अवसर आए द्वार!

✍ दिलीप वसंत बेतकेकर

हम आप सभी भाग्यवान है, कारण हमें अध्ययन का सीखने का अवसर प्राप्त हुआ है। हमारे देश में और दुनिया में भी ऐसे लाखों बच्चे हैं जो अनेक कारणों से परिस्थिति वश विद्यालय की देहरी तक भी नहीं पहुंच पाए हैं। अथवा पहुंच नहीं सकते। अभी अभी समाचार पत्रों द्वारा एक समाचार और एक बच्चे का फोटो देखने को मिला। उस समाचार के अनुसार वह बच्चा पुलिस थाने में ऐसी शिकायत करने गया था कि उसके पिता उसे पढ़ाई करने को मना करते हैं।

अब उस बच्चे की तुलना में हम भाग्यवान नहीं है क्या? रेलवे स्टेशन पर, बस स्टैंड पर, भीख मांगने वाले बच्चे दिखते हैं न? बाज़ार में थैलियां, झंडे, गुब्बारे आदि बेचने वाले बच्चे भी कम नहीं हैं। विद्यालय के सामने से गुजरने वाले ये बच्चे विद्यालय से कितनी दूर हैं न? उनकी तुलना में हम नसीबवान हैं। निश्चित शाला में जाने का अवसर जो मिला। इस अवसर का सही उपयोग करना चाहिए। आज उपलब्ध अवसर का अधिक उपयोग किया गया तो शेष जीवन की अवधि अधिक उपयुक्त, सुविधायुक्त रहेगी। अपने इर्द गिर्द अनेक अवसर होते हैं, परन्तु हम उन्हें परख नहीं पाते।

मुंबई के एक व्यक्ति की लोकल ट्रेन रोज छूट जाती थी। एक दिन उसने निश्चय किया कि उस लोकल ट्रेन को ही नसीहत दी जाए। वह प्रतिदिन की अपेक्षा समय पूर्व स्टेशन पर आ गया। तब तक वह ट्रेन प्लेटफॉर्म पर नहीं आई थी। उस व्यक्ति ने टिकट लिया और प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतजार करते रहा आराम से समय पर ट्रेन आई, रुकी और रवाना हो गए। ये सज्जन अपनी ही धुन में लगन, आराम से, खुशी से बैठे रहे! किसी पहचान के व्यक्ति ने पूछा- अरे, आज तो बड़ी खुशी में दिख रहे हो। क्या बात है?

इस व्यक्ति को अपनी खुशी किसी के साथ तो साझा करनी ही थी! महाशय कहने लगे – “यह जो लोकल ट्रेन अभी रवाना हुई न, वह मुझे रोज छोड़ कर चली जाती थी, आज मैने भी उसे अच्छी नसीहत दी!” “ट्रेन को नसीहत दी? वो कैसे? दोस्त ने पूछा!”

उस पर ये महाशय कहते हैं- देखो, इस ट्रेन से जाने का मैंने टिकट लिया, परंतु उस ट्रेन पर सवार हुआ ही नहीं। रोज वह मुझे छकाती थी, आज मैंने उसे छकाया! अब हम ऐसे भोलेपन, मूर्खता पर हसेंगे, परंतु अनेक बार हम भी इसी प्रकार का व्यवहार करते हैं। रोज अपने सामने से अनेक अवसर… सुवर्ण संधि… निकल जाते हैं; हम उनका कितना उपयोग करते हैं? अनेक बार हम कहते हैं- अरे मेरे से ये अवसर चूक गया, वरना कितना अच्छा अवसर था! कहते हुए दुःख, पश्चाताप व्यक्त करते हैं। वास्तव में हम उस अवसर को उपयोग करने की दिल से इच्छा नहीं रखते थे, इसीलिए वह चूक गया।

Opportunities are never lost; they are taken by others. ऐसा कहते हैं। एक चित्र प्रदर्शनी में एक सुंदर चित्र था- एक व्यक्ति का चेहरा बालों से ढका हुआ और पैरों में पंख लगे थे।

चित्रकार को प्रेक्षक प्रश्न पूछते हुए – क्या है इस चित्र का अर्थ?

चित्रकार का उत्तर था – ये चित्र है अवसर का! फिर अगला प्रश्न पूछा जाता है – चेहरा क्यों ढका हुआ है?

उत्तर मिला- क्योंकि ये अवसर पास आता है तब उसे पहचान नहीं पाते इसीलिए! फिर पैर में पंख किसलिए? अगला प्रश्न होता।

कलाकार का उत्तर होता है – कारण यह ‘अवसर पलभर में ही लुप्त हो जाता है, दूर उड़ जाता है। और मानव से एक बार दूर जाने पर वापिस आना कठिन!

‘अवसर’ का बहुत मार्मिक वर्णन किया गया है- अवसर के सिर पर आगे की ओर बाल होते हैं, पीछे की ओर बाल नहीं होते, केश विहीन!

इसीलिए सामने आए ‘अवसर’ को समझना चाहिए और केश पकड़कर रखना चाहिए। ‘अवसर’ आकर सामने से निकल गया तो बाद में उसे पकड़ नहीं पाएंगे, कारण पीछे की ओर बाल नहीं होते।

यदि हम प्रातः विद्यालय जाना और पढ़ाई कर शाला से घर वापिस आना यही कार्य यंत्रवत करते रहेंगे तो जीवन में उपयोगी ऐसा कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। आस्टिन फेल्प्स के अनुसार – सतर्कता से ‘अवसर’ का इंतजार करना, साहस और कुशलता से उसे प्राप्त करना, शक्ति और दृढ़ता से उसका लाभ उठाकर कार्य को यशस्वी बनाना, यही मानव को सुयश देने वाले गुण हैं, और यही मनुष्य को यशस्वी बनाते हैं, मार्गदर्शक बनते हैं।

कार्डिनल के अनुसार ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं होगा जिसे भाग्योदय के लिए अवसर मिला ही न हो। यदि वह अवसर आगमन के समय निद्रस्थ होगा, संधि-अवसर की उसे सुध-बुध भी न हो, तब अवसर उलटे पांव वापस चला जाता है; और यदि ‘अवसर’ का स्वागत करने तत्पर रहे, उत्साह, प्रसन्नता से उसका इंतजार करे तो यश की राह तुरंत प्राप्त होगी। विद्यालय, महाविद्यालयों में तो हर एक पल अवसर दिखते रहते हैं। आधुनिक काल में तो अवसर असंख्य हैं। भीड़, भय, संकोच, शर्म आदि के कारण अवसर का लाभ उठाने कोई तत्पर नहीं रहता है।

अब पढ़ाई अध्ययन के अवसर प्राप्त हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अनेक अवसर उपलब्ध हैं। ‘अवसर’ दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। ध्यान से, सतर्कता से सुनकर दरवाजा खोलिए।

आगे आए अवसर को तुरंत पकड़िए!!

(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)

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