रामचरितमानस में वर्णित भगवान श्रीराम का अयोध्या आगमन

✍ विनोद जोहरी

मोक्ष दायिनी सरयू तीरे अयोध्या परम धाम में नव्य, भव्य एवं दिव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की मृगशीर्ष नक्षत्र में सोमवार पोष माह के शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि तदनुसार 22 जनवरी 2024 की प्रतीक्षा केवल भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व के हिंदुओं को है। यह एक युग परिवर्तन का समय है। यह नवोत्थान का काल है, भगवान श्रीराम का मंदिर उसके केंद्र में है। आज भगवान श्रीराम भारतीय जनमानस के हृदय में विराजमान हैं। संपूर्ण भारत में जन-जन इस प्राण प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में मंदिरों, घर-घर, गली-गली अपनी श्रद्धा अनुसार धार्मिक अनुष्ठान करने को तत्पर हैं।‌ भक्ति की शक्ति के साक्षात् दर्शन हो रहे हैं। उल्लासित, आनंदित एवं उत्सुक अयोध्या धाम के कण-कण में अनुराग व्याप्त है। यही उत्साह तब भी था जब भगवान श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए जनमानस ने अपने सामर्थ्य और श्रद्धा से सहयोग और अंशदान दिया था। वह 4000 श्रमिक, सहयोगी जो भगवान श्रीराम के मंदिर के निर्माण में लगे हैं, कितने भाग्यशाली हैं जैसे भगवान ने उनके निमित्त यह पावन कार्य सौंपा हो!! भगवान श्रीराम के रामलला रूप के श्याम वर्ण विग्रह के दर्शन के लिए करोड़ों रामभक्त आतुर हैं। वह श्री अरुण योगीराज जी, श्री गणेश भट्ट तथा श्री सत्यनारायण पांडेय जी जिन्होंने रामलला की मूर्तियों का निर्माण किया है, हजारों वर्षों तक स्मृति में रहेंगे। आज श्रीराम चरित मानस के रचयिता परम पूज्य श्री तुलसीदास जी की कल्पना भगवान श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला के विराजमान होने में साकार रूप धारण कर रही है। श्री वाल्मीकि ऋषि उस काल के साक्षी हैं जिसका वर्णन महर्षि वाल्मीकि रामायण में भाव विभोर होकर किया गया है। उसी परिकल्पना को पुनः मूर्त रूप देने के लिए अयोध्या धाम राम नगरी सुसज्जित हो रही है। यह क्षण अविस्मरणीय होंगे।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और केंद्र सरकार ने अयोध्या को एक अनूठा पावन धाम बनाया है जिसमें उच्चीकृत रेलवे स्टेशन एवं महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण किया गया है।

जिस प्रकार से हम सब श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए अपने रोम-रोम में प्रफुल्लित हैं, उसी प्रकार से लंका में रावण के वध एवं विजय के पश्चात भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस आगमन को लेकर भी दीपावली के रूप में उत्सव मनाते हैं। संभवतया दीपावली का उत्सव और उत्साह विश्वभर में अद्वितीय है।

श्रीराम चरित मानस में वर्णित भगवान श्रीराम जी के लंका में रावण के वध और विजय के पश्चात अयोध्या में वापसी के दर्शन और वाल्मीकि रामायण में उस काल के वर्णित साक्षात् दर्शन हम सभी के लिए पावन एवं सौभाग्यशाली हैं। इसका वर्णन श्रीराम चरित मानस एवं श्री वाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन को समानान्तर रूप से प्रस्तुत किया गया है। दोहों एवं श्लोकों के केवल संक्षिप्त भाव का वर्णन है।

श्रीराम चरित मानस

आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को लंकापति रावण का वध करने के पश्चात भगवान श्रीराम कार्तिक अमावस्या के दिन अपने राज्य कौशल वापिस लौट रहे थे। लंका से कौशल आने की अवधि में वे विभिन्न स्थानों पर रूकते हुए आते हैं। तुलसीदास कृत रामचरितमानस के अनुसार, रावण वध के पश्चात जब भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी की बेला आई तो धर्म-अधर्म के इस युद्ध में उनके साथी रहे नील, जामवंत, हनुमान, सुग्रीव आदि दुःखी हो गए। अपने साथियों की मन:स्थिति को भांपते हुए भगवान श्रीराम ने उन्हें भी अपने साथ चलने के लिये कहा।

भगवान श्रीराम और उनके साथियों की इस यात्रा में पुष्पक विमान उनका वाहन बना। कुबेर का पुष्पक विमान उन्हें वायु मार्ग से अयोध्या ले जा रहा था। किंतु भगवान श्रीराम मार्ग में कई स्थानों पर रूके। सबसे पहले विमान अगस्त्य ऋषि के आश्रम में पहुँचा। मुनि अगस्त्य का आश्रम दंडकवन में था। इस आश्रम में उनके साथ कई अन्य मुनि भी रहते थे। तुलसीदास जी इस संदर्भ में लंकाकाण्ड में लिखते है-

“तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा।।

कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना।।”

दंडकवन पर पड़ाव डालने के बाद भगवान श्रीराम का पुष्पक विमान चित्रकूट में उतरा। अपनी प्रतीक्षा कर रहे मुनियों को संतोष दिलाते हुए भगवान श्रीराम ने वायुमार्ग से यमुना नदी के ऊपर से उड़ान भरी।

“सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा।।

तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा।।”

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

अब वह प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम के समीप पहुँच जाते है। यहाँ से वे गंगा माँ को प्रणाम करते है और सीता जी को संगम का महात्म्य समझाते है। इस बीच उन्हें अपनी राजधानी अयोध्या के दर्शन भी होते है-

“पुनि देखु अवधपुरी अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि।”

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

अब उनका पुष्पक विमान प्रयागराज में पड़ाव डालता है। यहाँ पर त्रिवेणी में स्नान करने के उपरांत वे वानरों और ब्राह्मणों को भोज भी कराते हैं-

“पुनि प्रभु आइ त्रिबेनीं हरषित मज्जनु कीन्ह।

कपिन्ह सहित बिप्रन्ह कहुँ दान बिबिध बिधि दीन्ह।”

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

यहाँ से भगवान श्रीराम ने अपने आगमन की प्रथम सूचना अयोध्या संप्रेषित की-

“जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥

रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥”

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

इसी मध्य भगवान श्रीराम ने भरत को अपने आगमन की सूचना हेतु हनुमान को आदेश दिया कि ब्राह्मण का रूप धारण कर के नंदीग्राम जाओ-

रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥

सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा॥

(लंकाकाण्ड-रामचरितमानस)

इसके उपरांत भगवान श्रीराम भरद्वाज मुनि के आश्रम पहुँचते हैं। यहाँ से पुष्पक विमान गंगा के दूसरे छोर पर पड़ाव डालने हेतु उड़ान भरता है। यहाँ पर भगवान श्रीराम अपने प्रिय मित्र निषाद राज से मिलते है। सीता, गंगा की पूजा-अर्चना करती है और आशीर्वाद ग्रहण करती है। अब विमान अयोध्या के लिये उड़ान भरता है।

भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन की प्रसन्नता में समस्त अयोध्या की स्त्रियाँ दही, दूब, गोरोचन, फल, फूल और मंगल के मूल नवीन तुलसीदल आदि वस्तुएँ सोने की थालों में भर-भरकर मंगल गीत गाते हुए अयोध्या भर में घूम रही है। भगवान श्रीराम को आते देखकर समस्त अयोध्या नगरी सौंदर्य से ओतप्रोत हो गई है। सरयू का जल अति निर्मल हो गया है।

अयोध्या का प्रत्येक नागरिक भगवान श्रीराम की एक झलक पाने को व्याकुल है। जो जिस दशा में है, वो उसी दशा में बाहर दौड़ा चला आ रहा है। कहीं भगवान श्रीराम की पहली छवि निहारने से कोई वंचित न रह जाए, इस भय से कोई बच्चे और वृद्ध को नहीं लाना चाहता। अयोध्यावासियों से अब और अधिक विलंब सहन नहीं हो रहा है। सभी एक-दूसरे से पूछ रहे हैं कि आपने भगवान श्रीराम को कहीं देखा है क्या? इनके साथ ही स्तुति-पुराण के जानकार सूत, समस्त वैतालिक लोग भी भगवान श्रीराम के दर्शन के लिये अयोध्या से बाहर आते हैं।

गुरू वशिष्ठ, कुटुंबी, छोटे भाई शत्रुघ्न तथा ब्राह्मणों के समूह के साथ भरत अत्यंत हर्षित होकर कृपा निधान भगवान श्रीराम की अगवानी हेतु राज महल के बाहर आते है। अयोध्या की बहुत सी स्त्रियाँ अपनी अटारियों पर चढ़कर आकाश की ओर देख रही है। भगवान श्रीराम के पुष्पक विमान को देखकर मंगल गीत भी गा रही है-

“बहुतक चढ़ीं अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान।

देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान॥”

(उत्तरकांड-रामचरितमानस)

भगवान श्रीराम का पुष्पक विमान अब अयोध्या में उतर चुका है। प्रभु श्रीराम पूर्णिमा के चंद्रमा हैं तथा अवधपुर समुद्र है, जो उस पूर्णचंद्र को देखकर हर्षित हो रहा है और कोलाहल करता हुआ बढ़ रहा है। इधर-उधर दौड़ती हुई स्त्रियाँ इस पयोनिधि की तरंगों के समान प्रतीत होती हैं। सब माताएँ भगवान श्रीराम का कमल-सा मुखड़ा देख रही हैं। उनके नेत्रों से प्रेम के अश्रु उमड़े आते है परंतु मंगल का समय जानकर वे अश्रुओं के जल को नेत्रों में ही रोके रखती हैं। सोने के थाल से आरती उतारती हैं और बार-बार प्रभु के अंगों की ओर देखती हैं। गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में लिखते है-

“सब रघुपति मुख कमल बिलोकहिं। मंगल जानि नयन जल रोकहिं॥

कनक थार आरती उतारहिं। बार बार प्रभु गात निहारहिं॥”

प्रभु श्रीराम को निहार कर माताएँ बात-बार निछावर करती है और ह्रदय में परमानंद तथा हर्ष से भर उठती है। माता कौशल्या बार-बार अपने पुत्र भगवान श्रीराम को निहारती है। सर्वप्रथम भगवान श्रीराम ने अयोध्या की पावन धरती व गुरू वशिष्ठ को प्रणाम किया। इसके उपरांत माँ कैकेई, माँ सुमित्रा व माँ कौशल्या से मिलकर वे महल की ओर चले-

“सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद।

चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृंद॥”

(उत्तरकांड-रामचरितमानस)

भगवान श्रीराम के आगमन के अवसर पर अनेक प्रकार के शुभ शकुन हो रहे हैं, आकाश में नगाड़े बज रहे हैं। अयोध्या के नगर के पुरुषों और स्त्रियों को सनाथ (दर्शन द्वारा कृतार्थ) करके भगवान श्रीराम महल को चले। इस पावन बेला पर अवधपुर की सारी गलियाँ सुगंधित द्रवों से सींची गईं हैं। अनेक प्रकार के सुंदर-मंगल साज सजाए गए है और हर्षपूर्वक नगर में बहुत-से वाद्य बज रहे है। नगर के लोगों ने सोने के कलशों को मणि-रत्नादि से अलंकृत कर और सजाकर अपने-अपने दरवाजों पर रख लिया है। सब लोगों ने मंगल के लिये बंदनवार, ध्वजा और पताकाएँ भी लगाई है। इसके साथ ही समस्त अयोध्या नगरी को दीपों से सजा दिया गया है। दीपों से सजी अयोध्या नगरी दीपोत्सव अर्थात दीपावली मना रही है।

अगले भाग में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित वाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम के अयोध्या धाम वापस आगमन को प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे। भगवान श्रीराम से संबंधित किसी भी वर्णन को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता बल्कि उसका हृदय की गहराई से अनुभव करके प्रफुल्लित हुआ जा सकता है। इन भावनाओं और भक्ति को व्यक्त करने के लिए शब्द अपूर्ण हैं। अद्यतन करोड़ों हृदयों में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के पावन अवसर पर उठ रही हिलोरों, जन-जन में उत्साह, पंख फैलाती असीमित आकांक्षाओं से भी महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस आगमन पर अयोध्यावासियों का सहस्र गुणा उत्साह, हर्षोल्लास और भाव विह्वलता शब्दों से परे है।

उपरोक्त वर्णन के पीछे भगवान श्रीराम का आशीर्वाद, उनकी प्रेरणा और शक्ति है, मेरे माध्यम से केवल इसको व्यक्त किया गया है।

(लेखक सेवानिवृत अपर आयकर आयुक्त है।

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