अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है खेल-व्यायाम

✍ रवि कुमार

मानव स्वास्थ्य के लिए जिस प्रकार आहार आवश्यक है उसी प्रकार खेल-व्यायाम भी आवश्यक है। आजकल की भागदौड़ की जीवनचर्या में खेल-व्यायाम की बात आती है तो लोग कहते हैं कि नींद व आराम के लिए समय तो मिलता नहीं है, खेल-व्यायाम के लिए कहाँ मिलेगा। खेल या तो खिलाड़ी खेलता है या कहीं बाल अवस्था में बालकों को अवसर मिलने पर खेलता हुआ देख सकते हैं। और व्यायाम करने वालों की संख्या भी सीमित ही दिखाई देती हैं। इस सीमित संख्या में वे भी सम्मिलित है जिन्हें चिकित्सक ने परामर्श दिया है कि सैर-व्यायाम आदि अवश्य करना है तभी औषधि काम करेगी।

पूर्व काल में बाल अवस्था में खेलना सहज अनिवार्य हो जाता था। और स्त्री-पुरुष की जीवनचर्या के कार्यों में व्यायाम सहजता से हो जाता था। धीरे-धीरे युग परिवर्तन हुआ। जीवनचर्या में भागदौड़, सुविधाएं, अध्ययन का दबाव आदि बढ़ा और खेल-व्यायाम जो जीवनचर्या का महत्त्वपूर्ण भाग था, धीरे-धीरे कम होता चला गया। एक अध्ययन के अनुसार 64 प्रतिशत भारतीय कभी व्यायाम नहीं करते जिसमें महिलाओं की संख्या अधिक है।

खेल-व्यायाम का कम होने का एक बड़ा कारण मोबाइल, इंटरनेट व सोशल मीडिया का बढ़ता प्रयोग भी है। प्रत्यक्ष खेलने की बजाय आज की नवीन पीढ़ी मोबाइल व ऑनलाइन गेम में समय अधिक व्यतीत करती हैं। इस गेम से वह कुछ आनन्द तो प्राप्त करती होगी परंतु स्वास्थ्य लाभ की बजाय स्वास्थ्य को नुकसान ही पहुंचाती होगी। सोशल मीडिया पर एक कार्टून कभी-कभी दिखाई देता है जिसमें दो दृश्य है। पहले दृश्य में बालक बाहर खेल रहा है और माँ उसका कान पकड़ कर घर की ओर अध्ययन करने के लिए ले जा रही है। दूसरे दृश्य में बालक मोबाइल में लगा हुआ है और माँ उसे कान पकड़ कर मैदान की ओर खेलने के लिए ले जाती दिख रही है। दूसरा दृश्य आज की वस्तु स्थिति को अभिव्यक्त कर रहा है।

खेलने व व्यायाम करने से क्या होता है लाभ

नियमित खेलने व व्यायाम करने से माँसपेशियां स्वस्थ रहती हैं। दिनभर व नियमित कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। ऊर्जा का स्तर सतत बना रहता है और नियमित रूप से बढ़ता है।

आजकल तनाव सामान्य विषय हो गया है। हर व्यक्ति तनाव में दिखाई देता है। नियमित खेल-व्यायाम से दिनभर के कार्य से उत्पन्न हुए तनाव से राहत मिलती है और तनाव को झेलने की क्षमता भी बढ़ती है।

नियमित खेलने व व्यायाम करने से शरीर का मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है। मेटाबॉलिज्म अच्छा होने से कैलोरी भी तेजी से बर्न होती है और वजन नियंत्रित रहता है। खेल-व्यायाम से शरीर का रक्तचाप नियंत्रित रहता है और उच्च रक्तचाप का खतरा 75% तक कम हो जाता है। नियमित खेल-व्यायाम से कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में रहता है। नियमितता से हानिकारक कोलेस्ट्रॉल घटता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है।

समूह में खेलने से सामाजिक दायरा बना रहता है और धीरे-धीरे बढ़ता रहता है। एक दूसरे के साथ खेलने से सहनशक्ति विकसित होती है। खेल में हार-जीत होती ही रहती है इससे जीवन की सफलता-विफलता में समभाव रहने का अभ्यास होता है। बाल अवस्था में मैदान में खेलने के कारण मिट्टी से सम्पर्क बना रहता है। इससे जीवन रफ एंड टफ बनता है।

खेलकूद और व्यायाम जीवन को अनुशासित बनाता है। खेलकूद करने वाले लोग हमेशा आत्म-विश्वासी रहते हैं और जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए उनका मानसिक स्तर हमेशा ऊँचा ही रहता है।

खेल व व्यायाम नियमित करने का हमारी भूख व नींद पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। अच्छी भूख लगती है और पर्याप्त गहरी नींद आती है। आजकल के जीवन में अच्छी भूख लगना व पर्याप्त नींद आना दुर्लभ सा हो गया है।

व्यायामं कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्।

विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥

अर्थात नियमित व्यायाम करने से मनुष्य यदि गरिष्ठ, जला, कच्चा भोजन भी खाए तो उसे भी आसानी से पचा लेता है और शरीर को कोई भी हानि नहीं होती है।

मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया का अधिक उपयोग हमारी एकाग्रता को कम करता है। जबकि खेल व व्यायाम हमारी एकाग्रता के स्तर को बढ़ाता है। इसलिए सोशल मीडिया पर अनुपयोगी खर्च हो रहे समय को खेल-व्यायाम के लिए उपयोग करने की आदत नवीन पीढ़ी को लगना आवश्यक है।

क्या करें

बाल अवस्था में खेल व व्यायाम अति आवश्यक है। इस आयु में न्यूनतम एक घंटा खेल-व्यायाम होना ही चाहिए। इस अवस्था में लगी आदत जीवनभर चलती है। आजकल इंडोर खेल भी आ गए हैं। यहां इंडोर नहीं मैदानी (आउटडोर) खेलों की नियमित आदत की बात हो रही है। नियमित खेल-व्यायाम बाल अवस्था से तरुणावस्था में प्रवेश पर होने वाले शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों के दौरान भटकाव से बालक को दूर रखता है।

खेलने व व्यायाम करने की कोई आयु निश्चित है, ऐसा नहीं है। हर आयु-अवस्था में खेल-व्यायाम आवश्यक है। कितना करना जब यह विचार करते हैं तो दो सूत्र अपना सकते हैं। 1. पूरा शरीर पसीने से नहा जाए, इतना करना। 2. दिनभर में जितना समय खाने में लगाते हैं, उतना समय खेल-व्यायाम में लगाना। सायंकाल की बजाय प्रातःकाल खेल-व्यायाम स्वास्थ्य के लिए अधिक हितकर होता है।

खेल-व्यायाम को दिनचर्या का आवश्यक भाग बनाएं। दिनभर के क्रियाकलापों की योजना करते समय खेल-व्यायाम को अवश्य स्थान देवें। नियमित क्रम बनाने में विशेष ध्यान देना पड़ता है। क्रम टूटने पर पुनः ध्यान देकर क्रम बनाएं। खेल-व्यायाम का नियमित क्रम बनने पर उस समय में अन्य कार्य की योजना न करें।

व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं।

आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥

अर्थात व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है।)

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