– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया।
पिछली चिट्ठियों में तुमने देखा कि किस तरह शिवाजी के व्यक्तित्व का निर्माण हुआ और कैसे संस्कार उनके एक मार्गदर्शक कोण्डदेवजी के कारण उनमें पड़े। आज मैं आपसे चर्चा करूंगा भारतीय मातृ शक्ति की गौरवशाली प्रतीक माता जिजाबाई की।
एक बालक के जीवन में माँ का क्या महत्व होता है यह तो हम सभी बहुत अच्छी तरह जानते हैं। माता जिजाबाई की जीवन गाथा देखने पर एक बात तो स्पष्ट लगती है कि उन्होंने एक सुदूर लक्ष्य को ध्यान में रखकर बाल शिवा को केवल ममता के पालने में लोरी सुनाकर बढ़ा नहीं किया बल्कि बचपन से उस नन्हें बालक के मन में राष्ट्रप्रेम का उदात्त भाव भरते हुए तलवारों के झन-झन स्वरों के बीच पाला। यही कारण था कि शिवा एक विकट साहसी योद्धा बना और हिन्दू साम्राज्य की स्थापना कर पाया।
यह वही जिजाबाई थीं जिनका अपना बचपन तलवार युद्ध, घुड़सवारी और यहाँ तक कि अखाड़े की लाल मिटटी में मल्लयुद्ध करते बिता था। भला ऐसी वीर प्रसूता माँ अपने लाल को खिलौनों के रूप में तलवारों के अलावा और क्या देती? और यह निश्चय मान कर चलिए कि प्रारम्भ में शिवाजी के लिए प्राणों की बाजी लगाकर साथ देने वाले अधिकांश साथी किसी एक बंधन के कारण बंधे थे तो वह बंधन माता के स्नेह और दुलार का ही बंधन था। और यही एक मुख्य गुण शिवाजी को धरोहर में मिला था जिसके कारण शिवाजी के सभी सहयोगी जो दस, बीस या सौ नहीं हजारों और बाद में तो लाखों की संख्या में हो गए थे शिवाजी को अपना बेटा, भाई और पिता मानकर प्राणपण से उनकी सेवा में जुटे रहे।
बिजली की तरह अपनी भवानी तलवार को चमकाने की कला भी शिवा को उन्हीं जिजाबाई से मिली थी जो स्वयं इस कला में निपुण थीं। तुम जैसी नन्हीं बेटियों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिजाबाई ने बचपन में अर्थात् जब वे एक मासूम गुड़िया थीं अपने भाईयों को युद्धाभ्यास करते हुए देख-देख कर ही चुपचाप इन कलाओं को ग्रहण कर लिया था। पता तो तब चला जब एक दिन चारों भाई रघोजी, अचलोजी, बहादुर और यशवंत लाठी चलाने का अभ्यास कर रहें थे कि नन्हीं जिजा एक लाठी लेकर बीच में आ गई। एक भाई ने परिहास करते हुए कहा तू तो घर में जाकर अपनी गुड़िया का ब्याह रचा, यहां तेरा क्या काम है? नन्हीं जिजा बोली कोई शत्रु अगर मेरी गुड़िया लेने आ जाए तो उसका मुकाबला भी तो मुझे ही करना है और साथ ही चुनौती भी दे डाली चारों एक साथ आ जाओ देखती हूँ किसमें कितना दम है।
फिर चारों भाईयों से जमकर लाठी का मुकाबला हुआ लेकिन चारों भाईयों की एक लाठी भी उसको छू नहीं पाई। पिताजी अचानक आए तो दौड़कर उसे गोद में उठा लिया और पुत्रों को डाँट पिलाई। चारों भाई बोले पिताजी, यह भोली नहीं यह तो रण-रागिणि चण्डिका है। तो बिटिया अब समझ में आया ना तुम्हें क्या बनना है और कैसे?
6 जून 1674 को अपने शिवा का विधिवत् राज्याभिषेक करने के बाद अपना विराट लक्ष्य पूर्णकर 17 जून 1674 को लखूजी जाधवराव की वह वीर बेटी शाहजी की वीर पत्नी और भारत के ह्दय सम्राट शिवाजी की वीर माता जिजाबाई एक प्रेरणा आने वाली पीढ़ीयों के लिए छोड़कर चली गईं।
मातृशक्ति की प्रतीक माता जिजाबाई को शत्-शत् प्रणाम अर्पित करते हुए हम करोड़ों पुत्र-पुत्रियाँ प्रयास करें कि उनके वे सारे स्वप्न पुन: साकार हो सकें जो उनके एक पुत्र शिवाजी ने साकार किए थे यानी हिन्दू साम्राज्य की पुनस्र्थापना।
शेष अगली बार, अगले पत्र में…
तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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