– दिलीप वसंत बेतकेकर
श्रुति छह माह की बालिका, फर्श पर खेल रही थी। निकट की स्टूल पर मिक्सर चल रहा था। धक्का लगा और वह मिक्सर बच्ची के हाथ पर आ गिरा। सुदैव से ज्यादा गंभीर कुछ हुआ नहीं। परन्तु उसे दर्द हो रहा था। वह चिल्लाते हुए रोने लगी। रोते-रोते ही सो गई।
परन्तु इस घटना के बाद घर में मिक्सर अथवा कपड़े धुलाई की मशीन चालू हो अथवा कुकर की सीटी बजे तो उसकी ध्वनि सुनकर वह रोने लगती। सो भी रही हो तो जाग जाती और चिल्लाते हुए रोने लगती। इस कारण अब कपड़े धोने की मशीन, मिक्सर अथवा कुकर शुरू करने से पूर्व उसे गोद में लेना पड़ता। कुकर की सीटी अब बजने ही वाली है यह ध्यान में आते ही उसे तुरंत उठाकर गोद में लेना पड़ता! आवाज़ का भय उसके मन में निर्मित हो गया था! इस भय को दूर करने के लिये एक दिन एक प्रयोग करना निश्चित किया। उसको गोद में लेकर ही अनेक बार मिक्सर शुरू और बंद किया। यह क्रिया अनेक बार दोहराई। धुलाई मशीन पर भी इसी प्रयोग को किया। अनेक बार ऐसा करने पर धीरे-धीरे उसका आवाज के प्रति भय कम होता गया। अब वह आवाज़ से नहीं घबराती।
छोटे बच्चों को अनेक बातों का भय लगता है। सभी बालकों को एक ही प्रकार का भय नहीं रहता। कुछ वर्ष पूर्व शिरोडा के ‘शिवग्राम शालेय परिवार’ ने कक्षा पांच से आठवीं तक के विद्यार्थियों के लिये एक शिविर आयोजित किया था। पाँच-छः शालाओं के बच्चे एकत्रित हुए थे। उनके समक्ष भाषण न देते हुए उनके विचार समझने के उद्देश्य से मैंने उनसे कुछ प्रश्न पूछे। उनसे बातचीत की।
बच्चों को किन बातों का भय लगता है ये जानने को मैं उत्सुक था। इस हेतु मैंने उनसे एक कागज पर लिखकर देने को कहा कि उन्हें किस बात का डर लगता है? तदनुसार बच्चों ने लिख दिया। उसके अनुसार 26 प्रकार का भय उनके मन में रहता है ये बात ज्ञात हुई। भय के प्रकार भी भिन्न-भिन्न थे। किसी को शिक्षकों का भय; अधिकतर बच्चों को तो किसी को शाला जाते हुए कुत्ता अथवा अन्य पशु से भय लगता! किसी को खेलते हुए गिर जाने का डर, तो किसी को बच्चे उन पर हंसेंगे इस बात का डर! कोई बड़े लड़कों से भय करता, तो कोई शाला जाते समय उन्हें कोई पकड़ न ले इस बात का भय! ऐसे कितने ही प्रकार के भय जानने को मिले। एक आठवीं की लड़की को तो कक्षा के लड़कों से भय लगता!
भय के इन प्रकारों को सुनकर बड़े हँसेंगे, बच्चों का मज़ाक उड़ाएंगे। ‘इमसें भय की क्या बात है’ कहेंगे, उसे अनदेखा करेंगे। परन्तु इससे बच्चों का भय तो दूर नहीं होगा! इसके विपरीत समय रहते भय को दूर करने के उपाय न करने पर वह भय मन में कायम जाएगा और बाद में युवा होने पर भी वह भय का भूत पीछा न छोड़ेगा। बड़ी आयु के अनेक लोगों में भी भय का कुछ अंश पाया जाता है। इसलिये बच्चों को लगने वाले भय को हंसी का विषय न समझते हुए कारगर उपाय कर, प्रयास कर, भय को दूर करें। विशेषकर पालक और शिक्षक इस ओर अधिक ध्यान दें।
पालकों के व्यवहार से बातचीत के दौरान कभी भय व्यक्त होता है, और इस बात का भय बच्चों में भी व्याप्त हो जाता है। उदाहरण झींगुर, कॉकरोच या छिपकली देखते ही माँ जब ‘ई’…‘ई’… कर चिल्लाती है तब जब भी बच्चे उसे देखते हैं तब उसे भी भय उत्पन्न हो जाता है। कुत्ता देखने पर यदि माँ जैसे कोई भूकंप आ गया हो, डर से अपने बच्चे को तुरंत अपनी ओर झटके से खींच लेती है, इससे बच्चे के मन में भी कुत्ते के प्रति भय उत्पन्न हो जाता है। कुत्ता पागल हो तो बात अलग है। प्राणियों का भय लगता हो तो प्रत्यक्ष प्राणी दिखाना, कभी प्राणी संग्रहालय में अथवा अभयारण्य में जाने से यह भय कुछ परिमाण में कम हो सकता है।
अनेक बार बच्चों के मन में भय उत्पन्न करने के लिए पालक कारणीभूत होते है। अपनी इच्छानुसार कार्य कराने के उद्देश्य से बच्चों को भय दिखाया जाता है। विशेषकर बच्चा पढ़ाई नहीं करता हो तब, भोजन नहीं कर रहा हो तब, दंगा कर रहा तब, भय दिखाया जाता है। बच्चों के प्रति प्रेम के कारण, परवाह के कारण, अनजाने ही पालक ऐसा व्यवहार करते हैं। बच्चों को बोर्डिंग हाऊस में भेज देने का भय तो घर-घर में दिखाया जाता है। अपने माता-पिता से दूर रहना पड़ेगा, वे अपने को दूर भेज देंगे, इससे बच्चों को भय लगता है। अधिक छोटे बच्चों को ‘बाबा आया’, ‘बूढ़ा बाबा पकड़कर ले जायेगा झोली में रखकर’, ‘भूत पकड़ लेगा’, ऐसा कहकर उनके मन में भय उत्पन्न किया जाता है। पालकों का उद्देश्य कितना भी अच्छा हो, बच्चों के मन पर होने वाले दूरगामी परिणाम निश्चित ही उसके व्यक्तित्व के लिये घातक बन जाते हैं।
बच्चे चलते-चलते कहीं गिर पड़ेंगे, उन्हें चोट लगेगी, ऐसी चिन्ता पालकों को लगती है और इसीलिये वे बच्चों को कहते हैं – ‘‘अंधेरे में नहीं जाना, वहाँ कोई बैठा है, भूत है अथवा राक्षस है’’, ऐसी अज्ञात बातों का भय दिखाने पर बच्चे विश्वास कर लेते हैं। फिर बच्चे अंधेरे में जाने से डरते हैं। ये डर बाद में उनके युवा होने पर भी कभी-कभी कायम रहता है। ऐसे वातावरण में पलने वाले बच्चे कायर बन जाते हैं। समस्या उस समय के लिये हल हो जाती है, बच्चे उस समय तो अंधेरे में नहीं जाते, परन्तु अंधेरे का भय उनके मन में कायम हो जाता है और इस भय का दूर होना कठिन हो जाता है।
मां-पिता में आपसी सम्बन्ध अच्छे न होने पर उनका निरंतर झगड़ा करना, ऐसा वातावरण भी बच्चे में असुरक्षितता की भावना पैदा करता है। बच्चे के सामने ही पिता द्वारा माता को डाँटना या मारपीट करना, इन कारणों से भी बच्चे में भय उत्पन्न होता है।
कुछ पालक बच्चों की गलती पर पूर्णतया दुर्लक्ष करते हैं, तो कुछ अत्यधिक चिंता दर्शाकर बच्चों को अपने दबाव में रखते दिखाई देते हैं। इस प्रकार दो भिन्न प्रकार की, विपरीत प्रकार की भूमिकाएं होती हैं।
बच्चों से केवल मारपीट करके, बांध के रखने से, कमरे में बंद करने आदि उपायों से वे सुधर जाएंगे ये धारणा गलत है।
कुछ पालक बच्चे की इतनी अधिक चिन्ता करते हैं कि वे उसके आसपास निरंतर रहना पसन्द करते हैं। बच्चों पर निरंतर उनका साया रहता है! वे बच्चों को स्वतंत्र रूप से कुछ भी करने नहीं देते। बच्चा गिर पड़ेगा, उसे चोट लगेगी, जख्मी हो जाएगा, ऐसी चिन्ता निरन्तर करते रहते हैं। इस कारण वे बच्चों को ‘ये मत करो’, ‘वो मत करो’, ‘हाथ कट जायेगा’, ‘पैर में छाले पड़ जायेंगे’, ‘ऊपर से गिर जाओगे’, ‘सिर फट जायेगा’, ऐसे टोकते रहते हैं। उनका बच्चों के प्रति प्रेम, ममत्व, चिंता आदि का आदर करते हुए भी कहना चाहूँगा कि ऐसे पालक बच्चों के विकास में बाधक बनते हैं।
बच्चों को इतनी नाजुकता से पालने के कारण बच्चे मजबूत, निर्भय होने की अपेक्षा कमजोर, रोने वाला, कायर बन जाता है। उसकी सृजनशीलता नष्ट हो जाती है। स्वयं निर्णय लेने की क्षमता निर्मित नहीं हो पाती और बड़े होकर भी वह परावलंबी बनकर रह जाता है।
कुछ पालकगण दूसरा छोर पकड़ते हैं, विपरीत व्यवहार करते हैं। बच्चे स्वतंत्र रूप से व्यवहार करें ऐसा वह सोचते हैं और अति स्वातंत्रय देते हैं। कुछ पालक अपने छोटे बालक को भी अलग कक्ष में सोने देना चाहिए, ऐसी अपेक्षा रखते हैं। ऐसी स्थिति में ‘माता-पिता हमें दूर रखते हैं’ ऐसी भावना बच्चे में आने से भी वे भय के शिकार होते हैं।
पालकों को संयम रखते हुए समझदारी से व्यवहार करना चाहिये। बच्चों में भय उत्पन्न हो ऐसा कुछ न करते हुए उन्हें समझाकर (किंतु अति लाड़-प्यार दिखाकर नहीं) परिस्थिति को सुलझाएं।
बच्चों को लगने वाले डर की ओर पूर्णतया दुर्लक्ष न करते हुए वह भय किस कारण उत्पन्न हुआ, इस बात को खोजने का प्रयास करें। उसको दूर करने का प्रयास करें। बच्चों को भयमुक्त करना आवश्यक है और इस हेतु एक बात अत्यंत आवश्यक है “बच्चों के लिए कुछ समय देना”!!
(लेखक शिक्षाविद् है और विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है।)
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