✍ दिलीप वसंत बेतकेकर
असीम विद्या, अल्प समय है झर झर ऐसा दौड़ेगा,
वीर कितने हो न तुम, अंत तो आ ही जायेगा!!
ये पंक्तियां समझने में सरल है। विशेष ऐसा कुछ भी नहीं इनमें। परन्तु प्रत्यक्ष जीवन में समय का मोल जानकर, एक पल भी बर्बाद न करते हुए, समय का सदुपयोग करना कठिन है। हमारे जीवन में समय कितना मिलेगा यह कोई भी नहीं बता सकता। परन्तु जो कुछ भी, जितना भी मिला है, उतने समय का सदुपयोग कैसे करें यह समझ नहीं सके तो ईश्वर से विश्वासघात करना होगा। कारण यह है कि ईश्वर ने तो हमें जन्म देकर, जीवन देते हुए विश्वास व्यक्त किया है। उसके पात्र हम बने यह हमारी जिम्मेदारी है।
समय व्यर्थ, जीवन निरर्थ,
समय सार्थ, जीवन कृतार्थ।
ईश्वर ने प्रत्येक के लिए ही प्रतिदिन चौबीस घंटे का समय दिया है, बगैर किसी पक्षपात के। कुछ लोगों को यह समय पर्याप्त नहीं लगता और कुछ लोग इतने समय का क्या करें, यही सोचते रहते हैं। जो इस मूल्यवान समय का अपव्यय करते हैं उन्हें ध्यान रखना है- ruined time, now time is running me.
हम अपना समय किसी अन्य को नहीं दे सकते, और न ही उनका समय हम प्राप्त कर सकते हैं। मेरा समय, मेरा अपना है। और स्वर्ण देकर भी उसे खरीदा नहीं जा सकता। An inch of gold will not buy an inch of time.
इसीलिए स्वर्ण और धन से भी अधिक सावधानीपूर्वक समय का सदुपयोग करना चाहिए। विद्वान लोगों का कहना है कि –
क्षणशः कणशः चैन विद्यामार्थम च साधयेत।
क्षण: त्यागे कुतो विद्या कणः त्यागे कुतो धनम्।।
एक एक क्षण का उपयोग करके कण कण विद्या प्राप्त करना चाहिए। क्षण बर्बाद करने वालों को विद्या प्राप्त नहीं होती। तभी कहते हैं-
क्षण क्षण जीवन बनते, क्षण क्षण जाता जीवन जाते!!
(क्षण क्षण से जीवन बनता है, क्षण क्षण से जीवन जाता है)
पैसे/धन चुराने वाला गुनाहगार वैसे ही जीवन में से क्षण चुराने वाला भी गुनाहगार! होरेसेप्टिल के अनुसार – ‘जो जीवन की परवाह नहीं कर सकता वह पैसों, की कैसे परवाह कर सकता है? जीवन की जिसे कद्र नहीं वह अन्य वस्तुओं की कैसे कद्र करेगा?’
दिनभर, चौबीस घंटे अभ्यास ही करते रहो ऐसा नहीं है- संभव भी नहीं है। खेल, मनोरंजन, परिवार जनों से बातचीत, दोस्तों से गपशप, ये सब महत्त्वपूर्ण हैं। केवल पुस्तक का कीड़ा बन कर रहे यह भी अपेक्षा नहीं है।
शाला, अभ्यास, गृहकार्य, खेल, मनोरंजन आदि सभी बातों के लिए समय देना, और वह भी योजनाबद्ध तरीके से, अर्थात यही है समय का व्यवस्थापन। यह समझना ही आवश्यक है। किसी एक ही बात पर विशेष जोर देने पर संतुलन बिगड़ेगा ही! बाकी सब छोड़कर केवल अभ्यास को ऐसा कोई भी नहीं कहेगा। खेल, व्यायाम, मनोरंजन, संगीत आदि ये तो अभ्यास के ही पर्याय हैं। इसीलिए पूरे दिन का विभाजन इन सभी बातों के लिए संतुलित रहे। किसी विषय की अनदेखी, किसी पर दुर्लक्ष्य न हो। यही है समय का व्यवस्थापन! यह ‘व्यवस्थापन’ शालेय शिक्षा के प्रारंभ से ही आदत में आना उचित रहता है जो जीवन भर उपयोगी रहता है। सम्पूर्ण दिन में से एक बड़ा हिस्सा शाला के लिए और एक बड़ा भाग नींद हेतु उपयोग होता है। पर्याप्त नींद लेना भी जरूरी है। वरना पूरा दिन बेकार हो जाता है। विद्यार्थी दशा में सात घंटे की नींद पर्याप्त होती है, इससे अधिक नींद लेना उचित नहीं। शाला में आना जाना, प्रत्यक्ष शाला अभ्यास, अतिरिक्त कक्षाएं, ट्यूशन, इन सब में सामान्यतः आठ घंटे का समय, अर्थात दोनों को जोड़कर पंद्रह घंटे! अब अपने पास नौ घंटे शेष हैं। स्वयं के एवं अन्य काम, गृह कार्यों में सहायता, खेल, रिक्त समय, ये सब होने के पश्चात भी अपने पास पांच-छः घंटे मिल सकते हैं।
अभ्यास की विभिन्न पद्धति, तंत्र (जो हम आगे देखेंगे) उपयोग करते हुए हम भोजन करते समय, नहाते समय, साफ सफाई करते समय, बालों को संवारते समय, कपड़ों को इस्त्री, करते समय, भी अभ्यास कर सकते हैं।
समय के व्यवस्थापन / नियोजन करते समय, सामान्यतः अपना समय कैसा, कहां और कितना बर्बाद होता है यह परखना आवश्यक है। गलती कहां है यह समझने पर ही सुधार किया जा सकता है।
कुछ लोगों का समय खेलने में, तो कुछ लोगों का टी.वी. देखने में अधिक खर्च होता है। किन्तु इससे भी अधिक समय, अनजाने में ही खर्च होता है, मित्र-दोस्तों से बेकार की गपशप में, और रिक्त कुछ न करते हुए!
गहराई से सोचने पर ये ध्यान में आएगा कि बहुसंख्य को तो पता भी नहीं चलता कि उनका समय कैसे और कहां खर्च हो जाता है? और बाद में कहा जाता है- समय कैसे व्यतीत हुआ, पता भी नहीं चला! समय को बचाने के लिए ना कहना आवश्यक है। मित्रों के कहने पर उनकी हर बात मानना उनकी हाँ में हाँ मिलाना आवश्यक नहीं। उनके हर बुलावे पर जाना भी जरूरी नहीं। स्वयं पर स्वयं का नियंत्रण रखना आवश्यक है। हमारे नियंत्रण पर दूसरों को अवसर देना उचित नहीं। खुली जगह पर पड़े कागज के टुकड़े, प्लास्टिक पन्नी, हवा से उड़कर अनियंत्रित रूप से इधर-उधर उड़ते रहते हैं।
हुमारा जीवन अनियंत्रित नहीं होना चाहिए। दृढ़ता से परन्तु नम्रता पूर्वक ‘नहीं’ कहना सीखना भी आवश्यक है। तभी ‘समय’ का सही उपयोग हो पाएगा।
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
और पढ़ें : याद रखें भी कैसे?
Very relevant.
It is really a matter of concern that a good chunk of our daily time is wasted on gossiping or doing nothing.
Thanks sir.