– प्रोफेसर रवीन्द्र नाथ तिवारी
भारतीय वाङ्गमय में कला और भाषा का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है तथा ये एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। किसी भी कला की अभिव्यक्ति का सीधा सम्बन्ध भाषा से होता है। पुरातत्वकालीन कलाकृतियों में भी तत्समय की भाषा ही अभिव्यक्ति का साधन थी, चाहे वह अरबी, फारसी या कोई भी भारोपीय परिवार की भाषा रही हो। भारतीय संस्कृति ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के चिन्तन पर आधारित होकर समाज का मार्गदर्शन करते हुए भारत को वास्तव में ‘अतुल्य और अनुपम भारत’ बनाती है।
भारत, संस्कृति का समृद्ध भण्डार है तथा यहाँ की कला, साहित्यिक कृतियों, प्रथाओं, परम्पराओं, भाषाई अभिव्यक्तियों, कलाकृतियों, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक त्योंहरों के स्थलों इत्यादि में यह परिलक्षित होता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में लेख है कि भारत की इस सांस्कृतिक संपदा का संरक्षण, संवर्धन एवं प्रसार, देश की उच्चतम प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकि यह देश की पहचान के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है। संस्कृति का प्रसार करने का सबसे प्रमुख माध्यम कला है। कला-सांस्कृतिक पहचान, जागरूकता को समृद्ध करने और समुदायों को उन्नत करने के अतिरिक्त, व्यक्तियों में संज्ञानात्मक और सृजनात्मक क्षमताओं का संवर्धन तथा व्यक्तिगत प्रसन्नता को बढ़ाने के लिए जानी जाती है। व्यक्तियों की प्रसन्नता/कल्याण, संज्ञानात्मक विकास और सांस्कृतिक पहचान वह महत्वपूर्ण कारण हैं जिसके लिए सभी प्रकार की भारतीय कलाएं, प्रारंभिक बाल्यावस्था, देखभाल व शिक्षा से आरम्भ करते हुए शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रों को प्रदान की जानी चाहिए।
भाषा, निःसंदेह, कला एवं संस्कृति से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। विभिन्न भाषाएं, दुनिया को भिन्न तरीके से देखती हैं इसलिए मूल रूप से किसी भाषा को बोलने वाला व्यक्ति अपने अनुभवों को कैसे समझता है या उसे किस प्रकार ग्रहण करता है यह उस भाषा की संरचना से तय होता है। संस्कृति हमारी भाषाओं में समाहित है। साहित्य, नाटक, संगीत, फिल्म आदि के रूप में कला की पूरी तरह वर्णन करना, बिना भाषा के संभव नहीं है। संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए हमें उस संस्कृति की भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन करना होगा। भाषाओं को अधिक व्यापक रूप में बातचीत और शिक्षण अधिगम के लिये प्रयोग में लिया जाना चाहिए। भारतीय भाषाओं, तुलनात्मक साहित्य, सृजनात्मक लेखन, कला, संगीत, दर्शनशास्त्र आदि के सशक्त विभागों एवं कार्यक्रमों को देश भर में शुरू किया जाएगा और उन्हें विकसित किया जाएगा, साथ ही इन विषयों में दोहरी डिग्री चार वर्षीय बी.एड. सहित डिग्री कोर्स विकसित किए जाएंगे। ये विभाग एवं कार्यक्रम, विशेष रूप से उच्चतर योग्यता के भाषा शिक्षकों के एक बडे़ कैडर को विकसित करने में मदद करेगा, साथ ही साथ कला, संगीत, दर्शनशास्त्र एवं लेखन के शिक्षकों को भी तैयार करेगा जिनकी देश भर में इस नीति को क्रियान्वित करने हेतु तुरंत आवश्यकता होगी। नेशनल रिसर्च फाउण्डेशन (एनआरएफ) इन क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान हेतु वित्त उपलब्ध करायेगा।
स्थानीय संगीत, कला, भाषाओं एवं हस्तशिल्प को प्रोत्साहित करने के लिए तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि छात्र जहाँ अध्ययन कर रहे हों वे वहां की संस्कृति एवं स्थानीय ज्ञान को जान सकें, उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों एवं हस्तशिल्प में कुशल व्यक्तियों को शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाएगा। प्रत्येक उच्चतर शिक्षण संस्थान, प्रत्येक स्कूल और स्कूल कॉम्प्लेक्स यह प्रयास करेगा कि कलाकार वहीं निवास करें जिससे कि छात्र कला, सृजनात्मकता तथा क्षेत्र/देश की समृद्धि को बेहतर रूप से जान सकें।
उच्चतर शिक्षण संस्थानों तथा उच्चतर शिक्षा के अधिकतर कार्यक्रमों में मातृभाषा/स्थानीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में उपयोग किया जाएगा और कार्यक्रमों को द्विभाषित रूप में चलाया जाएगा ताकि पहुँच और सकल नामांकन अनुपात दोनों में बढ़ोत्तरी हो सके। मातृभाषा/स्थानीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रयोग करने और/या कार्यक्रमों को द्विभाषित रूप में संचालित करने के लिए निजी प्रशिक्षण संस्थानों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। यह नीति इस बात को स्वीकारती है कि शिक्षार्थियों को भारत की समृद्ध विविधता का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होना चाहिए। ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के तहत इस दिशा में देश के 100 पर्यटन स्थलों की पहचान की जाएगी, जहाँ शिक्षण संस्थान छात्रों को इन क्षेत्रों के बारे में ज्ञानवर्धन करने के लिए स्थलों और उनके इतिहास, वैज्ञानिक योगदान, परंपराओं, स्वदेशी साहित्य और ज्ञान आदि का अध्ययन करने के लिए भेजेंगे।
भारत शीघ्र ही अनुवाद एवं विवेचना से संबंधित अपने प्रयासों का विस्तार करेगा जिससे सर्वसाधारण को विभिन्न भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में उच्चतर गुणवत्ता युक्त अधिगम सामग्री और अन्य महत्वपूर्ण लिखित एवं मौखिक सामग्री उपलब्ध हो सके। इस हेतु इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन एण्ड इंटरप्रिटेशन (आईआईटीआई) की स्थापना की जायेगी। आईआईटीआई अपने अनुवाद और व्याख्या करने के प्रयासों को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग करेगा। संस्कृत भाषा के वृहद् एवं महत्वपूर्ण योगदान तथा विभिन्न विधाओं एवं विषयों के सहित्यिक संस्कृतिक महत्व, वैज्ञानिक प्रकृति के कारण, संस्कृत को केवल संस्कृत पाठशालाओं एवं विश्वविद्यालयों तक सीमित नहीं रखते हुए इसे मुख्य धारा में लाया जाएगा। संस्कृत विश्वविद्यालय भी उच्चतर शिक्षा के बड़े बहुविषयी संस्थान बनने की दिशा में अग्रसर होंगे। संस्कृत विभाग जो संस्कृत एवं संस्कृत ज्ञान व्यवस्था के शिक्षण एवं उत्कृष्ट अंतरविषयी अनुसंधान का संचालन करते हैं, उन्हें सम्पूर्ण नवीन बहु-विषयी उच्चतर शिक्षा व्यवस्था के भीतर स्थापित/मजबूत किया जाएगा। शिक्षा एवं संस्कृत विषयों में चार वर्षीय बहु-विषयक बी.एड. डिग्री के द्वारा मिशन मोड में पूरे देश के संस्कृत शिक्षकों को बड़ी संख्या मे व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जायेगी।
भारत इसी तरह सभी शास्त्रीय भाषाओं और साहित्य का अध्ययन करने वाले अपने संस्थानों और विश्वविद्यालयों का विस्तार करेगा, और उन हजारों पांडुलिपियों को इकट्ठा करने, संरक्षित करने, अनुवाद करने और उनका अध्ययन करने हेतु प्रयास करेगा, जिन पर अभी तक ध्यान नहीं गया है। इसी प्रकार से सभी संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों, जिनमें शास्त्रीय भाषाओं एवं साहित्य पढ़ाया जा रहा है, उनका विस्तार किया जाएगा। शास्त्रीय भाषा के संस्थान अपनी स्वायत्तता को बरकरार रखते हुए विश्वविद्यालयों के साथ संबद्ध होने या उनमें विलय का प्रयास करेंगे ताकि सुदृढ़ एवं गहन बहुविषयी कार्यक्रम के हिस्से के तौर पर संकाय काम कर सकें तथा छात्र प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें।
समान उद्देश्य प्राप्त करने के लिए, भाषाओं को समर्पित विश्वविद्यालय भी बहुविषयी बनेंगे, जहाँ प्रासंगिक होगा वे शिक्षा एवं उस भाषा में बी.एड. दोहरी डिग्री प्रदान करेगा ताकि उस भाषा के उत्कृष्ट भाषा शिक्षक तैयार हो सकें। इसके अतिरिक्त यह भी प्रस्तावित है कि भाषाओं के लिए एक नया संस्थान स्थापित किया जाएगा। विश्वविद्यालय परिसर में एक पाली, फारसी एवं प्राकृत भाषा के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान स्थापित किया जाएगा। जिन संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में भारतीय कला, कला इतिहास एवं भारत विद्या का अध्ययन किया जा रहा है यहाँ भी इसी प्रकार के कदम उठाये जायेंगे। इन सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट अनुसंधानों को एनआरएफ द्वारा सहयोग प्रदान किया जाएगा।
भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित प्रत्येक भाषा के लिए अकादमी स्थापित की जायेगी जिनमें हर भाषा से श्रेष्ठ विद्वान एवं मूल रूप से वह भाषा बोलने वाले लोग शामिल रहेंगे ताकि नवीन अवधारणाओं का सरल किन्तु सटीक शब्द भण्डार तय किया जा सके तथा नियमित रूप से नवीनतम शब्दकोष जारी किया जा सके। इसी प्रकार व्यापक पैमाने पर बोली जाने वाली अन्य भारतीय भाषाओं की अकादमी केंद्र अथवा/ और राज्य सरकारों द्वारा स्थापित की जायेंगी। इस प्रकार कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत के विभिन्न भाषाओं, बोलियों, कला एवं संस्कृति के संवर्धन हेतु पर्याप्त प्रावधान किये गये हैं। यदि इन सभी प्रावधानों का शतप्रतिशत क्रियान्वयन हो गया तो भारतीय सनातन संस्कृति अपने गौरवशाली अतीत को पुनः प्राप्त कर भारत को विश्व के अग्रिम पंक्ति के देशों में स्थापित करने में सफल होगी।
(लेखक शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.) में भू-विज्ञान विभागाध्यक्ष है।)
सर्वांगीण विकास होगा नई शिक्षा नीति से