– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया!
पिछली चिट्ठी में आपसे भूमिका के रूप में शिवाजी पर थोड़ी सी चर्चा हुई थी। जैसा कि मैने आपको बताया था कि आगे हम चर्चा करेगे उनके न्याय की लेकिन पहले सैन्य शक्ति की थोड़ी जानकारी। शिवाजी की हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना की लम्बी यात्रा के प्रारम्भ में उनके पास 1200 स्वयं के घुड़सवार सैनिक और 2000 भाड़े के घुड़सवार थे जो अपने शस्त्र लाते थे। जावली विजय के पश्चात् उनके अधीन 7000 घुड़सवार, 3000 भाड़े के घुड़सवार तथा 10,000 पदातिक हो गए थे।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बीजापुर से सेवानिवृत 700 पठान भी शिवाजी कि सेना में शामिल हो गए थे। शिवाजी की मृत्यु के समय तक उनकी सेना में 45,000 घुड़सवार 29 कर्नलों की अधीनता में तथा 1 लाख पदातिक 36 कर्नलों की अधीनता में सेवारत थे। यह तो हुई जानकारी, अब देखो उनके न्याय की एक झांकी।
ये तो आप जानती ही हो कि शिवाजी को न्याय की शिक्षा उन कोण्डदेवजी से मिली थी जो न्याय को स्वयं से भी बड़ा मानते थे। एक बार कोण्डदेवजी ने शाहजी के नाम से एक उद्यान लगवाया। जनता के लिए आदेश प्रसारित करवा दिया गया कि उद्यान के फलों को कोई हाथ न लगाए अन्यथा दण्ड दिया जावेगा। एक दिन एक पका हुआ आम देखकर उनका स्वयं का मन ललचा गया। फल तोड़ तो लिया किन्तु एकदम अपना ही आदेश ध्यान में आ गया। बस तत्काल अपनी तलवार से स्वयं का हाथ काट डालने को आतुर हो उठे। बड़ी मुश्किल से उन्हें रोका गया। अत्यधिक अनुनय-विनय के पश्चात् उन्होंने अपना हाथ तो नहीं काटा किन्तु सजा के तौर पर उन्होंने आजीवन वस्त्रों में एक बांह नहीं बनवाई और न ही उस हाथ का उपयोग किया। निश्चय ही शिष्य भी उतना ही न्याय प्रिय रहा।
नन्हा शिवा रास्ते पर चला जा रहा था कि देखा एक कसाई एक गाय को बांधे हुए घसीटता हुआ लिए जा रहा था। कोण्डदेव का शिष्य और जीजाबाई का वह लाल भला कैसे चुप रह जाता। उसने कसाई को गौमाता को स्वतन्त्र कर देने के लिए ललकारा। लेकिन जब उस पर इस बच्चे की ललकार का कोई असर नहीं हुआ तो बाल शिवा की तलवार चमक उठी। पहले वार में रस्सी कट गई और गौमाता स्वतन्त्र हो गई और दूसरे वार में कसाई की गर्दन कटकर धरती पर लौटने लगी। ऐसा था नन्हे शिवा का न्याय।
तो हम भी प्रयास करें कि शिवा की तरह हम भी साहस का अवलम्बन करें और सिंह से गरजें जग में। तभी और तभी हम कर पाएंगे एक बार फिर हिंदवी साम्राज्य की स्थापना और गौरक्षा जैसे महान कार्य।
तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)
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