– प्रशांत पोळ
सांप सीढ़ी
भारत में ‘सांप सीढ़ी’ और विश्व में ‘स्नेक एंड लेडर्स’ इस नाम से प्रसिद्ध इस खेल की खोज भारत में ही हुई है। इसका पहले का नाम ‘मोक्ष पट’ था, तेरहवी सदी में संत ज्ञानेश्वर जी (वर्ष 1272 – वर्ष 1296) ने इस खेल का निर्माण किया।
ऐसा कहा जाता है की संत ज्ञानेश्वर और उनके बडे भाई संत निवृत्तीनाथ, भिक्षा मांगने के लिये जब जाते थे, तब घर में उनके छोटे भाई सोपानदेव और बहन मुक्ताई के मनोरंजन के लिए, संत ज्ञानेश्वर जी ने यह खेल तैयार किया।
इस खेल के माध्यम से छोटे बच्चों पर अच्छे संस्कार होने चाहिए, उन्हे ‘क्या अच्छा, क्या बुरा’ यह अच्छी तरह से समझ में आना चाहिए, यह इस मोक्षपट की कल्पना थी। सामान्य लोगों तक, सरल पद्धति से अध्यात्म की संकल्पना पहुंचे, इस हेतु से इस खेल की रचना की गई है।
सांप यह दुर्गुणों का और सीढ़ी यह सद्गुणों का प्रतीक माना गया। इन प्रतिकों के माध्यम से बच्चों पर संस्कार करने के लिए इस खेल का उपयोग किया जाता था।
प्रारंभ में, मोक्षपट यह खेल 250 चौकोन के साथ खेला जाता था। बाद में मोक्षपट का यह पट, 20×20 इंच के आकार में आने लगा। इसमें पचास चौकोन थे। इस खेल के लिए 6 कौडीयां आवश्यक थी। यह खेल याने मनुष्य की जीवन यात्रा थी।
डेन्मार्क के प्रोफेसर जेकब ने ‘भारतीय संस्कृती परंपरा’ इस परियोजना के अंतर्गत मोक्षपट पर बहुत रिसर्च किया है। प्रोफेसर जेकब ने कोपनहेगन विश्वविद्यालय से ‘इंडोलॉजी’ इस विषय पर डॉक्टरेट की है। प्राचीन मोक्षपट इकठ्ठा करने के लिए उन्होंने ने पूरे भारत का भ्रमण किया। अनेक मोक्षपट का उन्होंने संग्रह किया। कुछ जगह पर इसी को ‘ज्ञानचोपड़’ कहा जाता था। प्रोफेसर जेकब को प्रख्यात शोधकर्ता और मराठी साहित्यिक रा. चिं. ढेरे के पांडुलिपियों के संग्रह में दो प्राचीन मोक्षपट मिले। इन मोक्षपट में 100 चौकोन थे। इसमें पहला घर जन्म का और अंतिम घर मोक्ष का होता था। इसमें 12वां चौकोन यह विश्वास का या आस्था का होता था। 51वां घर विश्वसनीयता का, 57वां शौर्य का, 76वां ज्ञान का और 78वां चौकोन तपस्या का होता था। इनमें से किसी भी चौकोन में पहुंचने वाले खिलाडी को सीढ़ी मिलती थी, और वह खिलाडी ऊपर चढ़ता था।
इसी प्रकार सांप जिस चौकोन में रहते थे, वह चौकोन दुर्गुणों का प्रतिनिधित्व करते थे। 44वां चौकोन अहंकार का, 49वां चौकोन चंचलता का, 58वां चौकोन झूठ बोलने का, 84वां चौकोन क्रोध के लिए और 99वां चौकोन वासना का रहता था। इन चौकोनो में जो खिलाडी आते थे, उनका पतन निश्चित था।
भारत में रामदासी मोक्षपट, वारकरी मोक्षपट, (ज्ञानेश्वर जी का मोक्षपट, गुलाबराव महाराज का मोक्षपट) आदि प्रचलित थे। रामदासी मोक्षपट में 38 सीढ़ीयां और 53 सांप थे। समर्थ रामदास जी ने राम कथा को संस्कार रूप से बच्चों तक पहुंचाने के लिए इसका उपयोग किया।
1892 में यह खेल इंग्लंड में गया। वहां से युरोप में ‘स्नॅक एंड लेडर्स’ इस नाम से लोकप्रिय हुआ। अमेरिका में यह खेल, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, वर्ष 1943 में पहुँचा। वहां इसे ‘शूट एंड लैडर्स’ कहते है।
ताश
सामान्यतः यह माना जाता है कि, दुनिया में बडे पैमाने पर खेले जाने वाले पत्तों के (ताश / कार्ड) खेल का उद्गम, नवमी शताब्दी में चीन में हुआ है। गुगल, विकिपीडिया सब जगह यही उत्तर मिलता है। लेकिन यह सच नहीं है। भारत में प्राचीन काल से पत्तों का खेल खेला जा रहा है। केवल इसका नाम अलग था, इसका नाम था ‘क्रीड़ापत्रम्’!
भारत में जो मौखिक / वाचिक इतिहास चलता आ रहा है, उसके अनुसार साधारणतः ढेढ़ हजार वर्ष पूर्व, भारत में राजे रजवाडों में, उनके राज प्रासादों में ‘क्रीड़ापत्रम्’ यह खेल खेला जाता था।
‘A Philomath’s Journal’ के 30 नवंबर 2015 के अंक में एक लेख आया है – ‘Popular Games and Sports that Originated in Ancient India’। इस लंबे-चौड़े लेख में ठोस रूप से यह बताया गया है कि, ‘क्रीड़ापत्रम्’ इस नाम से पत्तों का खेल, भारत में बहुत पहले से था। इस का अर्थ है, ‘भारत ही पत्तों के (ताश के) खेल का उद्गम देश है’।
मुगल कालीन इतिहासकार अबुल फजल ने इस खेल के संबंध में जो जानकारी लिखकर रखी है, उसके अनुसार पत्तों का यह खेल भारतीय ऋषिओं ने बनाया है। उन्होंने 12 यह आकड़ा रखा। हर पैक में बारा पत्ते रहते थे। राजा और उसके 11 सहयोगी, ऐसे 12 सेट, अर्थात 144 पत्ते। लेकिन आगे चलकर मुगलों ने जब इस खेल को ‘गंजीफा’ के रूप में स्वीकार किया, तब उन्होंने 12 आंकडा तो वैसा ही रखा, लेकिन ऐसे 12 पत्तों के आठ सेट तैयार किये। अर्थात गंजीफा खेल के कुल पत्ते हुए 96।
मुगलों के पहले के जो ‘क्रीड़ापत्रम्’ मिले है, वे अष्टदिशाओं के प्रतीक के रूप में आठ सेटो में थे। कहीं-कहीं 9 सेट थे, जो नवग्रहों का प्रतिनिधित्व करते थे। श्री विष्णु के दस अवतारों के प्रतीक के रूप में 12 पत्तों के दस सेट भी खेल में दिखते हैं। मुगल पूर्व काल के सबसे अधिक पत्तों के सेट, ओरिसा में मिले है।
पहले के यह पत्ते गोल आकार में रहते थे। राज दरबार के नामांकित चित्रकार उस पर नक्काशी करते थे। ये सब पत्ते हाथों से तैयार किये हुए, परंपरागत शैली में होते थे।
शतरंज, लूडो, सांप सीढ़ी, पत्ते (ताश) यह सब बैठकर खेलने वाले खेल है. अंग्रेजी में इसे ‘बोर्ड गेम’ या ‘इनडोअर गेम’ कहा जाता है। विश्व में यह खेल सभी आयु के लोगों में प्रिय है। हमारे लिए गर्व की बात है कि, ये सब खेल भारत ने दुनिया को दिए हैं!
(क्रमशः)