– मूल लेखक (अंग्रेजी) K. PONRAMAN
– हिंदी अनुवाद डॉ० कुलदीप मेहंदीरत्ता
महाकवि सुब्रमण्यम भारती (11 दिसम्बर, 1882 – 11 सितम्बर, 1921) तमिल कवि, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाने जाते हैं। वे एक आध्यात्मिक महापुरुष थे, जो ‘मैं’ और ‘मेरा’ के विचारों से स्वयं को मुक्त कर चुके थे। वे जनता के कवि थे, जो लोगों और उनके जीवन के लिए गाते थे। वे राष्ट्र की स्वतंत्रता, महिला सशक्तिकरण, सर्वशक्तिमान की भक्ति, सामाजिक समानता आदि विषयों पर कविता लिखते थे। कविता लिखना और मातृभूमि के कार्य करना ही उनका एकमात्र काम था। उनके लिए कविता लिखना राष्ट्र-कार्य करने के समान था। इन्हें महाकवि भरतियार के नाम से भी जाना जाता है।
महाकवि सुब्रमण्यम भारती का जन्म 11 दिसम्बर, 1882 को तमिलनाडु के तिरूनेवेली जिले के छोटे से शहर एत्तायापुरम में हुआ था। उनके माता-पिता लक्ष्मी अम्मल और चिन्नसामी अय्यर थे। महाकवि भारती ने तमिल भाषा में वृहद् ज्ञान और छात्रवृति प्राप्त की थी। उन्होंने ग्यारह वर्ष की आयु में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। बचपन में ही उनकी माता जी की मृत्यु हो गयी थी इसलिए उनका पालन-पोषण उनके पिता जी द्वारा किया गया था। उनके पिता एत्तायापुरम के राजकीय न्यायालय में कार्य करते थे, इसलिए भारती को कवियों और विद्वानों के सान्निध्य में रहने का अवसर मिला। उन्होंने तिरूनवेली के हिन्दू कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की।
उस समय के रीति-रिवाजों के अनुसार, उनका विवाह चौदह वर्ष की आयु में कर दिया था और उनकी पत्नी चेल्लाम्मल उस समय नौ वर्ष की थी। अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए, वे दो वर्ष तक वाराणसी रहे, जहाँ उनका हिन्दू आध्यात्मिकता और राष्ट्रवाद से परिचय हुआ। उन्होंने विस्तृत दृष्टिकोण अपनाते हुए संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी भाषा सीखी। यह कहा जाता है कि वे तीन विदेशी भाषाओं सहित कुल चौदह भाषाओं में निपुण थे। सन 1904 में उन्होंने कुछ समय के लिए मदुरै में स्कूल अध्यापक के रूप में कार्य किया। उसके बाद उन्होंने तमिल दैनिक ‘स्वदेश मित्र’ में सहायक सम्पादक के रूप में कार्य किया। हालांकि उन्हें विश्व प्रसिद्ध कवि के रूप में जाना जाता है परन्तु वे एक अच्छे पत्रकार और एक अच्छे कहानी लेखक भी थे। सन 1906 ई. में उन्होंने ‘इंडिया’ नाम से अपना जर्नल निकालना शुरू किया जिसमें वे समकालीन राजनीति और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर लिखते थे।
भारती के लिए स्वतंत्रता का अभिप्राय प्रत्येक व्यक्ति को उसका न्यायोचित भाग प्राप्त करना है। उनके लिए स्वतंत्रता का अर्थ – सभी के लिए भोजन; सभी के लिए समान अवसर; नागरिकों को मातृभूमि के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए; सभी के साथ मित्रतापूर्ण भाव और अन्य व्यक्तियों के विचार सुनने की इच्छा होनी चाहिए। उनका दृढ विश्वास था कि इन सबको को प्राप्त करने का एकमात्र साधन शिक्षा है। उन्होंने कहा कि “इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तीन चीजें आवश्यक है – पहली तो शिक्षा है ; दूसरी भी शिक्षा; और तीसरी भी शिक्षा है। इसका मतलब यह है कि शिक्षा के अतिरिक्त किसी अन्य साधन से हम अपने राष्ट्र के लिए आवश्यक लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकते। मैं इसमें दृढ़ विश्वास करता हूँ।”
जब उनसे पूछा जाता कि हमारे बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहए तो वे कहते “ हमारे पूर्वजों ने जो शिक्षा दी और सीखी, उसको ही अपनाया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि शिक्षा सभी के लिए है; इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को किसी जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव के बिना शिक्षा दी जानी चाहिए। शिक्षा तक सभी की पहुँच होनी चाहिए। शिक्षा बच्चों को अच्छे मानव के रूप में विकसित होने में सहायता करती है। शिक्षा अवश्य ही बच्चों को अपने आस-पास के वातावरण के प्रति संवेदनशील बनाने वाली तथा अपने देशवासियों की पीड़ा समाप्त करने के लिए मार्गदर्शक होनी चाहिए। शिक्षा व्यक्ति को सामाजिक रूप से जागरूक और आत्मनिर्भर बनाने वाली होनी चाहिए। भारती जी का यह मत था कि शिक्षा हमें दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करना सिखाए और हमें यह समझने में सहायक हो कि कोई भी व्यक्ति हीन या श्रेष्ठ नहीं है। उनका दृश विश्वास था कि समाज को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए प्रत्येक नागरिक का सहयोग अत्यंत आवश्यक है और शिक्षा के माध्यम से यह अवसर उनको उपलब्ध होना चाहिए।
भारती जी का मानना था कि ‘राष्ट्रीय शिक्षा’ भारतीय संस्कृति और अवधारणा पर आधारित होनी चाहिए। यह स्वदेशी शिक्षा है। उन्होंने कहा कि शैक्षिक पाठ्यक्रम में हमारे देश के महान व्यक्तियों के जीवन और विरासत को स्थान मिलना चाहिए। उन्होंने अपने निबंध ‘ए सीरियस डिफेक्ट इन आवर प्रेजेंट एजुकेशनल सिस्टम’ में उल्लेख किया कि शैक्षिक व्यवस्था में अनेक कमियाँ हैं (वास्तव में, आज भी बहुत कुछ नहीं बदला है)। उन्होंने लिखा कि आज की शिक्षा ने हमारे पूर्वजों और हमारे देश के महान व्यक्तियों के बारे में हमारे छात्रों में हीन-भावना पैदा कर दी। “छात्रों ने हमारे हजारों महान संतों, जैसे व्यास, याज्ञवलक्य या शंकर और हमारे वीरों जैसे अर्जुन, कर्ण और विक्रमादित्य अथवा शिवाजी के बारे कभी नहीं सुना। लेकिन अगर युवाओं ने इन महापुरुषों के बारे में सुना भी होता, तो उन्हें भी यही सिखाया गया होता कि ये महान लोग भी असभ्य मूर्ख थे।”
महाकवि भारती ने इस बात का समर्थन किया कि शिक्षा मातृभाषा में देनी चाहिए। उन्होंने अपने एक निबंध ‘एन आस्पेक्ट ऑफ़ नेशनल एजुकेशन’ में उन्होंने लिखा कि हमारे युवा उम्र से पहले मर जाते हैं; क्योंकि उनको विदेशी भाषाओं में परीक्षा पास करने के लिए अत्यंत कठोर परिश्रम करना पड़ता है। यद्यपि अंग्रेजी मेट्रिक तक आवश्यक है, परन्तु अन्य विषय राष्ट्रीय भाषा में पढ़ाए जाने चाहिए और विशेष तौर से मातृभाषा में पढाया जाना चाहिए। हमारे लोगों ने ‘आर्यों’ के गुणों को खो दिया है और पूर्वजों की महानता के प्रति अनजान बन गए हैं। मिशनरी स्कूलों के ईसाई पादरियों से जो कुछ हमारे विद्यार्थियों ने सीखा है, ये उसी का परिणाम है। अत: महाकवि भारती ने मिशनरी स्कूलों का बहिष्कार करने की सलाह दी।
भारती ने 1901 ई. की जनगणना के आंकड़ों को इंगित किया, जो दर्शाती थी कि प्रत्येक 10,000 महिलाओं में से केवल 94 महिलाएँ ही शिक्षित थी। उनका कहना था कि जो कोई भी व्यक्ति स्वयं के राष्ट्रवादी होने का दावा करता है; उसे इस पर शर्मिंदगी महसूस करनी चाहिए और महिला शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करने चाहिए। कोई देश प्रगति नहीं कर सकता यदि उसकी महिलाएं मुलभुत शिक्षा से वंचित होने के कारण अज्ञानी हैं। उनका मत था कि अगर कोई महिला शिक्षा और सशक्तिकरण के विरुद्ध है; तो वह राष्ट्रीय प्रगति के भी विरुद्ध है। महिलाओं को दबाने की अज्ञानता का उन्मूलन करना चाहिए। भारती ने कहा कि कोई ठोस कदम उठाए बिना, महिलाओं को शिक्षा देने की बात सोचना और प्रचार करना मूर्खता है। उनका दृढ विश्वास था कि समाज केवल तभी प्रगति कर सकता है; जब वह अपनी महिलाओं का सम्मान करना सीख लेता है और ये तब होता है जब उनसे समानता का व्यवहार किया जाये।
भारती ने अपने लेख ‘द हिंदी पेज’ में सुझाव दिया कि प्रत्येक व्यक्ति को हिंदी भाषा सीखनी चाहिए। वे कहते है कि “हम तमिलों को अवश्य हिंदी सीखनी चाहिए। हालांकि तमिल हमारी मातृभाषा है और यह हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है, पर मैं सबको यह सलाह देता हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति को हिंदी सीखनी चाहिए, क्योंकि सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए हमें एक सामान्य भाषा की आवश्यकता है।” उन्होंने आगे कहा कि अंग्रेजी को सामान्य भाषा के रूप में अपनाना मूर्खतापूर्ण और असम्भव है, क्योंकि यह विदेशी भाषा है। जब स्वतंत्रता संघर्ष चरम स्तर पर था, तब उन्होंने सुझाव दिया कि तमिलियों को तमिल और हिंदी सीखनी चाहिए; तेलुगु लोगों को तेलुगु और हिंदी सीखनी चाहिए; बंगाली लोगों को बंगाली और हिंदी सीखनी चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृभाषा के साथ-साथ हिंदी भी सीखनी चाहिए। उन्होंने इस बात का भी समर्थन किया कि हमारे विद्यार्थियों को संस्कृत भी सीखनी चाहिए क्योंकि यह साहित्य और ज्ञान की दृष्टि से समृद्ध भाषा है।
राष्ट्रीय शिक्षा की विशेषताओं के बारे में भारती जी के विचार स्पष्ट थे। उन्होंने उल्लेख किया कि शारीरिक प्रशिक्षण, गणित, हमारें राष्ट्र का प्राचीन इतिहास, धर्म और संस्कृति के बारे में ज्ञान, राजनीतिक ज्ञान, अर्थशास्त्र, विज्ञान और कला आदि हमारे बच्चों की शिक्षा का अनिवार्य अंग होनी चाहिए। उनके अनुसार, राष्ट्रीय शिक्षा और स्वराज्य दोनों अलग-अलग सत्ताएं न होकर एक ही हैं। परिवार को शिक्षित करना राष्ट्रीय शिक्षा का मूल आधार है। अत: राष्ट्रीय शिक्षा या स्वदेशी शिक्षा को परिवार से ही प्रारम्भ होना चाहिए।
उनकी इच्छा थी कि प्रत्येक गाँव में स्कूल होना चाहिए। गाँव के स्कूल के अध्यापक के लिए स्नात्तक होना आवश्यक नहीं है, वह दसवीं पास भी हो सकता है। परन्तु उस अध्यापक को हमारे इतिहास, संस्कृति और भाषा का गहन ज्ञान होना चाहिए। वह मातृभाषा से प्यार करने वाला होना चाहिए और उसे शास्त्रों का ज्ञान तथा अभ्यास होना चाहिए। उस अध्यापक को शारीरिक रूप से मजबूत होना चाहिए और अपने शिष्यों को भी ताकतवर बनने की प्रशिक्षण देना चाहिए। जिस क्षेत्र में स्कूल स्थापित है, उस क्षेत्र का इतिहास भी पढ़ाना चाहिए। इसके अतिरिक्त वैदिक इतिहास, महाकाव्यों का इतिहास और महान योद्धाओं का इतिहास भी विद्यार्थियों को अवश्य पढ़ाना चाहिए। यह इतिहास विश्वास और समर्पण के साथ पढ़ाना चाहिए। भाषा और गणित मनुष्य की दो आँखों की तरह है; अत: ये भी सिखाने चाहिए। भूगोल और खगोलशास्त्र भी स्कूल में अवश्य पढ़ाना चाहिए। हमारे बच्चों को सौरमण्डल, तारों और सभी देशों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। राज्यों की भौगोलिक प्रकृति और हमारे देश के लोगों के जीवन के बारे में विशेष तौर से पढ़ाना चाहिए। मातृभाषा में पढ़ना और पढ़ाना अनिवार्य होना चाहिए।
राष्ट्रीय शिक्षा का विचार सम्पूर्ण नहीं होगा, जब तक सनातन हिन्दू धर्म के बारे में नहीं सिखाया जाएगा। हमारे स्कूलों में चारों वेदों, छ: दर्शन, उपनिषदों, महाकाव्यों, भगवद गीता, सिद्धर के गीतों आदि के बारे में सिखाना चाहिए। हमारे विद्यार्थियों को राजनीति विज्ञान पढ़ाया जाना चाहिए और हमारे छात्रों को पता होना चाहिए कि कैसे एक राष्ट्र पर शासन करते हैं। शांतिपूर्ण जीवन कैसे जिया जाये, विदेशी आक्रमणकारियों का प्रतिकार कैसे किया जाये, कैसे प्रत्येक व्यक्ति को भोजन और समृद्धि दी जाये, और सर्वशक्तिमान के प्रति समर्पण, स्वास्थ्य, सद्गुण और जीवन के मूल्यों आदि के बारे में राजनीति विज्ञान को विद्यार्थियों को ज्ञानवान बनाये। भौतिकी, रसायन, शारीरिक फिटनेस, जीवविज्ञान और जन्तुविज्ञान आदि राष्ट्रीय शिक्षा को प्रमुख रूप से पढ़ाना चाहिए। इसके अलावा, योग, कृषि, हस्तशिल्प और व्यापार आदि के बारे में सिखाने का भी प्रावधान होना चाहिए।
महाकवि भारती केवल उपदेश ही नहीं देते थे, कविता और निबंध लिखना उनके लिए केवल मनोरंजन के साधन नहीं थे। यह उनका राष्ट्र और पीड़ित देशवासियों की सेवा करने का तरीका था। उन्होंने अपने जीवन में उन मूल्यों को आचरण में उतारने का प्रयास किया जिन्हें वे व्यक्ति और समाज के विकास के लिए आवश्यक समझते थे। उन्होंने अपनी कविताओं में महिलाओं के समान अधिकार, और बच्चों और युवाओं के सपने और आकांक्षाओं को उद्घाटित किया। वे महान व्यक्तित्व और साधारण दोनों के बारे में लिखते थे। वे किसी व्यक्ति के अमीर और शक्तिशाली होने से उसे महान नहीं समझते थे। उनकी कई कविताओं का संदेश है कि मनुष्य को प्रकृति के साथ सद्भाव से रहना चाहिए। उनके काव्य-संसार में हमें इस विशाल दुनिया और भव्य जीवन की एक झलक मिलती है जब हम उनकी कविताएं पढ़ते हैं। हम दूसरों का सम्मान और प्यार करके अधिक उपयोगी जीवन जीने के तरीकों और साधनों को भी देखते हैं।
भारती जी ने बुद्धि और हृदय में कोमलता के लिए प्रार्थना की है। उन्होंने भगवान विनायक से प्रार्थना करते हुए कहा कि हमारा सबसे बड़ा कर्त्तव्य स्वयं पर नियंत्रण रखना, दूसरों के दुःखों और कष्टों को अपना समझना और दूसरों के कल्याण की कामना करना है।
वे ऐसे भारत की कामना करते हैं जहाँ कोई भी गरीब और अज्ञानी नहीं रहेगा। वे एक ऐसे राष्ट्र की इच्छा करते हैं जहाँ कोई अपने साथियों को परेशान और अपमानित नहीं करेगा। उन्होंने एक ऐसे देश का सपना देखा था जहाँ लोगों के जीवन में एकता का भाव रहेगा और सब एक-दूसरे के जीवन के मूल्य को समझेंगे। विश्व प्रसिद्ध महाकवि होने के अलावा, भारती, तमिल भूमि और भारत भूमि का गौरव है।
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