– डॉ विकास दवे
प्रिय बिटिया!
चन्द्रशेखर आजाद का नाम तो आपने सुना है न! परन्तु आप यह नहीं जानती होंगी कि आजाद नाम से वे कैसे विख्यात हुए। घटना उस समय की है जब भारत में अंग्रेज राज्य कर रहे थे। बच्चों को पुलिस और थाने के नाम से डराया जाता था। तब यह छोटा सा बालक भारत माता की जय और वन्दे मातरम् बोलने के अपराध में गिरफ्तार हुआ। इसके बाद चला न्याय का नाटक –
अंग्रेजों की अदालत, परतन्त्रता का काल और समय भी ऐसा जब ‘वन्देमातरम्’ और ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ बोलना भी एक अपराध था। एक पन्द्रह वर्ष का बालक अदालत के कटघरे में खड़ा है। जज के प्रश्न और उत्तर उस हृष्ट पुष्ट और नीडर बालक के –
तुम्हारा नाम? आजाद।
पिता का नाम? भारत।
माता का नाम? स्वतन्त्रता।
रहने का स्थान? जेलखाना।
बस अंग्रेज जज को क्रोधित करने के लिए ये उत्तर बहुत थे। तत्काल फैसला सुना दिया इस लड़के की नंगी पीठ पर 15 कोड़े लगाए जाएँ। और कोड़े भी साधारण नहीं पानी में भीगे हुये। हर कोड़े के साथ चमड़ी के साथ माँस भी खिंचा चला आता था। जल्लादों ने जब रस्सी से बालक के हाथ बाँधना चाहे तो बालक चीख कर बोला मेरे हाथ न बांधे जाएं मैं रोऊँगा चिल्लाउँगा नहीं और न ही भागूंगा।
वास्तव में हुआ भी ऐसा ही। सड़ाक-सड़ाक की आवाज के साथ पड़ते हुए कोड़े। रक्त के फव्वारे किन्तु मुँह से चीख या सीसकार नहीं सिर्फ ‘वन्दे मातरम्’। अंग्रेज अधिकारी जान गये इस देश के नौनिहाल किस माटी के बने हैं।
बाद में तो –
जन भावों पर छा गया चन्द्रशेखर था,
नक्षत्र नया आ गया चन्द्रशेखर था,
कायरता को खा गया चन्द्रशेखर था,
आजाद नाम पा गया चन्द्रशेखर था।
आप जानती हो कि आखिरी समय तक वे ‘आजाद’ ही रहे थे। अपने तमाम क्रांतिकारी कारनामों के बाद अंग्रेज सरकार उन्हें पकडऩे के लिये सिर पटकती रही। किन्तु वे उसके हाथ नहीं आये।
धुन के पक्के ऐसे ही होते हैं। बस कुछ करने की ठान लेना जरूरी है इस अवस्था में।
तुम्हारे पापा
(लेखक इंदौर से प्रकाशित ‘देवपुत्र’ सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक पत्रिका के संपादक है।)