– डॉ० रवीन्द्र नाथ तिवारी
शिक्षा पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त कर, समाज और राष्ट्र को विकास के पथ पर अग्रसर एवं निरंतर बढ़ने हेतु मूलभूत आवश्यकता है। साक्षरता और बुनियादी शिक्षा वैयक्तिक, नागरिक, आर्थिक और जीवनपर्यन्त शिक्षा के अवसरों का मार्ग प्रशस्त कर व्यक्ति के समग्र विकास को आलोकित करती है। निरक्षरता देश के विकास में विपरीत प्रभाव डालती है। यद्यपि भारत सरकार द्वारा निरक्षरता को समाप्त करने हेतु अथक एवं प्रशंसनीय कार्य किये गये हैं तथापि भारत उन विकासशील देशों की श्रेणी में है, जहाँ पर यह समस्या अभी भी विद्यमान है। प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य उन प्रौढ़ व्यक्तियों को शैक्षिक विकल्प देना है जिन्होंने यह अवसर गंवा दिया है और औपचारिक शिक्षा आयु को पार कर चुके हैं, लेकिन अब वे साक्षरता, आधारभूत शिक्षा, कौशल विकास (व्यावसायिक शिक्षा) और इसी तरह की अन्य शिक्षा सहित किसी तरह के ज्ञान की आवश्यकता का अनुभव करते हैं।
भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आधारभूत शिक्षा केन्द्र (एनएफईसी) ने प्रौढ़़ शिक्षा की संकल्पना की थी, तत्पश्चात् भारत सरकार द्वारा 1956 में प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय की स्थापना की गयी। 1961 में यह प्रौढ़ शिक्षा विभाग के रूप में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) के अन्तर्गत राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान का भाग बना। इसके अन्तर्गत आयोजित कार्यक्रमों एवं सफलता में उत्तरोत्तर वृद्धि के परिणमस्वरूप 1971 में यह स्वतंत्र विभाग के रूप में स्थापित हुआ। वर्तमान में यह स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार के अधीन विभिन्न योजनाओं का संचालित कर रहा है। प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से समय-समय पर सरकार द्वारा कई कार्यक्रम शुरू किए गए, जिनमें राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (एनएलएम) प्रमुख है, जिसे समयबद्ध तरीके से 15-35 वर्ष की आयु समूह में अशिक्षितों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए 1988 में शुरू किया गया था। 10वीं योजना अवधि के अंत तक एनएलएम ने 127.45 मिलियन व्यक्तियों को साक्षर किया जिनमें से 60 प्रतिशत महिलाएं थीं, 23 प्रतिशत अनुसूचित जाति (अ.जा.) और 12 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (अ.जजा.) से संबंधित थे। समग्र साक्षरता अभियान के अंतर्गत 597 जिलों को शामिल किया गया था, जिसमें 502 साक्षरता पश्चात चरण और 328 सतत शिक्षा चरण में पहुंच गए। 2011 की जनगणना से यह स्पष्ट होता है कि भारत ने साक्षरता में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत की साक्षरता दर 72.98 प्रतिशत है तथा पिछले दशक की समग्र साक्षरता दर में 8.14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है एवं निरक्षरों की संख्या (07वर्ष से अधिक आयु के समूह) में 304.10 मिलियन से घटकर 2011 में 282.70 मिलियन हो गई।
समाज में अशिक्षित होने से असंख्य नुकसान हैं साथ ही साक्षरता दर देश की जीडीपी को भी प्रभावित करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में लेख है कि प्रौढ़ शिक्षा के लिए सुदृढ़ एवं नवाचारी सरकारी पहलों, खासकर समुदाय की भागीदारी को सुगम बनाना तथा प्रौद्योगिकी के सुचारू और लाभकारी एकीकरण को जल्द से जल्द लागू किया जाएगा ताकि 100 प्रतिशत साक्षरता के महत्वपूर्ण उद्देश्य की प्राप्ति शीघ्र की जा सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत एनसीईआरटी के एक नए और सु-समर्थित घटक संगठन द्वारा एक उत्कृष्ट प्रौढ़ शिक्षण पाठ्यचर्या ढांचा विकसित किया जाएगा जो प्रौढ़ शिक्षा के लिए समर्थित होगा। पाठ्यचर्यात्मक ढाँचे में पांच प्रकार के कार्यक्रम शामिल होंगे जिनमें से प्रत्येक के परिणाम स्पष्ट रूप से परिभाषित किये जाएंगे –
(1) बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान
(2) महत्वपूर्ण जीवन कौशल (वित्तीय साक्षारता, डिजिटल साक्षरता, व्यावसायिक कौशल, स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता, शिशु पालन एवं शिक्षा और परिवार कल्याण आदि)
(3) व्यावसायिक कौशल विकास (स्थानीय रोजगार प्राप्ति हेतु)
(4) बुनियादी शिक्षा (प्रारंभिक, माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर के समकक्ष)
(5) सतत शिक्षा (कला, विज्ञान तकनीकी, संस्कृति, खेल, मनोरंजन आदि)।
प्रौढ़ों को प्रौढ़ शिक्षा और आजीवन शिक्षा प्राप्त करने हेतु बुनियादी ढाँचा सुनिश्चित किया जायेगा। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल स्कूल के घंटों के बाद और सप्ताहांत पर स्कूल/स्कूल परिसरों, सार्वजनिक पुस्ताकलयों को प्रौढ़़ शिक्षा कार्यक्रमों के लिए उपयोग में लाया जायेगा। उच्चतर शिक्षण संस्थानों, व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों आदि जैसे अन्य सार्वजनिक संस्थानों के अन्तर्गत प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों को भी शामिल किया जा सकता है। प्रौढ़ शिक्षा पाठ्यक्रम ढांचे में वर्णित समस्त पांच प्रकार की प्रौढ़ शिक्षा के लिए परिपक्व शिक्षार्थियों को पाठ्यक्रम की रूपरेखा प्रदान करने के लिए प्रशिक्षकों/शिक्षकों/प्रेरकों की आवश्यकता होगी। प्रशिक्षकों को प्रौढ़ शिक्षण गतिविधियों को व्यवस्थित और नेतृत्व करने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरीय संसाधन सहायता संस्थानों द्वारा प्रशिक्षित किया जाएगा। राष्ट्र के लिए की गयी इस महत्वपूर्ण सेवा के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जायेगा। राज्य, साक्षरता और प्रौढ़ शिक्षा की दिशा में प्रयास को प्रोत्साहित करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों और अन्य सामुदायिक संगठनों के साथ भी काम करेंगे। विज्ञापनों, घोषणाओं और गैर सरकारी संगठनों, अन्य स्थानीय संगठनों की गतिविधियों के माध्यम से भी प्रौढ़ शिक्षा के अवसरों का व्यापक प्रचार किया जायेगा।
समुदाय एवं शिक्षण संस्थानों में पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए पुस्तकों तक पहुँच और उपलब्धता बेहतर करना आवश्यक है। सभी समुदाय एवं शिक्षण संस्थान विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय ऐसी पुस्तकों की समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करेंगे जो कि सभी शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं और रुचियों को पूरा करते हों। केन्द्र एवं राज्य सरकारें ये सुनिश्चित करेंगी कि पूरे देश में शिक्षार्थियों को पुस्तकें मिल सकें तथा उनका मूल्य इस प्रकार हो कि वे आसानी से क्रय कर सकें। पुस्तकों की आनलाइन उपलब्धता बेहतर बनाने एवं डिजिटल पुस्तकालय को अधिक व्यापक बनाने हेतु कदम उठाये जायेंगे। भारतीय भाषाओं में पठन-पाठन सामग्री उपलब्ध कराना, बाल-पुस्तकालय एवं चल-पुस्तकालय खोलना, पूरे भारत में और विषयों पर सामाजिक पुस्तक क्लबों की स्थापना एवं शिक्षण संस्थानों और पुस्तकालयों में आपसी सहयोग बढ़ाना भी सरकार के प्रमुख उद्देश्य होंगे।
आज दूरदर्शन का नेटवर्क लगभग सम्पूर्ण भारत में कार्य कर रहा है। इस प्रभावी जनसंचार माध्यम का उपयोग प्रौढ़ शिक्षा के लिए किया जाएगा। मेमोरी कार्ड या पेन ड्राइव द्वारा भी विशिष्ट कार्यक्रम तैयार कर दिखाए जा सकते हैं। सरकारी और परोपकारी पहलों के साथ क्राउडसोर्सिंग और प्रतियोगिताओं के माध्यम से प्रौढ़ शिक्षा के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रौद्योगिकी आधारित विकल्प, जैसे ऐप, ऑनलाइन कोर्स/मॉड्यूल, उपग्रह- आधारित टीवी चैनल, ऑनलाइन किताबें, और आईसीटी से सुसज्जित पुस्तकालय और प्रौढ़ शिक्षा केंद्र आदि विकसित किए जाएंगे।
भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए यह आवश्यक है कि यहाँ शिक्षित व्यक्तियों को प्रौढ़ शिक्षा में सक्रिय योगदान करना चाहिए। निरक्षर को प्रौढ़़ शिक्षा केन्द्रों तक लाना और उन्हें अक्षर ज्ञान कराना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसे एक जन-आन्दोलन का रूप देना होगा। इंडियन एडल्ट एजुकेशन एसोसिएशन द्वारा 1939 से देश में वयस्क, गैर-औपचारिक और आजीवन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए निरन्तर प्रयास किया जा रहा है। इस पुनीत कार्य में समाज के सभी वर्गों के शिक्षित व्यक्तियों की भागीदारी अपेक्षित है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि यदि गरीब शिक्षा के लिए नहीं आ सकते हैं तो शिक्षा को किसान, कारखाने आदि जैसे प्रत्येक स्थानों पर पहुँचना चाहिए।
डिजिटल इंडिया अभियान से देश के सामाजिक, शैक्षिक तथा आर्थिक क्षेत्र में क्रांन्तिकारी परिवर्तन आ रहे हैं। हाल ही में भारत सरकार द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारत’ शुरू किया गया है। कोविड-19 के पश्चात् बदलते वैश्विक परिदृश्य में विश्व के कई देश भारत के विभिन्न क्षेत्र में आर्थिक निवेश करने को उत्सुक हैं। यह निश्चित रूप से भारत के चहुँमुखी विकास के लिए शुभ संकेत है। देश के सर्वांगीण विकास में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सभी को साक्षरता, शिक्षा एवं तकनीकी की अद्यतन जानकारी आवश्यक है। इस दिशा में सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर सभी को अपने स्तर पर योगदान देना होगा तभी भारत विकसित राष्ट्र बनकर आत्मनिर्भर भारत के रूप में विश्व का मार्गदर्शन करने में सफल होगा।
(लेखक शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.) में भू-विज्ञान विभागाध्यक्ष है।)
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