– डॉ. महेश कुमार दाधीच

“भारतीय जीवन शैली” एक समग्र ग्रंथ है जो भारतीय परंपराओं, स्वास्थ्य विज्ञान, आहार-विहार, और आधुनिक जीवन के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक के लेखक श्री रवि कुमार ने इस पुस्तक में भारतीय संस्कृति की गहराई से पड़ताल करते हुए उसे आज के संदर्भ में प्रस्तुत किया है। पुस्तक को आठ प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक भाग जीवन के किसी महत्वपूर्ण पहलू को संबोधित करता है और इसके अंतर्गत छोटे-छोटे अध्याय हैं जो विषय की गहराई को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करते हैं।
सैद्धांतिक चिंतन – इस भाग में भारतीय जीवन शैली की मूल अवधारणाओं को स्पष्ट किया गया है। इसमें यह समझाया गया है कि भारतीय जीवन शैली केवल जीवन जीने का तरीका नहीं, बल्कि यह आहार, विहार और धन प्रबंधन के बीच सामंजस्य स्थापित करने का माध्यम है। ऋतुचर्या के अनुसार भोजन, त्रिदोष सिद्धांत (वात-पित्त-कफ), और आहार चिकित्सा जैसे विषय आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से समझाए गए हैं। “आहार ही औषध” की अवधारणा इस भाग की विशेषता है, जो भोजन को औषधि के रूप में देखने की भारतीय परंपरा को दर्शाती है।
भोजन संस्कार – इस भाग में बताया गया है कि भोजन केवल शरीर की आवश्यकता नहीं, बल्कि एक संस्कार है — यह विचार इस भाग में प्रमुखता से उभरता है। लेखक बताते हैं कि किस प्रकार भोजन के समय, मनःस्थिति और प्रक्रिया से स्वास्थ्य पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह अध्याय आज की भागदौड़ भरी दुनिया में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहाँ लोग अक्सर भोजन को मात्र आवश्यकता मानकर उपेक्षा करते हैं।
पाकशाला – पारंपरिक भारतीय रसोई और उसमें प्रयुक्त औषधीय दृष्टिकोण का यह भाग एक अद्भुत पहलू को उजागर करता है। ‘भारतीय रसोई घर का वैद्य’ अध्याय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो दर्शाता है कि हमारी रसोई के मसाले औषधीय गुणों से समृद्ध हैं।
भोजन संयम, भोजन के समय और विधि का स्वास्थ्य पर प्रभाव, और भारतीय परंपरागत रसोई की संरचना जैसे विषयों को वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।
पंचमहाभूत – इस भाग में जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश — इन पंचमहाभूतों का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव को विस्तार से बताया गया है। विशेष रूप से जल सेवन, प्रकाश और वायु के महत्व को आधुनिक विज्ञान और आयुर्वेद दोनों के दृष्टिकोण से समझाया गया है। लेखक ने इसे सिर्फ धार्मिक या दार्शनिक संदर्भ में नहीं लिया, बल्कि व्यावहारिक और वैज्ञानिक तर्कों के साथ प्रस्तुत किया है।
विहार अर्थात् सम्यक दिनचर्या — इस भाग में दर्शाया गया है कि जीवन का संतुलन केवल आहार से नहीं, बल्कि विहार (दिनचर्या), निद्रा, व्यायाम, योग और वस्त्र चयन आदि से भी बनता है। लेखक ने जीवन की छोटी-छोटी आदतों को बड़े प्रभाव से जोड़ा है और बताया है कि एक सुव्यवस्थित दिनचर्या कैसे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का आधार बन सकती है।
स्वस्थ बालक, स्वस्थ राष्ट्र — यह भाग विशेष रूप से बच्चों के आहार-विहार, मानसिक विकास और शिक्षा प्रणाली पर केंद्रित है। यह एक सामाजिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है कि यदि बच्चों की जीवनशैली सही हो तो भविष्य का राष्ट्र भी स्वस्थ होगा। बालक के मन, बुद्धि और शिक्षण पर आहार-विहार के प्रभाव को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाया गया है।
21वीं शताब्दी की चुनौतियाँ — यह भाग आज के युग की सबसे बड़ी चुनौतियों – जंक फूड, तनाव, सोशल मीडिया – को भारतीय जीवनशैली के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करता है। यह आधुनिकता और परंपरा के बीच सामंजस्य की आवश्यकता पर बल देता है। लेखक ने इनका विश्लेषण करते हुए भारतीय जीवन शैली को इनसे बचाव का उपाय बताया है।
परिशिष्ट — यह भाग व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस में ऋतु अनुसार आहार-विहार, आदर्श दिनचर्या जैसे मूलभूत बिंदुओं को शामिल किया गया है, जिससे पाठक को पुस्तक की अवधारणाओं को दैनिक जीवन में लागू करने में सहायता मिलती है।
निष्कर्ष
“भारतीय जीवन शैली” केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारतीय जीवन दर्शन का सार है। यह ग्रंथ भारतीय परंपराओं को आधुनिक संदर्भ में पुनर्परिभाषित करता है और स्वास्थ्य, आहार, दिनचर्या, और सामाजिक व्यवहार के बीच संतुलन स्थापित करने का मार्ग दिखाता है।
श्री रवि कुमार ने परंपरा और आधुनिकता के बीच एक पुल बनाने का सफल प्रयास किया है। यह पुस्तक उन सभी पाठकों के लिए उपयोगी है जो भारतीय संस्कृति में निहित स्वास्थ्य विज्ञान को समझना और अपनाना चाहते हैं।
(लेखक भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी है।)