– इन्द्रजीत कौर
नवीन नगर ‘चक्क नानकी’ की नींव 19 जून 1665 को रखकर नगर वासियों को भी उपदेश देकर गुरुजी अपने परिवार एवं अन्य श्रद्धालु सिखों सहित मालवे देश की ओर चल पडे़।
गुरुजी गांवों में सिखी का नामदान देते हुए सैपफाबाद पहुंचे। इस स्थान को आजकल बहादुरगढ़ का किला कहते हैं। वह पीर भीखन शाह का श्रद्धालु बन गया और उनकी शिक्षा के कारण ही वह श्री गुरु नानकदेव जी हेतु भी बड़ी श्रद्धा रखता था।
जब श्री गुरु तेगबहादुर जी उसे मिलने हेतु सैपफाबाद पहुंचे तो नवाब सैपफ खां स्वयं गुरुजी के अभिनंदन हेतु बाहर आया। गुरुजी ने उसके बाग में डेरा लगाया। सैपफ खां ने गुरुजी की भरपूर सेवा की।
सैपफ खां ने गुरुजी की सवारी हेतु एक सुन्दर घोड़ा भेंट किया। माता गुजरी एवं माता नानकी जी की सवारी के लिए एक सुन्दर रथ बनवाया। गुरु जी उसके पास नौ दिन ठहरे। नवाब सैपफ खां हर समय गुरुजी के पास बैठा रहता और उनके साथ विचार-विमर्श करता रहता। भारत के भिन्न-भिन्न नगरों में होते हुए गुरुजी पटना पहुंचे, यहां उन्होंने अपने परिवार को टिका दिया।
अक्तूबर 1666 ई. को श्री गुरु तेगबहादुर जी ढाका की ओर रवाना हो गए। गुरु साहिब के कीर्त्तनिए एंव अन्य सिख आप जी के साथ गए। संगतों का कृतार्थ करते हुए आप ढाका शहर में पहुंच गए।
मसंद बलाकी दास ने गुरुजी हेतु एक सुन्दर पलंग बनवा कर रखा हुआ था। बलाकी दास गुरुजी को अपने घर ले गया और उस पलंग पर ही गुरुजी का आसन बनवाया। गुरुजी के दूसरे साथियों एवं गुरसिखों की एक अग मकान में रिहायश का प्रबंध कर दिया। बाकी दास की माता ने अपने हाथों से कातकर गुरुजी के लिए एक पौशाक तैयार की हुई थी। गुरुजी उनके घर ठहरे तो माता जी ने उन्हें यह पोशक अर्पण की। गुरुजी ने बडे़ सम्मान से उस पोशाक को पहना और माता जी को नाम दान दिया। गुरुजी काफी दिन भाई बलाकी दास के घर ठहरे।
एक बार बलाकी दास मसंद की माता जी ने गुरुजी से प्रार्थना की कि उन्होंने गुरु साहिब की एक तस्वीर कलाकार से बनवा कर अपने पास रखनी है। गुरुजी ने उसे समझाया कि गुरु मंत्र का जाप करने से ही सब कुछ प्राप्त हो जाता है। लेकिन माता जी अपने हठ पर अडे़ रहे। बलाकी दास बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति था, उसने एक योग्य कलाकार को तस्वीर बनाने हेतु बुलाया। कलाकार आकर तस्वीर बनाने लग गया। वह तस्वीर बनाता गया। गुरुजी के शरीर के समस्त अंग उसने ठीक-ठाक बना लिए, किन्तु जब गुरुजी के चेहरे की ओर देखता तो उसका ब्रश ही न चलता। वह गुरु साहिब के चेहरे का तेज-प्रताप ही न झेल सका। उसने भरसक प्रयास किए लेकिन ब्रश उसका साथ न देता। अंततः गुरु साहिब ने उसके हाथों से ब्रश पकड़ लिया और अपना चेहरा स्वयं बनाया। फिर वह तस्वीर गुरुजी ने अपने हाथों से माता जी को दे दी। माता जी वह तस्वीर प्राप्त करके बहुत प्रसन्न हुई।
इस तस्वीर के बारे में बताया जाता है कि जहां-जहां गुरु साहिब के ब्रश लगे, उतनी तस्वीर अभी भी उस तर चमकती है लेकिन शेष भाग बहुत फीका पड़ गया है।
जब गुरु जी की संतुष्टि हो गई कि रिहायशी मकान, दीवान हाल व अन्य विश्राम घर सुयोग्य बन गए हैं तो आपने एक हुक्मनामा लिख कर परिवार को आनंदपुर साहिब पहुंचने की हिदायत करके एक सिख को पटना साहिब भेज दिया।
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कुछ दिनों पश्चात् ही गुरु परिवार आनंदपुर जाने हेतु तैयार हो गया। जब सारा परिवार आनंदपुर पहुंचा तो उस समय दरबार लगा हुआ था और ‘आसा दी वार’ का कीर्तन हो रहा था। कीर्तन की समाप्ति के बाद गुरुजी स्वयं अपने साहिबजादे को लेने आए। उन्होंने बाला प्रीतम को अत्यंत प्रेम किया और दरबार हाल में अपने पास बैठा लिया। शेष परिवार भी कीर्तन हाल में ही विराज गया। सारी संगत बाला प्रीतम को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई। जब साहिबजादे बाला प्रीतम के आनंदपुर आने के बारे में अन्य संगतों को पता चला तो संगतें शुभ-कामनाएं देने हेतु गुरुघर पहुंचने लगीं। दूर-दूर के मसंद उपहार लेकर उपस्थित होने लगे। आनंदपुर साहिब में हर तरफ हर्षोल्लास का वातावरण हो गया।
उस समय दिल्ली के तख्त पर बैठा बादशाह औरंगजेब बड़ा कट्टरवादी एवं अत्याचारी था। उसने कश्मीर के सूबे को सख्त हिदायत की कि कश्मीर के पंडितों को मुसलमान धर्म धरण करने हेतु उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करे।
उस समय कश्मीरी पंडितों का मुख्य पंडित कृपा राम था। उसने समस्त ब्राह्मणों को यह सलाह दी कि श्री गुरु नानकदेव जी एक ऐसे महापुरुष हुए हैं, जो किसी हाकिम, बादशाह अथवा जालिम से डरते नहीं थे। उनकी गद्दी अभी भी चलती है। श्री गुरु हरिगोबिंद साहिब जी ने एक छोटी सी सेना से इन मुसलमान हाकिमों में भगदड़ मचा दी थी। आजकल उनकी गद्दी पर श्री गुरु तेगबहादुर साहिब बैठे हैं। सभी पंडित गुरुजी के दरबार में उपस्थित हुए।
गुरुजी उस समय अपने दीवान स्थान मंजी साहिब पर विराजमान थे। पंडितों ने उपस्थित होकर प्रार्थना की, “महाराजा! ताकत के नशे में चूर जालिम औरंगजेब हमें मुसलमान बनाना चाहता है। हमारी उसके अत्याचार से रक्षा करें।” गुरुजी अपनी इस सोच में ही लीन थे कि साहिबजादा गोबिंद राय जी वहां आ पहुंचे। उन्होंने कहा, ‘पिताजी! क्या सोच रहे हो, यह लोग कौन हैं?’
साहिबदाजे की बात सुनकर गुरुजी बोले, “बेटा! यह कश्मीर के दुखी पंडित हैं। औरंगजेब एक अत्याचारी बादशाह है, वह इन्हें बलपूर्वक मुसलमान बनाना चाहता है। इनकी रक्षा हेतु किसी महापुरुष के बलिदान की आवश्यकता है। यदि यह मुसलमान बनना स्वीकार नहीं करेंगे तो इनका वध कर दिया जाएगा।”
अपने पिता से यह बात सुनकर साहिबजादों ने कहा, “पिताजी! आप जी से अन्य कौन बड़ा महापुरुष है, जो इनकी रक्षा कर सके। आप जी इनकी किसी तरह भी सहायता करो।”
अपने दिलेर पुत्र की यह बात सुनकर गुरुजी ने पंडितों से कहा, “जाकर अपने सूबे के हाकिम को कह दो, यदि वह हमारे धर्मिक नेता श्री गुरु तेगबहादुर जी को मुसलमान बना लेगा तो वह भी मुसलमान बन जाएंगे। हम तिलक जनेऊ को तो नहीं मानते लेकिन दुखियों की पुकार भी हम बर्दाश्त नहीं कर सकते।” गुरु साहिब के यह वचन सुनकर पंडित सहर्ष चले गए।
पंडितों के जाने के पश्चात् ही गुरु साहिब ने दिल्ली जाने की तैयारी कर ली। उन्होंने अपने साथ केवल छः सिख लिए। गुरुगद्दी उन्होंने (गुरु) गोबिंद राय को सौंप देने के लिए कहा। इस तरह सारे प्रबंध पूरे करके गुरु जी घोड़ों पर सवार होकर अपनी दिव्य यात्रा पर चल पडे़। आप जी प्रचार करते हुए आगरा पहुंचे। उन्होंने यहां एक बडे़ अनोखे ढंग से अपनी गिरफ़्तारी का कौतुक रचा।
उस बाग में एक लड़का भेड़-बकरियां चरा रहा था। उसे आप जी ने एक बहुमूल्य अंगूठी दी कि इसे गिरवी रखकर हमारे लिए इस दुशाले में दो सेर जलेबियां ले आए। लेकिन जब लड़का दो बहुमूल्य वस्तुएं लेकर हलवाई के पास गया तो हलवाई को सन्देह हो गया कि लड़का अवश्य कोई चोर है। चोरी का माल लेकर वह कोतवाली पुलिस के पास चला गया। जब पुलिस ने लड़के से पूछा तो उसने गुरुजी का ठिकाना बता दिया। इस तरह पुलिस ने गुरुजी को गिरफ्तार कर लिया।
गुरुजी को किसी प्रकार का डर अथवा भय नहीं था। दिल्ली पहुंच कर उन्हें इस्लाम कबूल करने हेतु बहुत लालच दिखाए गए, लेकिन गुरुजी अपने निर्णय पर अड़िग रहे। उन्हें भयभीत करने हेतु भाई सतीदास को आरे से चीरा गया, भाई दयाले को पानी में उबाला गया व भाई सतीदास को रुई में लपेटकर जीवित जलाया गया। लेकिन गुरुजी पर इस्लाम का कोई असर न हुआ। अंत में उन्हें चांदनी चौक में समस्त लोगों सामने शहीद कर दिया गया।
श्री गुरु तेगबहादुर जी की शिक्षाएं आज भी धर्म व समाज के कार्य के लिए हमें प्रेरणा देती है। एक गीत में कहा गया है – “धर्म के लिए जिए, समाज के लिए जिए, ये धडकने ये श्वास हो पुण्यभूमि के लिए कर्मभूमि के लिए… ।”
(लेखिका कैंब्रिज इंटरनेशनल फाउंडेशन स्कूल जालंधर में प्रवक्ता एवं विभाग प्रमुख है।)