बाल केन्द्रित क्रिया आधारित शिक्षा-22 (संस्कृत भाषा शिक्षण)

 – रवि कुमार

संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीनतम भाषा है और अनेक भाषाओं की जननी है। भारतीय संस्कृति, परम्परा, इतिहास, मान बिदु, जीवन मूल्य आदि की वाहक कोई भाषा है तो वह संस्कृत है। भारतीय ज्ञान-विज्ञान संस्कृत साहित्य में भरा हुआ है। इस ज्ञान-विज्ञान का दोहन करने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि जो ज्ञान विज्ञान के ज्ञाता है या विद्यार्थी है वो संस्कृत नहीं जानते, और जो संस्कृत जानने वाले है वे ज्ञान-विज्ञान में रूचि नहीं रखते।

अध्ययन-अध्यापन में संस्कृत भाषा का शिक्षण भी सीमित हो गया है। संस्कृत मात्र एक विषय रह गया है और जो मुख्य विषयों से बाहर है। इस कारण से विद्यार्थियों की रूचि के रूप में संस्कृत भाषा गौण होती जा रही है। संस्कृत आचार्य द्वारा संस्कृत पढ़ाते समय गौरव का अनुभव करना एवं विद्यार्थी को गौरव का अनुभव करवाना, इसकी बजाय मन में हीनता का भाव आचार्य व विद्यार्थी में रहता है।

क्यों आवश्यक है संस्कृत : संस्कृत भाषा प्राचीन होने के साथ-साथ शब्द भण्डार के हिसाब से अत्यंत समृद्ध है। संस्कृत भाषा के पठन-पाठन से उच्चारण में स्पष्टता आती है एवं संवाद कौशल बढ़ता है, जो अन्य भाषा संवाद में भी सहायक होता है। ध्यान में आना आवश्यक है कि जो व्यक्ति संस्कृत भाषा में अध्ययन करते है, उनकी हिंदी संवाद में पकड़ हिंदी विषय में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों से अधिक होती है। सुभाषित, श्लोक आदि के भाव-अर्थ सहित कंठस्थ करने से जीवन में संस्कार का आगमन सहजता से होता है।

क्योंकि संस्कृत अनेक भाषाओं की जननी है और अन्यान्य भाषाओं में विभिन्न शब्द संस्कृत से गए है, अतः अन्य भाषा सीखने में सरलता होती है। संस्कृत भाषा व्यक्ति में उत्साह निर्माण करती है। पंचकोशीय विकास में विज्ञानमय कोश के विकास में संस्कृत भाषा की विशेष भूमिका है।

विषय के रूप में नहीं भाषा के रूप में पढाएं : संस्कृत विषय सामान्यतः कक्षा 6 से लेकर 12 तक ऐच्छिक विषय के रूप में पाठ्यचर्या में सम्मिलित है। उसमें भी अंक आधारित परीक्षा व्यवस्था होने के कारण जो विषय अच्छे अंक सरलता से दिला सकता है, विद्यार्थी उस विषय की ओर उन्मुख होता है। जहाँ विषय पढ़ाया भी जाता है वहां ऐच्छिक विषय के कारण पाठ्यक्रम पूर्ति पर ही केन्द्रित होता है।

सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि संस्कृत विषय पढ़ाया जाएँ और कक्षा प्रथम से दशम तक अनिवार्य रूप से पढाया जाएँ। दूसरा यह है कि संस्कृत विषय रूप में नहीं भाषा के रूप में पढ़ाया जाएँ। जब भाषा के रूप में पढ़ाने की बात होती है तो इस बात पर ध्यान रहेगा कि विद्यार्थी संस्कृत व्याकरण को अधिगम करे, बिना अनुवाद के संस्कृत को समझ सके और संस्कृत में संवाद भी कर सके। इस सब के लिए कक्षा शिक्षण में विद्यार्थी को अवसर भी प्राप्त हो ऐसा भी प्रयास प्रारंभ होगा।

कक्षा शिक्षण संभाषण पद्धति से हो : ‘संस्कृत भारती’ संगठन संस्कृत भाषा आमजन की भाषा बने इसके लिए प्रयासरत है और ‘संस्कृत भारती’ इस विषय में काफी सफल भी हो रही है। श्री प्रताप जी संस्कृत भारती के उत्तर क्षेत्र के संगठन मंत्री रहे और सन 2009 में अपने प्रवास की योजना में गुरुग्राम आएं। गुरुग्राम में साउथ सिटी में एक सम्भाषण शिविर की योजना हुई। प्रतिदिन सायंकाल दो घंटे की कक्षा लगती थी और सभी आयु वर्ग के लोग उस शिविर में आते थे। एक दिन श्री प्रताप जी कार्यालय की रसोई में उपयोग होने वाले बर्तनों को थैले में डाल रहे थे। मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि वे ऐसा क्यों कर रहे है? मेरे पूछने पर उन्होंने कहा – आज शिविर में इस विषय का शिक्षण है कि रसोई में उपयोग होने वाले बर्तनों को संस्कृत में क्या कहते है और सामान्य व्यवहार में रसोई से जुड़ा संवाद संस्कृत में कैसे होता है। यह है संभाषण पद्धति।

भाषा रटने से नहीं आती, परीक्षा देने से नहीं आती, अधिकाधिक उपयोग से आती है। कक्षा कक्ष में भाषा सिखानी है तो अधिकाधिक उपयोग कैसे होगा, इसका विचार व क्रियान्वयन करने की आवश्यकता है अतः संभाषण (संवाद) पद्धति सर्वाधिक उपयुक्त है। इस दृष्टि से आचार्य का संवाद कौशल संस्कृत में अच्छा होगा तो विद्यार्थियों पर भी प्रभाव पढ़ेगा। आचार्य यदि यह निश्चित कर ले कि कक्षा व विद्यालय परिसर में वह संस्कृत में ही संवाद करेगा और संस्कृत कक्षा में विद्यार्थी अधिकधिक संस्कृत में संवाद करेंगे तो ‘सोने पर सुहागा’ होगा।

संस्कृत आधारित विभिन्न गतिविधियाँ : संस्कृत भाषा को केंद्र में रखकर अनेक प्रकार की गतिविधियाँ कक्षा-कक्ष व विद्यालय परिसर में कर सकते है। इन गतिविधियों से भाषा के प्रति रूचि निर्माण होती है और प्रतिभागिता करते करते सुगमता से अधिगम स्तर बढ़ता है।

वंदना सभा : विद्यालय की वंदना सभा में अनेक बातें जोड़ सकते है। वंदना सभा का संचालन विद्यार्थियों द्वारा होता है। सप्ताह में दो दिन संस्कृत भाषा में वंदना सभा का संचालन हो। उन्हीं दो दिनों में संस्कृत सम्भाषण के कुछ शब्द बताना, उससे सम्बंधित प्रश्नोत्तर आदि में संस्कृत विषय को जोड़ सकते है। वंदना सभा में जन्म दिवस शुभकामना के रूप में वैदिक मंत्रोच्चारण किया जाए। साप्ताहिक योजनानुसार संस्कृत में कथा वाचन तथा समाचार वाचन हो एवं सुभाषित कंठस्थ करवाया जाएँ। नित्य पंचांग कथन व श्यामपट्ट लेखन हो।

किसी एक प्रदर्शन बोर्ड को संस्कृत बोर्ड बनाकर विद्यार्थियों द्वारा नियमित दैनिक अथवा साप्ताहिक सामग्री उस पर प्रदर्शित कर सकते है। विद्यालय में वर्ष में एक बार संस्कृत सप्ताह मनाया जाए। इस सप्ताह के दौरान विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप, प्रतियोगिताएँ, नाट्य मंचन, सांस्कृतिक कार्यक्रम यथा श्लोकोच्चारणम्, सुक्तिलेखनम्, संवाद, भाषण, निबंध लेखन  आदि की योजना हो। वर्षभर में विभिन्न आयोजनों में मंच संचालन संस्कृत में भी हो। विभिन्न मांगलिक कार्यक्रमों पर यज्ञ आदि का सम्पादन आचार्य व विद्यार्थियों द्वारा करवाया जाएँ। विद्यालय वार्षिकोत्सव में संस्कृत भाषा में भी कार्यक्रम हो। भित्ति लेखन में संस्कृत के आदर्श वाक्यों, सुभाषित, गीता श्लोकों, वेद मन्त्रों आदि का लेखन हो। संस्कृत विषय की कक्षा आरम्भ पर संस्कृत  गीत/सुभाषित आदि करवाया जाएँ।

विद्यालय में विद्यार्थियों की संस्कृत भाषा परिषद बनाई जाएँ जिसका संरक्षक संस्कृत आचार्य हो। उपरोक्त वर्णित गतिविधियों की योजना संस्कृत भाषा परिषद द्वारा योजित हो और इन गतिविधियों में प्रयासपूर्वक अधिकतम विद्यार्थियों की सहभागिता करवाई जाएँ।

उपसंहार रूप में संस्कृत भाषा शिक्षा क्षेत्र में सामान्य संवाद का विषय बने और इसके माध्यम से विद्यार्थी के अधिगम व बौद्धिक स्तर का उन्नयन हो, ऐसी भारतीय शिक्षा की वर्तमान आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति में हम सभी शिक्षा क्षेत्र के कार्यकर्त्ता अपनी भूमिका सुनिश्चित करे ऐसी अपेक्षा है।

और पढ़ें : बाल केन्द्रित क्रिया आधारित शिक्षा – 11 (हिन्दी भाषा शिक्षण)

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