राष्ट्रीय शिक्षा नीति: माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा

 – प्रो. रविन्द्र नाथ तिवारी

भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में आधुनिक भारत के प्रणेता, चिन्तक, दार्शनिक स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय, भीमराव अम्बेडकर, राधाकृष्णन, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम इत्यादि के विचार एवं प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परंपरा को समाहित करने का प्रयास किया गया है। इसमें उल्लेख है कि शिक्षा से चरित्र निर्माण होना चाहिए, शिक्षार्थियों में नैतिकता, तार्किकता, करुणा और संवेदनशीलता विकसित करनी चाहिए, साथ ही साथ रोजगार के लिए सक्षम बनाना चाहिए।

स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जिसमें चरित्र निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढ़े, बुद्धि विकसित हो और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे। रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार सोचने की शक्ति और कल्पना शक्ति दो ऐसी अत्यन्त महत्वपूर्ण मानसिक शक्तियाँ हैं जिसमें मनुष्य की क्षमताएं लगातार बढ़ती रहनी चाहिए। बचपन से ही विचार तथा कल्पना की शक्ति को प्रस्फुटित करने का प्रयास अनिवार्य रूप से होना चाहिए। जैसे ही इन पर ध्यान देना प्रारंभ होगा तो जिज्ञासा और सर्जनात्मकता स्वतः उभरेंगे।

जहाँ तक माध्यमिक शिक्षा की बात है विद्यार्थी प्राथमिक शिक्षा से बुनियाद को मजबूत करने के उपरांत अपने भविष्य को गढ़ने के लिए माध्यमिक शिक्षा की ओर अग्रसर होता है, फिर उच्चतर कक्षाओं में अपने मनपसंद विषय को चुनकर आगे बढ़ता है। वर्तमान में प्रचलित शिक्षा व्यवस्था में यह द्रष्टव्य है कि प्राथमिक शिक्षा से आगे की कक्षाओं में बच्चों का नामांकन घटा है। कक्षा छठी से आठवीं का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 90.9 प्रतिशत है, जबकि कक्षा, 9-10 और 11-12 के लिए यह क्रमशः 79.3 प्रतिशत और 56.5 प्रतिशत है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि किस प्रकार शिक्षा के प्रारम्भिक चरणों से ही छात्र विद्यालय छोड़ते चले जाते हैं और जो आगे के क्रम में बढ़ता ही जाता है। वर्ष 2017-18 में एनएसएसओ के 75वें राउंड हाऊसहोल्ड सर्वे के अनुसार, 6 से 17 वर्ष के बीच की उम्र के विद्यालय नहीं जाने वाले बच्चों की संख्या 3.22 करोड़ है। इसका प्रमुख कारण शिक्षा व्यवस्था की जटिलता, शिक्षा का रोजगारपरक न होना और बच्चों के परिजनों में आगे की पढ़ाई को लेकर अरुचि और कुछ इलाकों में शिक्षा की पहुंच नहीं होना हैं। वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में सरकार का लक्ष्य है कि वह इस ड्रॉपआउट अनुपात को कम करे तथा 2030 तक प्राथमिक स्तर से माध्यमिक स्तर पर छात्रों का नामांकन 100 प्रतिशत हो सके।

इस हेतु सरकार द्वारा पहल की जाएंगी- पहला अवसंरचनात्मक ढांचे का निर्माण करना ताकि सभी बच्चों तक शिक्षा की पहुंच हो और प्रवासी मजदूरों के बच्चों के लिए भी इसकी पहुंच सुनिश्चित की जाएगी। विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षकों की नियुक्ति सुनिश्चित की जाएगी और विद्यालय में समस्त सुविधाएं उपलब्ध होंगी ताकि बच्चे स्कूली शिक्षा को आगे बढ़ा सके। दूसरा छात्रों की ट्रैकिंग की जाएगी कि उनका शैक्षिक स्तर कहां तक पहुंचा, साथ ही ये भी लगातार निगरानी में रखा जाएगा कि छात्र नियमित विद्यालय आ रहे हैं तथा विद्यालयीन क्रियाकलापों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी।

सभी विद्यार्थियों को सीखने में मदद के लिए विद्यालय की पहुंच को व्यापक बनाने का लक्ष्य भी सरकार ने निर्धारित किया है। इसके लिए औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार की शिक्षा का संयोजन किया जाएगा ताकि छात्र नियमित विषयों के अध्ययन के साथ ही सामाजिक और आर्थिक महत्व के विषयों को भी जान सकें। इस नीति में सबसे बड़ा बदलाव माध्यमिक स्तर से ही बच्चों को व्यावसायिक शिक्षा का ज्ञान देना है। बच्चों के कौशल विकास पर जोर दिया जाएगा तथा स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप की व्यवस्था की जाएगी ताकि वह प्रायोगिक माध्यमों से समझ बढ़ा सके एवं भविष्य में अपने लिए रोजगार पा सकें।

माध्यमिक स्तर में तीन वर्ष की शिक्षा होगी और इसमें विषय विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा विषय की मूल अवधारणाओं की जानकारी दी जाएगी जिसके लिए विद्यार्थियों की पर्याप्त तैयारी हो चुकी होगी। यह कार्य विज्ञान, गणित, कला, खेल, सामाजिक विज्ञान, मानविकी और व्यावसायिक विषयों में होंगे। प्रत्येक विषय में अनुभव आधारित शिक्षण और विषय-विशेषज्ञों के आ जाने के पश्चात विषयों के बीच परस्पर सम्बन्ध को प्रोत्साहित किया जायेगा। सेकण्डरी स्टेज में चार साल के बहु-विषयक अध्ययन शामिल होंगे, जो अधिक गहराई, अधिक आलोचनात्मक सोच, जीवन आकांक्षाओं पर अधिक ध्यान और विद्यार्थियों द्वारा विषयों के चुनाव को लेकर अधिक लचीलेपन के साथ होंगे। विशेष रूप से, ग्रेड 10 के बाद व्यावसायिक या किसी विशेषज्ञता प्राप्त स्कूल में ग्रेड 11-12 में अन्य कोर्स के चुनाव के विकल्प लगातार विद्यार्थियों के लिए बने रहेंगे।

इन कक्षाओं में भाषा/मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। इसमें विद्यार्थियों के भाषा संबंधी ज्ञान का परीक्षण किया जाएगा साथ ही उनके भौगोलिक, अन्य भाषा तथा आदिवासी भाषा से उनका परिचय कराया जाएगा। इस माध्यम से विद्यार्थियों के मन में भाषा/मातृभाषा के प्रति न केवल जागरूकता बढ़ेगी बल्कि उनमें इनके संरक्षण और बढ़ावा देने की भावना प्रबल होगी। 10वीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव किए जाएंगे तथा बोर्ड परीक्षाओं के महत्व को कम किया जाएगा। जैसे-साल में दो बार परीक्षाएं कराना, दो हिस्सों वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) और व्याख्यात्मक श्रेणियों में इन्हें विभाजित करना आदि। बोर्ड परीक्षा में मुख्य जोर ज्ञान के परीक्षण पर होगा ताकि छात्रों में रटने की प्रवृत्ति समाप्त हो। बोर्ड परीक्षाओं को लेकर छात्र हमेशा दबाव में रहते हैं और ज्यादा अंक लाने के चक्कर में कोचिंग पर निर्भर हो जाते हैं। लेकिन भविष्य में उन्हें इससे मुक्ति मिल सकती है। शिक्षा नीति में कहा गया है कि विभिन्न बोर्ड आने वाले समय में बोर्ड परीक्षाओं के प्रैक्टिकल मॉडल को तैयार करेंगे।

आधुनिक भारत तथा उसकी सफलताओं और चुनौतियों के प्रति प्राचीन भारत का ज्ञान और उसका योगदान सम्मिलित होगा तथा शिक्षा स्वास्थ्य, पर्यावरण आदि के संबंध में भारत की भविष्य की आकांक्षाओं की स्पष्ट भावना विकसित होगी। इन तत्वों को पूरे स्कूल पाठ्यक्रम में जहाँ भी प्रासंगिक हो वैज्ञानिक तरीके से शामिल किया जाएगा। विशेष रूप से भारतीय ज्ञान प्रणाली को वनवासी ज्ञान एवं सीखने के स्वदेशी और पारंपरिक तकनीकों के साथ-ही साथ नवाचारी ज्ञान को भी शामिल किया जाएगा। गणित, खगोल विज्ञान, दर्शन, योग, वास्तुकला, चिकित्सा, कृषि, इंजीनियरिंग, भाषा विज्ञान, साहित्य, खेल के साथ-साथ शासन राजव्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण, जल प्रबन्धन आदि विषयों को भी शामिल किया जाएगा।

यद्यपि विद्यार्थियों को अपने व्यक्तिगत पाठ्यक्रम को चुनने में पर्याप्त लचीले विकल्प मिलने चाहिए तद्नुसार आज की तेजी से बदलती दुनिया में सभी विद्यार्थियों को एक अच्छे, सफल, अभिनव, अनुकूलनीय और उत्पादक व्यक्ति बनने के लिए कुछ विषयों, कौशलों और क्षमताओं को सीखना भी आवश्यक है। स्वभाव और साक्ष्य आधारित सोच, सृजनात्मकता और नवीनता, सौंदर्यशास्त्र और कला की भावनाओं का भी समावेश है। मौखिक और लिखित अभिव्यक्ति की ओर रचनात्मक संवाद, स्वास्थ्य और पोषण, शारीरिक शिक्षा, फिटनेस, स्वास्थ्य और खेल को सम्मिलित किया गया है। तार्किक चिंतन, व्यावसायिक  एक्सपोजर और कौशल, डिजिटल साक्षरता, कोडिंग और कम्प्यूटेशनल ज्ञान, नैतिकता और नैतिक तर्क, मानव और संवैधानिक मूल्यों आदि का ज्ञान और अभ्यास, लिंग संवेदनशीलता, मौलिक कर्तव्य, नागरिकता कौशल और मूल्य, भारत का ज्ञान आदि को भी सम्मिलित किया गया है। आधुनिक खेलों के साथ-साथ योग और भारतीय पारंपरिक खेलों को भी पाठ्येतर गतिविधि से पूर्णतः पाठ्यक्रम में शामिल कर अनिवार्य किया गया है ताकि समस्त छात्र इससे लाभान्वित हो सकें। यह एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

आने वाले दशक में विश्व की सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश भारतवर्ष होगा। इन युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से संभव हो सकेगा। वैश्विक परिदृश्य में तेजी से हो रहे परिवर्तन के कारण यह आवश्यक है कि विद्यार्थी सतत सीखते रहने की कला सीखें। शिक्षा में समस्या समाधान, तार्किंक एवं रचनात्मक दृष्टिकोण को समावेशित करना आवश्यक है। शिक्षण प्रक्रिया विद्यार्थी केन्द्रित होने के साथ-साथ रुचिपूर्ण, खोज आधारित, अनुभव एवं संवाद आधारित, लचीली एवं समन्वित रूप से देखने-समझने में सक्षम बनाने वाली है। भारत द्वारा सतत् विकास एजेण्डा (एस.डी.जी.) 2030 के लक्ष्य-4 के अनुसार विश्व में 2030 तक सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन पर्यंत शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिये जाने का लक्ष्य है। वास्तव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षक की होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षण के क्षेत्र में प्रतिभाशाली लोग आयें। इस हेतु सम्मान, मान, मर्यादा, स्वायतता सुनिश्चित करनी होगी। यद्यपि वर्तमान में चली रही व्यवस्था में शिक्षण क्षेत्र में प्रतिभाशाली लोगों के आने का प्रतिशत क्रमशः घटा है जो कि देश के समग्र विकास के लिए चिंतनीय है। इस दिशा में सरकारों को भगीरथ प्रयास करना ही होगा।

विद्यार्थी, शिक्षक और समाज के अन्य सभी वर्गों की महती भूमिका राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में अपेक्षित है, तभी राष्ट्रीय शिक्षा के दृष्टिकोण को सम्पूर्णता से लागू करने में सफल हो पायेंगे। राष्ट्र के पुनरुत्थान में सभी वर्गों की भूमिका आने वाले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण होगी। आशा है कि भारतवर्ष को विश्व गुरु के पद पर पुनः प्रतिष्ठित करने में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सफल होगी।

(लेखक शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.) में भू-विज्ञान विभागाध्यक्ष है।)

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