– दिलीप वसंत बेतकेकर
“सिगरेट के एक सिरे पर होती है आग और दूसरे सिरे पर होता है एक मूर्ख” ऐसा कहा जाता है। सिगरेट स्वयं जलते हुए उसे उपयोग करने वाले को भी जलाती है ये बात उपयोगकर्ता के ध्यान में नहीं आती।
धूम्रपान के विरुद्ध सख्त नियम और सजा का प्रावधान होने पर भी लोगों की आदत छूटती नहीं है। इंगलैंड के प्रथम जेम्स, रशिया के ज़ार, पर्शिया के शाह और पोप अर्बन आठवां द्वारा धूम्रपान का विरोध किया गया था। धूम्रपान करने वालों को चाबुक से पीटना, नाक काटना ही नहीं देहांत की सजा भी दी गई, किंतु कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी ही!
सिगरेट के दुष्परिणाम के शिकार केवल इसे पीने वाले ही नहीं वरन् आसपास के लोग भी होते हैं। सिगरेट के धुएं में निकोटिन नामक अत्यंत जहरीले रसायन का समावेश होता है। निकोटिन की एक बूंद सांप की जीभ पर रखने पर वह भी मर सकता है। प्रूसिक अम्ल नामक दूसरा जहरीला पदार्थ सिगरेट के धुएँ में पाया जाता है। साथ ही कार्बेनिक अम्ल भी होता है।
धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के आसपास बैठे व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर भी उनके स्वयं उपयोग न करने पर भी, दुष्परिणाम होता है। उनके शरीर में भी इस जहरीले धुएं का प्रवेश हो जाता है। इसे “पैसिव स्मोकिंग” कहते हैं। जिस घर में धूम्रपान करने वाले लोग होते हैं उस घर के छोटे बालकों पर भी अत्यधिक घातक परिणाम होते हैं। इन बच्चों की कोई भी गलती न होने पर भी सजा उन्हें भुगतनी पड़ती है। विशेषकर स्त्री यदि सिगरेट पीने वाली हो तो प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
ब्रिस्टल विद्यापीठ और सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल में किये गये अध्ययन से ध्यान में आया कि स्त्री-पुरुषों के जननेंद्रियों पर धूम्रपान का घातक परिणाम होता है। अमेरिका के मेयो क्लीनिक के द्वारा की गई जाँच के अनुसार युवा व्यक्तियों में धूम्रपान से नपुंसकत्व होने का खतरा अधिक रहता है। इन शोधकर्ताओं ने विविध आयुवर्ग के धूम्रपान करने वाले तेरह सौ पुरुषों के स्वास्थ्य का परीक्षण किया। इस परीक्षण से ज्ञात हुआ कि चालीस वर्ष आयु के पुरुषों में यह खतरा अधिक होता है।
गर्भवती स्त्री यदि धूम्रपान करती है तो धुएं का हानिकारक प्रभाव गर्भ पर पड़ता है। गर्भपात होने की संभावना भी रहती है। पूर्ण समय होने के पूर्व भी बच्चे का जन्म हो जाता है अथवा जन्म हुए बच्चे का वजन कम होता है। धूम्रपान करने वाली माता का बच्चा निरंतर रोने वाला और शरीर विकास मंद गति से होने वाला रहता है। गर्भवती महिला के आसपास धूम्रपान करने वाले व्यक्ति होने पर भी गर्भ पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। विशेषतः उस गर्भस्थ शिशु को प्राणवायु की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है। धूम्रपान करने वाले पालकों के बच्चों का निरंतर सिगरेट के धुएं का संपर्क रहने के कारण विविध समस्याएँ झेलनी पड़ती हैं। प्रतिवर्ष 80 सिगरेट के सेवन से जो परिणाम भुगतने पड़ते हैं, उतने ही परिणाम सिगरेट सेवन न करने पर भी केवल पालकों के धूम्रपान के कारण बच्चों को भुगतने पड़ते हैं। बच्चों की आंखें किरकिराती हैं, आंखों से पानी निकलता है, गला सूखता है और खराश होती है, निरंतर छींके आती हैं, फेफड़ों का संकुचन होने से खांसी आती है। किसी-किसी को दमा का रोग भी होता है।
फिनलैंड में एक परीक्षण में पाया गया कि धूम्रपान करने वाले पालकों के बच्चों को अस्पताल में अधिक ले जाना पड़ा और वहाँ अधिक समय तक भर्ती रहना पड़ा। एक माह से पांच साल आयु तक के बच्चों में बाल मृत्यु का परिमाण अधिक था। परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि धूम्रपान करने वाले पालकों के बच्चे धूम्रपान न करने वाले पालकों के बच्चों की अपेक्षा अधिक मृत्युमुखी थे। धूम्रपान करने वालों के बच्चों में अठारह वर्ष की आयु तक खांसी का परिमाण अधिक होना भी पाया गया।
वयस्क व्यक्तियों में अंधत्व के प्रमुख कारण “डीजनरेटिब आई डिसऑर्डर” नामक नेत्र दोष का खतरा धूम्रपान करने वालों को अधिक रहता है ऐसा “लंदन स्कूल ऑपफ हायजीन एण्ड ट्रॉपिकल मेडिसन” संस्था के शोधकों द्वारा किये गये शोध में पाया गया। 75 वर्ष से ऊपर आयु वाले चार हजार लोगों का परीक्षण कर निकाला गया ये निष्कर्ष है। धूम्रपान करने वालों में एजरिलेटेड मैक्यूलर डिजीज (ए.एम.डी.) नाम से पहचाने जाने वाले नेत्र दोष होने का खतरा दुगुने से अधिक होता है। इस दोष में व्यक्ति को दृश्य का मध्य भाग धुंधला दिखता है।
धूम्रपान करने वालों को संधिवात होने पर उनकी हड्डियों का घिसना धूम्रपान न करने वालों की अपेक्षा अधिक गति से होता है, ऐसा अमेरिका के मेयो क्लीनिक के वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित किया गया है। हड्डियों के सिरे पर स्थित कार्टिलेज का रक्षक आवरण संधिवात में घिस जाता है। इस कारण वहां वेदना का अनुभव होता है। धूम्रपान करने की आदत रहने पर यह व्याधि होने पर उसकी तीव्रता अधिक होती है और वह गंभीर स्वरूप धारण करता है।
धूम्रपान के कारण बुद्धमत्ता गुणांक भी कम हो जाता है ऐसा इंगलैण्ड के अॅबर्डीन विद्यापीठ के लॉरेन्स व्हॅली और उनके सहयोगियों द्वारा प्रतिपादित किया गया है। धूम्रपान करने वाले और न करने वाले ऐसे 465 व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता में जीवन भर की अवधि में किस प्रकार का परिवर्तन होता है और उसका धूम्रपान से कुछ सम्बन्ध है क्या, इस बात का अध्ययन किया गया।
वर्ष 1947 में 11 वर्ष की आयु में इन सभी का स्कॉटिश मेंटल सर्वे के अंतर्गत वैद्यकीय परीक्षण किये गये थे। आयु के 64वें वर्ष में एक बार पुनः उसी प्रकार के परीक्षण दोहराये गये। पांच समूहों में किये गये इन परीक्षणों के आधार पर यह बात सामने आयी कि धूम्रपान की बिल्कुल ही आदत न होने वाले व्यक्तियों की क्षमताएं धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की क्षमताओं की अपेक्षा अनेक गुणा अधिक होती हैं।
शालेय विद्यार्थियों की वाचन और बोधन क्षमता पर सिगरेट के धुएं का विपरीत परिणाम होता है यह बात भी एक शोध द्वारा ज्ञात हुई। 6 से 16 वर्ष आयु समूह के 4377 बच्चों के परीक्षण करने के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला गया। इन बच्चों के वाचन कौशल्य का परीक्षण करते हुए उन्हें कुछ गणित और तार्किक प्रश्न हल करने हेतु दिये गये। उन बच्चों की ‘रक्त जाँच’ भी की गई। तम्बाकू में स्थित निकोटिन का विघटन करने हेतु आवश्यक ‘कोटिनाइन’ रसायन जिन बच्चों के रक्त में अधिक परिमाण में पाये गये, उन्हें परीक्षा में अन्य बच्चों की अपेक्षा कम अंक प्राप्त हुए थे। इन बच्चों की पारिवारिक पार्श्वभूमि का अध्ययन करने पर उनके पालकों को धूम्रपान की आदत होना पाया गया। इस शोध से वैज्ञानिकों द्वारा निष्कर्ष निकाला गया कि अप्रत्यक्ष (पैसिव स्मोकिंग) धूम्रपान का भी विपरीत प्रभाव बच्चों की बौद्धिक क्षमता पर पड़ता है। इसीलिये अपने पाल्यों के शैक्षणिक परिणाम अच्छे होने चाहिये, ऐसी अपेक्षा रखने वाले पालकों को धूम्रपान की आदत पर पूर्णतया रोक लगाना आवश्यक होगा।
कुछ पालक तो केवल सिगरेट का सेवन स्वयं करते ही हैं, बाजार से सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू आदि मंगवाने हेतु बच्चों को भेज देते हैं। इसका प्रभाव भविष्य में बच्चों पर किस प्रकार का होगा इसका विचार उनके मन में झांकता तक नहीं है।
सिगरेट स्वयं तो जलती ही है, परन्तु सेवन करने वाले को ही नहीं, पूरे परिवार को जला देती है। अंत में शेष रहती है चुटकी भर राख!!
(लेखक शिक्षाविद् है और विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है।)
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