भारत-पाक युद्ध 1971 में सेना की भूमिका

✍ मेजर जनरल रणजीत सिंह

1971 का वर्ष भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के इतिहास में काफी महत्त्व रखता है। उसी वर्ष भारत ने पाकिस्तान को वह घाव दिया था, जिसकी टीस पाकिस्तान को हमेशा अनुभव होती रहेगी। बांग्लादेश की बात करें तो यह वही वर्ष था, जब दुनिया के मानचित्र पर बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरा। 1971 के उस इतिहास बदलने वाले युद्ध का प्रारम्भ 3 दिसंबर, 1971 को हुआ था।

युद्ध की पृष्ठभूमि

शेख मुजीबुर रहमान पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्ता के लिए प्रारम्भ से संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए छह सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इन सब बातों से वह पाकिस्तानी शासन की आंख की किरकिरी बन चुके थे। साथ ही कुछ अन्य बंगाली नेता भी पाकिस्तान के निशाने पर था। उनके दमन के लिए और विद्रोह की आवाज को हमेशा से दबाने के उद्देश्य से शेख मुजीबुर रहमान और अन्य बंगाली नेताओं पर अलगाववादी आंदोलन के लिए मुकदमा चलाया गया। लेकिन पाकिस्तान की यह चाल स्वयं उस पर भारी पड़ गई। मुजीबुर रहमान इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की दृष्टि में हीरो बन गए। इससे पाकिस्तान बैकफुट पर आ गया और मुजीबुर रहमान के विरुद्ध षडयंत्र के केस को वापस ले लिया।

पाक सेना का अत्याचार

पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता का आंदोलन प्रतिदिन तेज होता जा रहा था। पाकिस्तान की सेना ने आंदोलन को दबाने के लिए अत्याचार का सहारा लिया। मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना ने क्रूरतापूर्वक अभियान प्रारम्भ किया। पूर्वी बंगाल में बड़े पैमाने पर अत्याचार किए गए। हत्या और रेप चरम तक पहुँच गया। मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी और टॉर्चर से बचने के लिए बड़ी संख्या में अवामी लीग के सदस्य भागकर भारत आ गए। प्रारंभ में पाकिस्तानी सेना की चार इन्फैंट्री ब्रिगेड अभियान में सम्मिलित थी लेकिन बाद में उसकी संख्या बढ़ती चली गई। भारत में शरणार्थी संकट बढ़ने लगा। एक साल से भी कम समय के अंदर बांग्लादेश से लगभग एक करोड़ शरणार्थियों ने भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में शरण ली। इससे भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया।

भारत का हस्तक्षेप

माना जाता है कि मार्च 1971 के अंत में भारत सरकार ने मुक्तिवाहिनी की सहायता करने का निर्णय लिया। मुक्तिवाहिनी वास्तव में पाकिस्तान से बांग्लादेश को स्वतंत्र कराने वाली पूर्वी पाकिस्तान की सेना थी। मुक्तिवाहिनी में पूर्वी पाकिस्तान के सैनिक और हजारों नागरिक सम्मिलित थे। 31 मार्च, 1971 को इंदिरा गांधी ने भारतीय सांसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की सहायता की बात कही थी। 29 जुलाई, 1971 को भारतीय संसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़कों की सहायता करने की घोषणा की गई। भारतीय सेना ने अपनी ओर से तैयारी प्रारम्भ कर दी। इस तैयारी में मुक्तिवाहिनी के लड़ाकों को प्रशिक्षण देना भी जुड़ा था।

भारत पर आक्रमण और युद्ध का प्रारम्भ

पूर्वी पाकिस्तान संकट विस्फोटक स्थिति तक पहुंच गया। पश्चिमी पाकिस्तान में बड़े-बड़े मार्च हुए और भारत के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई की मांग की गई। दूसरी ओर भारतीय सैनिक पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर सतर्क थे। 23 नवंबर, 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने पाकिस्तानियों से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की वायु सेना ने भारत पर हमला कर दिया। भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया गया। इसके साथ ही 1971 के भारत-पाक युद्ध प्रारंभ हो गया।

यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी सेना का आत्म-समर्पण भी माना जाता है। दोनों देशों के बीच युद्ध का प्रारम्भ पाकिस्तान के उस घमंड के साथ हुआ, जिसके नशे में आकर उसने भारत के 11 एयरबेस पर हवाई हमला किया। यह शायद पहली बार था जब भारत की तीनों सेनाओं ने एक साथ लड़ाई लड़ी (India-Pakistan War)। भारत ने पश्चिम में पाकिस्तानी सेना की हरकतों का तुरंत उत्तर दिया और लगभग 15,010 किलोमीटर पाकिस्तान क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

लोंगेवाला में पाक टैंकों को समाधि बना जीता भारत-पाक युद्ध 16 दिसंबर 1971 का दिन भारत के लिए गौरवमयी दिन था। जब एक ओर पाकिस्तान के जीओसी ले. जनरल ए.के. नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के पूर्वी कमान के जीओसी ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया था और दूसरी ओर जैसलमेर से लगती सीमा पर लोंगेवाला क्षेत्र में पाक सेना के टैंकों को भारतीय जांबाजों ने समाधि बना दिया था। चार दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने अपनी गलत मंशा के चलते भारत की सीमा पर आक्रमण बोल दिया था। पाक सेना की मंशा थी कि रात को आक्रमण किया और प्रातः जैसलमेर दोपहर में जोधपुर पहुंचकर अगले दिन दिल्ली तक पहुंच जाएं। लेकिन उन्हें अनुमान नहीं था कि लोंगेवाला से लगती सीमा पर भले ही सैनिकों की संख्या कम थी लेकिन उनका साहस किसी शत्रु को समाप्त करने के लिए बहुत ज्यादा थे। इसी साहस का कारण था कि टैंक और पैदल रेजीमेंट पूरे संसाधनों के साथ लोंगेवाला सीमा पर पहुंची पाक सेना को उल्टे पांव ही लौटना पड़ा। उस दौरान पाक सेना ने जिस सीमा चौकी पर हमला किया था वहां पर भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट के केवल 120 जवान ही तैनात थे और उनके पास पाक सेना से निपटने के शस्त्र भी सीमित थे लेकिन सीमित शस्त्रों के बावजूद बहादुर सैनिकों ने पाक सैनिकों को करारा उत्तर दिया। इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने भी अहम भूमिका निभाई। लोंगेवाला में इस युद्ध के निशान भारतीय सैनिकों की वीरता की कहानी बता रहे हैं। पाक सैनिकों ने लोंगेवाला सीमा चौकियों पर टैंकों से आक्रमण कर दिया था। भारतीय टैंकों ने इसका करारा जवाब दिया।

आज भी है पाकिस्तानी टैंक

भारतीय सेना ने 1971 के भारत पाक युद्ध का जीवंत चित्रण करने के लिए जैसलमेर शहर से 10 किलोमीटर दूर ‘वार म्यूजियम’ और लोंगेवाला में युद्ध स्थल पर ‘युद्ध स्मारक’ बनाया है। हजारों सैलानी यहां पहुंचकर भारतीय सैनिकों की वीर गाथा के साक्षी बन रहे हैं। इन स्थानों पर पाकिस्तानी टैंकों के साथ भारतीय जवानों के शस्त्र, आरसीएल हंटर विमान भी प्रदर्शित किए हुए हैं। यहां पर 15 मिनट की वीडियो फिल्म भी दिखाई जाती है जिसमें सेना के इस युद्ध का जीवंत प्रदर्शन होता है। 16 दिसंबर को भारतीय सेना विजय दिवस मनाती है।

विजय दिवस

विजय दिवस यानी भारतीय सेना की अदम्य साहस और शौर्य का प्रतीक दिवस है। तीन दिसंबर 1971 की रात से प्रारम्भ हुए युद्ध को भारतीय सेना ने मात्र 13 दिनों के अंदर ही यानी 16 दिसंबर को समाप्त कर दिया था। पाकिस्तान के 93 हजार सैनिक आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य हो गए थे। युद्ध के दौरान पाकिस्तान के पक्ष में चीन कोई हरकत न करे इसके लिए सभी मोर्चों पर तीनों सेना ने हर स्थिति से निपटने की तैयारी की थी। परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान कहीं भी किसी भी मोर्चे पर भारतीय सेना के सामने नहीं टिका। पाक सैनिक अमेरिकी जहाज के माध्यम से सुरक्षित क्षेत्र में भागने के प्रयास में थे। इसके लिए पूरी तैयारी हो गई थी लेकिन उसका सीक्रेट कोड भारत के हाथ लग गया था। इस वजह से पाक सैनिक भाग भी नहीं सके थे। 16 दिसंबर का दिन भारत के साथ-साथ उसके पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश के लिए काफी स्मरणीय है। ये दिन जहां भारत और बांगलादेश को गर्व से सिर ऊंचा करने का अवसर देता है, तो वहीं पाकिस्तान का सिर लज्जा से नीचे झुका देता है। भारत ने वर्ष 1971 में पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध जीता था जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश नाम के एक अलग देश का जन्म हुआ। जिसे उस समय पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। भारत पाकिस्तान पर जीत का जश्न विजय दिवस के तौर पर मनाता है। 50 साल पहले आज ही के दिन पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया था। उसकी सेना ने भारत के सामने आत्म-समर्पण कर दिया।

पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी (General Amir Abdullah Khan Niazi) के 93,000 सैनिकों के साथ, भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी की संयुक्त सेना के सामने आत्म-समर्पण करने के बाद युद्ध समाप्त हो गया। जनरल ए.के. नियाजी ने 16 दिसंबर 1971 को ढाका में समर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जिससे पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश का नए देश के रूप में गठन हुआ। बांग्लादेश के जन्म के साथ ही पाकिस्तान ने भी अपना आधा क्षेत्र खो दिया।

(लेखक भारतीय सेना से ‘अति विशिष्ट सेना मेडल व विशिष्ट सेना मेडल’ प्राप्त सेवानिवृत अधिकारी है।)

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