कृतज्ञता

✍ दिलीप वसंत बेतकेकर

कृतज्ञ और कृतघ्न ये दो शब्द तो आपने सुने और पढ़ें भी होंगे। हमें जो कोई मदद करता है, उपकार करता है, उसे सदैव याद रखना, उसका स्मरण करना, कभी न भूलना और सम्भव हो तो उसकी आवश्यकतानुसार सहायता करना और वह भी संभव न होने पर मन में उसका एहसास रखना इसे कृतज्ञता कहते हैं। और हमें जिसने सहायता की हो उसे पूर्णतः भूल जाना कृतघ्न होना।

हमारे अध्ययन हेतु अनेकों द्वारा सहायता मिलती है। यह सहायता केवल मानव द्वारा नहीं अपितु निर्जीव वस्तुओं द्वारा भी होती है। कुछ प्रकार की मदद प्रत्यक्ष दिखाई देती है जब कि कुछ प्रत्यक्ष नहीं दिखती, वह अप्रत्यक्ष रूप से अपरोक्ष रूप से होती है। ऐसे सभी प्रकार से मदद करने वाले घटक, दिखाई देने वाले अथवा अप्रत्यक्ष रूप से उनकी सहायता स्मरणीय रहे। उसका एहसास रहे। हमें मदद करने वाले घटकों की सूची, प्रथमतः माता-पिता से प्रारंभ होती है। हमारे लिए कितने कष्ट झेलते हैं, कितने श्रम करते हैं, माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य! हमारे अध्ययन के लिए, हमारी प्रगति के लिए। समयानुसार, आवश्यकतानुसार स्वयं के सुख-दुःख को भी अनदेखा करते हैं। हमारी शिक्षा अध्ययन को प्रगत करने के लिए, हम शिक्षित होकर प्रगति करें इस हेतु!

तत्पश्चात सूची में क्रम आता है शिक्षकों का। शिक्षक श्रम करते हैं। उनका वेतन आता है समाज के माध्यम से अर्थात समाज का योगदान भी रहता है हमारे अध्ययन हेतु! विद्यालय के भवन भी समाज के योगदान से न? हमारे अध्ययन हेतु भवन से लेकर अन्य विविध साधन सामग्री भी आवश्यक होती है। ये सभी उपलब्ध कराने हेतु असंख्य व्यक्तियों का सहभाग होता है। ये सभी सहायक हमें प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते, परंतु उन्हीं के माध्यम से हमें सभी आवश्यक सामग्री साहित्य आदि उपलब्ध रहते हैं, और इसीलिए इनका भी हमारे अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान है। इन सभी के प्रति हमें कृतज्ञ रहना आवश्यक है। इसके साथ ही प्रत्यक्ष उपलब्ध साहित्य-सामग्री, साधन, आदि के प्रति भी कृतज्ञ रहना चाहिए, भले ही ऐसे साधन सामग्री, साहित्य जैसे स्लेट, पेंसिल, कांपी, पुस्तकें, फलक, पेन, संगणक आदि, कितनी लंबी सूची है। ये निर्जीव वस्तुएं कृतज्ञता की पात्र हैं। सभी के प्रति कृतज्ञ रहने पर अध्ययन का परिणाम भी अच्छा प्राप्त होता है। कृतज्ञता के कारण मन शांत, निर्मल बनता है और ऐसे मन के कारण अध्ययन सुव्यवस्थित होकर उसे गति मिलती है।

अध्ययन के साहित्य (कांपी, पुस्तकें, पेंसिल आदि) के प्रति प्रेम, अपनत्व रहने पर उसकी देखभाल अच्छी प्रकार से होती है और वे अच्छे रहने पर उनका सहवास अच्छा लगने लगता है। गुस्सा, द्वेष के कारण तो दुराव निर्मित होता है। यह एक सुंदर मानस शास्त्रीय प्रक्रिया है। ऊपरी सतह से देखने पर ये नगण्य अनुभव होंगे परन्तु अध्ययन की दृष्टि से, गहन रूप से देखने पर ये छोटी छोटी बातें भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं।

दुनिया के किसी भी विख्यात व्यक्तियों के जीवन तलाशें तो उनके हृदय कृतज्ञता से लबालब भरे हुए होंगे! उनके जीवन में आए प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक वस्तु के प्रति कृतज्ञ रहे ये प्रतीत होता है।

कुछ विद्यार्थी शाला में प्रवेश करने के पूर्व शाला की सीढ़ी अथवा कक्ष की देहरी को प्रणाम करके अंदर प्रवेश करते हैं। अपने समक्ष आए हुए प्रत्येक बुजुर्ग अपने से बड़े व्यक्ति को प्रणाम करते हैं। ये कृतज्ञता व्यक्त करने के मन में उनके प्रति आदर भाव दर्शाने के प्रकार हैं।

इन सब से क्या होता है?

जिनको हम झुककर प्रणाम करते हैं अथवा जिनके समक्ष हम नतमस्तक हो जाते हैं, कृतज्ञता दर्शाते हैं, वे हमारे कारण कुछ अधिक महान नहीं बन जाते, वरन हम स्वयं अनजाने में महान बनते हैं, अहंकार नष्ट हो जाता है। कृतज्ञता और उनसे होने वाले परिणाम इन पर हुए संशोधनों से ज्ञात हुआ कि इससे व्यक्ति की आंतरिक शक्ति, आंतरिक बल में वृद्धि होती है। मनोबल बढ़ता है। एक प्रयोग किया गया जिसमें कुछ लोगों को आभार प्रगट करने, कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए पत्र लिखने को कहा गया। जिन्होंने ऐसे तीन पत्र एक सप्ताह की अवधि में लिखें, उन्हें उन व्यक्तियों पर अच्छे परिणाम दिखाई दिए।

‘कृतज्ञता’ व्यक्त करने से क्या होता है?

१. भावनिक दृष्टि से शांति प्राप्त होकर तनावमुक्त रहते हैं।

२. कार्य क्षमता में वृद्धि होती है।

३. अधिक अच्छा व्यवस्थापन संभव हो जाता है।

४. लक्ष्य पाना आसान हो जाता है।

५. अधिक आशावादी बनते हैं।

चालीस से अधिक शोधकार्यों द्वारा कृतज्ञता से इक्कीस प्रकार के लाभ होते है ऐसा ध्यान में आया है। उपरोक्त वर्णित पाँच प्रकार के लाभ तो केवल अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण पाए गए हैं।

जो जो मिले भूत (अर्थात व्यक्ति) उसे मानो भगवंत!

संत लोगों द्वारा कहा गया ये कथन अत्यंत अर्थपूर्ण है।

(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)

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