– देवेंद्र सैनी
भारत की स्वतंत्रता के समय से ही भारत और पाकिस्तान के संबंध अच्छे नहीं रहे। उसका मुख्य कारण है कश्मीर घाटी. जनसंख्या के आधार पर 1947 में देश बंटवारा हुआ था। जिस जगह ज्यादा मुसलमान आबादी थी वह पाकिस्तान बना और जहां ज्यादा हिंदू रहते थे वह हिंदुस्तान या भारत बना। पाकिस्तान चाहता था कि कश्मीर उसका हिस्सा बने क्योंकि कश्मीर घाटी की ज्यादा जनसंख्या मुसलमान थी परंतु कश्मीर घाटी के अलावा जम्मू और लद्दाख में मुसलमान की संख्या बिल्कुल नहीं थी या कम थी इसलिए वहां के राजा चाहते थे कि वह एक स्वतंत्र राष्ट्र की तरह से रहें।
जैसे ही देश आजाद हुआ पाकिस्तान ने 1947-48 में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और अंतरराष्ट्रीय जगत को कहा कि यह पाकिस्तान सेना नहीं है। यह कबायली लोग हैं जिन्होंने विद्रोह किया है। कश्मीर के राजा ने जब भारत की सेना से मदद मांगी तो भारत की सेना ने कहा कि आप अभी तक भारत का हिस्सा नहीं बने हैं इसलिए हम अपनी सेना को आप की भूमि पर लड़ाई करने के लिए नहीं भेज सकते क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध है। फिर कश्मीर के राजा के निर्णय के अनुसार कश्मीर का विधिवत भारत में विलय हो गया। भारत ने अपनी सेना भेजी और पाकिस्तान की सेना को हमने बुरी तरह से हरा दिया।
इसी तरह की एक घटना 1965 में हुई जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया तो भारत की सेनाओं ने मुंह तोड़ जवाब दिया। भारत की बहादुर सेना ने लाहौर तक जीत लिया था। अंतरराष्ट्रीय दबाव में समझौता हुआ और उस समझौते में भारत ने जीता हुआ हिस्सा पाकिस्तान को वापस लौटा दिया। फिर 1971 में भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराया और बांग्लादेश का निर्माण किया। इस युद्ध में भारत की बहादुर सेना ने पाकिस्तानी कायर सेना को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया। और इस तरह से लगभग 90000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
बार-बार युद्ध हार कर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बेइज्जती कराने के बाद पाकिस्तान को यह अच्छी तरह से पता लग चुका है कि वह प्रत्यक्ष रूप में भारत के साथ किसी भी युद्ध में जीत नहीं सकता इसलिए पाकिस्तान ने छद्म युद्ध को बढ़ावा दिया। भारत में उसने धार्मिक आतंकवाद पनपाया और समय-समय पर भारत की सीमाओं पर बमबारी करके और आतंकवादी भेजकर भारत को अस्थिर करने का प्रयास करता रहा है।
यह सत्य है कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते। अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे रिश्ते होने चाहिए इसलिए भारत की ओर से शांति के अनेक प्रयास हुए। शांति प्रयासों के क्रम में 1999 के प्रारंभ में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी जब स्वयं शांति प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए लाहौर बस यात्रा कर रहे थे, ठीक उसी समय पाकिस्तान की सेना भारत की पीठ में छुरा घोपने की तैयारी में लगी हुई थी और उसने भारत के कारगिल क्षेत्र के द्रास सेक्टर की पहाड़ियों पर पीछे से अपने सैनिकों को भेजकर पहाड़ियों पर अवैध कब्जा कर लिया और वहां पर बंकर बना लिए।
सामरिक दृष्टि से यह क्षेत्र भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कश्मीर को लेह लद्दाख से जोड़ने के लिए तथा चीन और पाकिस्तान की सीमा तक जाने के लिए एकमात्र मुख्य मार्ग इन्हीं पहाड़ियों के नीचे से जाता है।
पाकिस्तान की सेना मुजाहिदीन के भेष में अवैध रूप से इन पहाड़ियों पर उपस्थित थी और भारत के इस मुख्य मार्ग को सीधे-सीधे नियंत्रित कर सकती थी।
भारत की सेना के सामने बहुत बड़ी चुनौती थी। दोनों देश परमाणु क्षमता संपन्न देश है. थोड़ी भी चूक होती तो दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध छिड़ सकता था। एक कठिन चुनौती यह भी थी कि यह स्थान लगभग 18000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जहां पर ऑक्सीजन की बहुत कमी रहती है और सांस लेने में बेहद कठिनाई होती है। अगर सीधे-सीधे हवाई हमला करें तो हो सकता था कि हमारे युद्धक विमान पाकिस्तान की सीमा में गलती से प्रवेश कर जाए क्योंकि आसानी से हवाई जहाज को कम दूरी में नियंत्रित नहीं किया जा सकता. एक चुनौती यह भी थी कि हम नीचे थे और शत्रु ऊपर था। हमारे सैनिक जब भी पहाड़ पर चढ़ने का प्रयास करते तो शत्रु हमें बहुत आसानी से देख लेता था और हमारे सैनिकों को शहीद कर देता था। शत्रु एक से अधिक चोटियों पर कब्जा जमाए हुए बैठे थे यदि हम बायीं चोटी पर चढ़ते तो हम पर दायीं चोटी से हमला हो जाता था और यदि हमारे सैनिक दायीं चोटी पर चढ़ते तो बायीं चोटी से हमला हो जाता था। गोला बारूद, बंदूकें और युद्ध का सामान लेकर पहाड़ पर चढ़ना अपने आप में एक बड़ी चुनौती था। अपनी जान भी बचानी थी और शत्रुओं पर आक्रमण भी करना था. इन चुनौतियों में एक चुनौती यह भी थी कि शत्रु को अपनी सीमाओं से कैसे हटाया जाए अपने कबजाए हुए क्षेत्र को कैसे वापस लाया जाए।
इस पूरे युद्ध में कोई भी परिस्थिति हमारे पक्ष में नहीं थी। सभी परिस्थिति और सभी पहलू हमारे विरुद्ध थे। अनेक चुनौतियां सामने होते हुए भी भारत की सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया। कारगिल का युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और अंत में ऑपरेशन विजय सफल रहा। 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने अपने अदम्य साहस और अभूतपूर्व शौर्य का प्रदर्शन करते हुए द्रास सेक्टर की सारी चोटियों को पाकिस्तान के सैनिकों के कब्जे से आजाद करा लिया। पाकिस्तान की सेना इतनी कायर निकली कि उन्होंने अपने मरे हुए सैनिकों के शव भी स्वीकार करने से मना कर दिया। ऐसे में हमारी सेना ने दुश्मन की सेना के मृत शरीरों को पूरे सम्मान के साथ दफनाया।
उस समय पाकिस्तान की सेना के प्रमुख जनरल मुशर्रफ थे। बाद में जनरल मुशर्रफ के वक्तव्यों से यह सिद्ध हुआ कि पाकिस्तान की ओर से लगभग 5000 घुसपैठिए इस युद्ध में सम्मिलित थे। इस युद्ध में भारत की ओर लगभग 527 सैनिक शहीद हुए और लगभग 1363 सैनिक घायल हुए।
इस युद्ध में बड़ी संख्या में रॉकेट और बमों का प्रयोग किया गया। इस दौरान करीब 2,50,000 गोले दागे गए वहीं लगभग 5000 बम फायर किए गए। 300 से अधिक तोपों और राकेट का आक्रमण किया गया। बाद में इस युद्ध में भारत की ओर से MIG-27 और MIG-29 प्रयोग हुआ। इस युद्ध में बोफोर्स तोपों का भी भरपूर प्रयोग किया गया।
पाकिस्तान की सेना से बरामद वस्तुएं, जैसे – पाकिस्तान के सैनिकों के घर से आई चिट्ठियां और उनके अन्य सामान, लेह लद्दाख संग्रहालय में रखें हैं जिन्हें जाकर एक बार जरूर देखना चाहिए।
इस युद्ध में जिन पहाड़ियों को आजाद कराया गया उनके नीचे भारतीय सेना ने एक शहीद स्मारक बनाया है। कारगिल युद्ध में जितने भी सैनिक बलिदान हुए उन सभी के नाम की पट्टियां उस शहीद स्मारक में लगी हुई है। जिन तोपों का युद्ध में उपयोग किया गया, वह भी रखी गई है। हम सबको एक बार उस क्षेत्र में जाकर यह अनुभव लेना चाहिए कि किन किन कठिन परिस्थितियों में हमारे शूरवीर सैनिकों ने युद्ध किया होगा। कारगिल युद्ध आमने सामने का युद्ध नहीं था। यह अपने आप में अनूठा युद्ध था। ऑपरेशन विजय के रूप में भारतीय सेना की उपलब्धियां अद्वितीय हैं।
(लेखक सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में अधिवक्ता है और सीमा जागरण मंच में थल सीमा संयोजक है।)
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