राष्ट्रीय शिक्षा नीति और नेशनल रिसर्च फाउन्डेशन (एन.आर.एफ.)

 – डॉ० रविन्द्र नाथ तिवारी

भारत भौगोलिक विविधता, जातीय बहुलता, भौतिक वातावरण में भिन्नता, आर्थिक विविधता और विश्व की सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाले देश का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ के प्राचीन शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान और ज्ञान सृजन की एक मजबूत संस्कृति रही है। भारत में आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक अनुसंधान की गति को तीव्रता प्रदान करने के लिए एक मजबूत और उत्तरदायी अनुसंधान परिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता की बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति में की गयी है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत अनुसंधान और नवाचार हेतु नेशनल रिसर्च फाउन्डेशन (एन.आर.एफ.) के गठन का उल्लेख है। एन.आर.एफ. भारतीय शिक्षा परिस्थितिकी तंत्र में अनुसंधान की संस्कृति को बढ़ावा देगा। इस संस्था की सहायता से गुणवत्तायुक्त अनुसंधान को सही मायने में विकसित और अग्रसर किया जा सकेगा। यह स्वतंत्र रूप से सरकार के एक रोटेटिंग बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा शासित होगा जिसमें विभिन्न क्षेत्र के उत्कृष्ट शोधकर्ता तथा आविष्कारक शामिल होंगे। इसका व्यापक लक्ष्य विश्वविद्यालयों में शोध की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा। साथ ही वर्तमान समय में जो एजेंसियां अनुसंधान को फंड प्रदान करतीं है जैसे कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, सीएसआईआर इत्यादि के साथ एनआरएफ समन्वय स्थापित करेगा। यह देखने का प्रयास होगा कि अनुसंधान के क्षेत्र में फंडिंग एजेंसी में दोहराव की प्रवृत्ति नहीं हो। एनआरएफ की प्राथमिक गतिविधियों के अलग-अलग विषयों में प्रतिस्पर्धी और पियर रिव्यू किए गए शोध प्रस्ताव के लिए फंड प्रदान करना होगा।

एनआरएफ का उद्देश्य भारत में समस्त क्षेत्र के शोधकर्ताओं को फंड देना है। अनुसंधान के गैर-विज्ञान विषयों को अपने दायरे में लाने के लिए, एनआरएफ चार प्रमुख विषयों में अनुसंधान परियोजनाओं को फंड देगा – विज्ञान, प्रौद्योगिकी, सामाजिक विज्ञान तथा कला एवं मानविकी। एनआरएफ विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में जहां अनुसंधान प्रारंभिक अवस्था में है ऐसे संस्थानों को परामर्श और सहायता प्रदान करेगा तथा शोधार्थियों और सरकार के संबंधित संस्थाओं तथा उद्योगों के मध्य संपर्क स्थापित कर समन्वय का कार्य करेगा। यह उत्कृष्ट अनुसंधान और उनकी प्रगति का मूल्यांकन करने का कार्य करेगा तथा उत्कृष्ट शोध एवं नवाचार के माध्यम से भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने की दृष्टि में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

वर्तमान समय में भारत में अनुसंधान और नवाचार पर निवेश कुल जीडीपी का 0.64 प्रतिशत है जबकि फ्रांस में 2.25 प्रतिशत, अमेरिका में 2.74 प्रतिशत, चीन में 2.11 प्रतिशत और इजराइल में 4.3 प्रतिशत है। जहां तक शोधकर्ता वैज्ञानिकों का सवाल है भारत में 10 लाख जनसंख्या पर केवल 216 वैज्ञानिक हैं जबकि फ्रांस और अमेरिका में प्रति दस लाख पर 4300 एवं चीन में प्रति दस लाख पर 1200 वैज्ञानिक हैं। आम बजट 2021-22 में पाँच वर्षों हेतु 50,000 करोड़ रुपये की धनराशि एन.आर.एफ. के लिए स्वीकृत की गई है जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति को क्रियान्वित करने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है।

अनुसंधान में बढ़ती भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए, एनआरएफ स्कूलों में छात्र हितों और प्रतिभाओं की पहचान करने, विश्वविद्यालयों में शोध को बढ़ावा देने, स्नातक पाठ्यक्रम में अनुसंधान और इंटर्नशिप को शामिल करने, कैरियर प्रबंधन प्रणालियों पर सुझाव देगा जो अनुसंधान को उचित बढ़ावा दे सके। यह स्नातक कार्यक्रमों की सिफारिश करता है जो विज्ञान और मानविकी में शिक्षण को एकीकृत करता है, तथा देश में शिक्षण और अनुसंधान के पुनः एकीकरण को बढ़ाता है। एनईपी के लक्ष्य भव्य हैं और इसे प्राप्त करने के लिए सभी स्तरों पर समर्पण भाव से कार्य करना होगा।

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भारत में शोध की अपार संभावनाएं हैं तथा बहुत से क्षेत्र आज भी लोगों की पहुंच से दूर हैं साथ ही फंड की कमी के कारण भी वैज्ञानिक इन क्षेत्रों में शोध करने से बचते हैं। आज भारत में अनेक समस्याएं हैं जिनका समाधान शोध के माध्यम से ही संभव है। वर्तमान में भारत के बड़े शहर पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहे हैं। चाहे वह शुद्ध हवा हो, या गंभीर होता जल संकट। इन क्षेत्रों में शोध को प्रोत्साहन से न केवल समस्याएं दूर होंगी बल्कि आने वाली पीढ़ी के बेहतर भविष्य के लिए एक रूपरेखा बनकर तैयार रहेगी। भारत में आज भी ऐसे खनिज क्षेत्र हैं जो अन्वेषित नहीं हुए हैं। भारत के खनिज भंडारों की पूर्ण क्षमता की जानकारी के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है जिससे कि भारत को महत्वपूर्ण खनिजों के लिए बाहरी देशों में निर्भरता कम की जा सके। खनिज क्षेत्रों पर शोध संभावनाओं में रणनीतिक रूप से दुर्लभ खनिज की संभावना का पता लगाना/खोज तथा खनिज खोज तथा भूमि और गहरे सागर में नये खनिज संसाधनों का पता लगाने के लिये नई प्रौद्योगिकी का विकास शामिल है।

पिछले कुछ दशकों में बायोटेक्नोलॉजी (जैवप्रौद्योगिकी) अनुसंधान के द्वारा भारत ने कृषि, उद्योग, पर्यावरण, औषधि निर्माण और चिकित्सा आदि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। इन क्षेत्रों में उपलब्धता और परिष्कृत तकनीकियों के द्वारा ही आज भारत शिक्षा और शोध कार्यों के द्वारा महत्वपूर्ण उत्पादों, मानव संसाधन विकास एवं आर्थिक निर्माण के योगदान में जैवप्रौद्योगिकी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अतः यह आवश्यक हो गया है कि चिकित्सा, जीवविज्ञान, यांत्रिकी (इंजीनियरी) तथा अन्य क्षेत्रों में जैवप्रौद्योगिकी के वृहद दृष्टिकोण को समझा जाय। स्टेम सेल अनुसंधान, नैनोटेक्नोलॉजी, जैवसूचना प्रणाली (बायोइंफार्मेटिक्स), जैवकीटनाशी, जैविक खाद्य, प्रोबायोटिक, बायोफ्यूल आदि अनेक विषयों पर उत्कृष्ट शोध एवं नवाचार की आवश्यकता है। सरकार द्वारा कैंसर के क्षेत्र में नई तकनीकियों के इस्तेमाल से होने वाले अनुसंधानों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कुछ प्रमुख बीमारियों के डाटाबेस तैयार किए जा रहे हैं जिससे कि उनको और अच्छी तरह से समझा जा सके। कई अन्य बीमारियों और जीन चिकित्सा अनुसंधान तथा जैवनीति के लिए मार्गदर्शन तैयार किए गए हैं। सामाजिक विज्ञान में अनुसंधान के क्षेत्र असीमित हैं और अनुसंधान की सामग्री तथा सामाजिक घटना के हर समूह तथा मानव जीवन के हर चरण का सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक है।

प्रत्येक अनुसंधान का उद्देश्य भारतीय सनातन संस्कृति के मूल तत्व – सर्वे भवन्तु सुखिनः एवं मानवता के  कल्याण के लिए होना चाहिए। सामाजिक विज्ञान अनुसंधान का लक्ष्य सभी को बेहतर जीवन प्रदान करना होना चाहिए। सतत विकास की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए हमें उन लोगों तक पहुंचना चाहिए जहां सहायता प्रदान करने के लिए कोई नहीं पहुंचा है और हमें उन लोगों को धन उपलब्ध कराना चाहिए जिन्हें किसी एजेंसी से आर्थिक मदद नहीं मिली है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना, स्वास्थ्य, गरीबी मिटाना, शहरी-ग्रामीण अंतर को समाप्त करना और कृषि की चुनौतियों जैसे क्षेत्रों में नवाचार और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। प्रत्येक क्षेत्र के विभिन्न विषयों में शोध के क्षेत्र को पहचानकर गहन अनुसंधान किया जाना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले युवाओं की पहचान कर उन्हें शोध हेतु प्रोत्साहित करना आवश्यक है। इसके साथ-साथ प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं को पहचानकर उनके वैज्ञानिक हल ढूढ़ने हेतु प्रयास करना चाहिए।

(लेखक शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.) में भू-विज्ञान विभागाध्यक्ष है।)

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