिक्षा नीति को खंडित किया। ठाकुर को न हीं अंग्रेज़ी आती थीं और न ही उनके पास कोई डिग्री थी। लेकिन फिर भी केशव चंद्र सेन जैसे विद्वानों ने उनके चरणों पर बैठकर ज्ञान अर्जित किया।
ठाकुर रामकृष्ण परमहंस के जीवन से प्रेरणा लेते हुए हम यह कह सकते हैं कि शिक्षा मात्र पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं है अपितु ज्ञान तो स्वयं पर लागू करने और अनुभव करने से अर्जित किया जा सकता है, जो हम ठाकुर के जीवन से देख सकते हैं।
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(लेखक विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी के उत्तर प्रान्त में विभाग युवा प्रमुख हैं।)
Guru shree ramkrishna pramhans ji ek prernadayii guru rhe hm bhi unse svadhyay
Ki prerna lenge.