राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : प्राथमिक शिक्षा

 – डॉ० रवीन्द्र नाथ तिवारी

प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा पद्धति का उद्देश्य भौतिक और आध्यात्मिक जीवन का निर्माण करना रहा है। समाज का बौद्धिक और आध्यात्मिक उत्कर्ष शिक्षा के माध्यम से माना गया है। ऋग्वेद में विद्या को मानव की श्रेष्ठता का आधार माना गया है। शिक्षा मानव जीवन का आधार है। शिक्षा मानव के जीवन की प्रगति पथ पर पहली सीढ़ी है। शिक्षा के मायने विभिन्न हैं, यह केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है वरन् यह बहुआयामी है। इसके बौद्धिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, व्यापारिक आदि विभिन्न आयाम है। ये सभी आयाम हमें अपने जिंदगी के किसी न किसी मोड़ में सहयोग प्रदान करते हैं। शिक्षा न केवल हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचाती है वरन् ये हमें जिंदगी में सही फैसले लेना और जिंदगी से सामंजस्य बैठाना भी सिखाती है।आदिकाल से ही भारतीयों में शिक्षा के प्रति आदर भाव रहा है, जब शेष दुनिया खाना-बदोश थी तब भारत में वेदों की रचना हुई। सिंधु सभ्यता के प्रमाण भी बताते हैं कि भारत में तकनीक, भवन निर्माण आदि कलाओं में कितने पारंगत थे। भारत कई शताब्दियों तक विदेशी आक्रांताओं के अधीन रहा। देश के सभी वर्ग के लोगों के अथक प्रयास से भारत को आजादी मिली। स्वतंत्रता मिलने के पश्चात् दुनिया के सभी संविधानों से प्रेरणा लेकर विश्व के सबसे बड़े संविधान का निर्माण किया गया लेकिन भारतीय शिक्षा मैकाले की शिक्षा से आजाद नहीं हो सकी। भारत में आजादी के पश्चात कोठारी आयोग की रिपोर्ट और सिफारिशें के आधार पर 1968 में भारत की प्रथम शिक्षा नीति आई, 1986 में सरकार ने नयी शिक्षा नीति बनायी जिसमें 1991 में कुछ संशोधन किए गए और 2009 में अनिवार्य शिक्षा अधिनियम लाया गया। इन सभी प्रयासों का मुख्य उद्देश्य लोगों तक शिक्षा की पहुंच को बढ़ाना था ताकि सभी शिक्षा से जुड़ सके और शिक्षा समाज के सभी वर्गों के लिए सुलभ हो सके। 21वीं सदी का भारत इन सबसे बढ़कर कुछ अलग और ऐसी शिक्षा नीति की उम्मीद करता है जो उसे वर्तमान परिस्थितियों से सामना करने में सक्षम बना सके। वास्तव में शिक्षा समावेशी हो, रोजगारपरक हो, भारतीय चिन्तन एवं दर्शन एवं भारत केन्द्रित शोध पर आधारित हो ताकि शिक्षा सभी के विकास में महत्तवपूर्ण योगदान दे सके तथा ऐसी न हो जिससे वे पढ़े़-लिखे डिग्रीधारी बेरोजगार हो सकें। उक्त के आलोक में वर्तमान सरकार  द्वारा हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लायी गयी है। यह शिक्षा नीति छात्रों के विशिष्ट क्षमताओं की पहचान और विकास, शिक्षा के ढांचे को लचीला, सीखने पर जोर, छात्रों में जोर देना व तार्किक और रचनात्मक सोच का विकास, रोजगारोन्मुखी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए है। इस नीति के अनुसार विद्यालयीन शिक्षा को 10+2  के स्थान पर 5+3+3+4 कर दिया गया है।  5(आँगनवाड़ी + प्री स्कूल + कक्षा 1 और 2 ), 3(कक्षा 3 से 5 ), 3(कक्षा 6 से 8) और 4 (कक्षा 9 से 12) शामिल है।

पिछली नीति में 6 वर्ष के बच्चों को कक्षा 1 में प्रवेश दिया जाता था इसमें 3 से 6 वर्ष के बच्चों को शामिल नहीं किया गया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 3 से 6 वर्ष के बच्चों को शामिल करने की एक महत्वाकांक्षी व्यवस्था की गई है। बच्चों का लगभग 85 प्रतिशत मानसिक और शारीरिक विकास 6 वर्ष  की आयु तक हो जाता है इसलिए यह आवश्यक है कि बच्चों को इसी आयु में अच्छा पोषण और अच्छी शिक्षा प्राप्त होनी चाहिए। जिससे बच्चों के भविष्य का एक अच्छा आधार बन सके। देश में आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित वर्गों के करोड़ों बच्चे ऐसे हैं जिन्हें बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पा रही है, ऐसे बच्चों के लिए सरकार का मुख्य उद्देश्य है कि वंचित वर्गों को देश के अग्रणी वर्ग के लोगों के बराबर में खड़ा करना है। अर्ली चाइल्ड केयर एण्ड एजुकेशन (ईसीसीई) को राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सम्मिलित करना सरकार का सबसे बड़ा कदम है। अर्ली चाइल्ड केयर एण्ड एजुकेशन (ईसीसीई) मुख्य रूप से लचीली, बहुआयामी और खेल आधारित बहुस्तरीय व्यवस्था है जिसके अनुसार बच्चों में अक्षर ज्ञान, गिनती, चित्रकला, रंग, आकार का प्रारंभिक ज्ञान देने के साथ-साथ बच्चों में नैतिकता, शिष्टाचार और टीम भावना जैसे गुणों का विकास करना भी है। इन सभी उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति के लिए सभी शिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करने के लिए एनसीईआरटी को अधिकृत किया गया है।

आंगनवाड़ियों को विद्यालयीन ढांचे के अंदर लाने से बच्चों के पोषण स्तर में सुधार किया जा सकेगा, साथ ही गरीब तबके को बच्चों के देखभाल में मदद भी मिलेगी। आंगनवाड़ी के बाद का पड़ाव बालवाटिका है। इसमें बच्चों को विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से अक्षर ज्ञान, अंक ज्ञान, वैज्ञानिक तथा तार्किक सोच के विकास पर जोर दिया जाएगा। खेल गतिविधियों के माध्यम से बच्चे के शरीरिक विकास पर जोर दिया गया है। बच्चों में संवेदना, सामाजिक स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाने की बात कही गयी है। बच्चों में प्रारंभिक भाषा के माध्यम से संवाद कौशल के साथ ही साथ भारत की प्राचीन संस्कृति, परम्परा और समृद्धि से जोड़ के रखने की बात कही गई है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु ईसीसीई का ऐसा प्रारूप तैयार किया जाना चाहिए जो अन्तर्राष्ट्रीय शोध मानकों पर आधारित हो। इस हेतु देश में चरणबद्ध तरीके से इसे लागू करना एक प्रमुख चुनौती है तथा अभिभावकों और शिक्षकों में जागरूकता भी बढ़ाना होगा। आंगनवाड़ी के माध्यम से स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राथमिक शालाओं तक भी पहुंचाया जाएगा।

एक रिपोर्ट के अनुसार 5 करोड़ ऐसे बच्चे हैं जिन्हें बुनियादी ज्ञान जैसे अक्षर ज्ञान, संख्यात्मक ज्ञान की भी कमी देखने को मिली है। ऐसे बच्चों में लेख को पढ़ने तथा जोड़ने, घटाने सम्बन्धी सामान्य जानकारी का अभाव है। जब बच्चा कक्षा-1 में प्रवेश लिया है तो सरकार का प्रयास है कि ये सभी बच्चे जो पिछड़ रहे हैं उन्हें भी आगे बढ़ाया जाय ताकि वह भी बाकी बच्चों से बराबर रह सके। यह अवधारणा की गई है कि बच्चा 5 वर्ष की आयु के पूर्व प्रारम्भिक कक्षा (बालवाटिका) में पहुंचे तब उसे योग्य शिक्षकों द्वारा खेल आधारित शिक्षा द्वारा प्रारंभिक साक्षरता, संख्यात्मक ज्ञान दिया जाय साथ ही मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम को इन कक्षाओं तक भी विस्तारित किया जाय। वनवासी बहुल क्षेत्रों में इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा साथ ही प्रयास किया जाएगा। साथ ही प्रयास किया जाएगा कि शालाएं आश्रम शालाओं के अनुरूप हो। इस नीति के अनुसार सभी बच्चों के लिए मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त करना एक राष्ट्रीय अभियान बनेगा तथा सरकार का इस लक्ष्य को 2025 तक प्राप्त करना होगा। कक्षा 3 तक प्रत्येक बच्चे को मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य होगा। वर्तमान में बच्चे बड़े पैमाने पर सीख नहीं रहे हैं, यह एक बड़ा संकट है। इसमें शिक्षकों की मदद ली जाय इसके लिए व्यावहारिक तरीकों की खोज की जाएगी। यह देखा गया है कि बच्चे सहपाठी के साथ अधिक आसानी से सीखते हैं इसके लिए पियर ट्युटरिंग और बोलेंटियर्स को बढ़ावा देने के लिए नया मॉडल स्थापित किया जाएगा, साथ ही शिक्षकों को प्रोत्साहन देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किए जाएंगे।

बच्चों को स्थानीय भाषा में प्रेरणादायक बाल साहित्य की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी। ग्राम और प्राथमिक पाठशाला स्तर पर पुस्तकालयों का निर्माण कराया जाएगा। इसका लाभ न केवल छात्र को बल्कि अभिभावक भी प्राप्त कर सकेंगे। इससे बच्चों में पढ़ने और सीखने की प्रवृत्ति बढ़ेगी। द डिजिटल इन्प्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (दीक्षा) की स्थापना की जाएगी जिसके माध्यम से बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों तक मूलभूत  साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान की पहुँच बढेगी।

बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सरकार द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी बच्चों को अच्छा और पौष्टिक भोजन प्राप्त हो ताकि वह स्वस्थ रहे और ज्ञानार्जन तथा खेलकूद में आगे रहे। इस कार्य को सामाजिक कार्यकर्ताओं, काउंसलर और समुदाय की भागीदारी के माध्यम से किया जाएगा। बच्चों को सुबह अच्छा नाश्ता और दोपहर अच्छा पौष्टिक भोजन प्राप्त हो यह सुनिश्चित किया जाएगा। जहां गर्म पका भोजन की सुविधा उपलब्ध न हो वहां सादा और पौष्टिक भोजन की व्यवस्था की जाएगी। सभी  स्कूली बच्चों का 100 प्रतिशत टीकाकरण हो यह सुनिश्चित किया जाएगा, साथ ही समय-समय पर उनकी स्वास्थ्य जांच की जाएगी और स्वास्थ्य पर निगरानी हेतु हेल्थ कार्ड जारी किए जाएंगे। उपरोक्त तथ्य को प्राप्त करने में शिक्षकों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

प्राथमिक विद्यालयों में रिक्त पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति करना तथा पहले से कार्यरत शिक्षकों को नए पद्धति के अनुकूल प्रशिक्षण देना, इस हेतु कार्य करना होगा। ईसीसीई शिक्षकों के शुरुआती कैडर को तैयार करने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों/शिक्षकों को एनसीईआरटी द्वारा विकसित पाठ्यक्रम /शिक्षण-शास्त्रीय फ्रेमवर्क के अनुसार एक व्यवस्थित तरीके से प्रशिक्षण दिया जाएगा। 10+2 और उससे अधिक योग्यता वाले आंगनवाड़ी कार्यकत्री /शिक्षक को 6 महीने का प्रमाण पत्र कार्यक्रम कराया जाएगा और कम शैक्षणिक योग्यता रखने वालों को एक वर्ष का डिप्लोमा कार्यक्रम कराया जाएगा जिसमें प्रारंभिक साक्षरता, संख्या और ईसीसीई के मन्य प्रासंगिक पहलुओं को भी शामिल किया जाएगा। इन कार्यक्रमों को डिजिटल/दूरस्थ माध्यम से डीटीएच चैनलों के साथ-साथ स्मार्ट फोन के माध्यम से भी चलाया जा सकता है, जिससे शिक्षकों को अपने वर्तमान कार्य में न्यूनतम व्यवधान के साथ ईसीसीई योग्यता प्राप्त करने में सहूलियत मिल पाएगी। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता/शिक्षकों के ईसीसीई प्राशिक्षण को शिक्षा विभाग के क्लस्टर रिसोर्स सेंटर द्वारा मार्गदर्शन किया जाएगा और निरंतर मूल्यांकन के लिए कम से कम एक मासिक कक्षाएं भी चलाई जाएंगी। दीर्घावधि में, राज्य सरकारों को चरण-विशेष में व्यावसायिक प्रशिक्षण, मार्गदर्शन की व्यवस्था और कॅरियर मैपिंग के जरिये आरंभिक बाल्यावस्था में देखभाल और शिक्षा के लिए व्यावसायिक रूप से योग्य शिक्षकों के कैडरों को तैयार करना चाहिए। इन शिक्षकों की प्रारंभिक व्यावसायिक तैयारी  और उसके सतत व्यावसायिक विकास के लिए आवश्यक सुविधाओं का भी विकास किया जाएगा।

अंततः हम यह कह सकते हैं कि शिक्षा नीति में निहित प्राथिमक शिक्षा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का सर्वाधिक  महत्वपूर्ण भाग है। बिना नींव (फाउन्डेशन) मजबूत किये राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना आसान नहीं होगा। इसीलिए यह अपेक्षा की गयी है कि प्राथमिक शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों का अतिशीघ्र प्राप्त किया जाय। वर्तमान समय ने प्राइमरी में चल रहे अधिकतर विद्यालय और उनके पाठ्यक्रम में अमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। तार्किंक एवं अवधारणात्मक शक्ति विकसित करने की अपेक्षा विषय को रटने की प्रवृत्ति (वर्तमान में चल रही व्यवस्था) राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की मूल अवधारणा के विपरीत है। अतः रटने की प्रवृत्ति को यथासंभव कम करने का प्रयास करना होगा। शिक्षा समाज पोषित होनी चाहिए। अतः समाज के सभी वर्गों का सहयोग राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में अपेक्षित है। आने वाले 5 वर्ष, वास्तव में शिक्षा क्षेत्र के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। मेरा यह मानना है कि इस राष्ट्रीय पुनीत कार्य में स्वेच्छा से सभी को बढ़-चढ़कर सहभागी होना चाहिए। ऐसे शिक्षक जो सेवानिवृत्त हो रहे है, उन्हें भी स्वेच्छा से राष्ट्र के पुनरुत्थान में अपना-अपना योगदान देना चाहिए। सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू कर भारत को विश्वगुरु के पद पर पुनः प्रतिष्ठित करने हेतु एक अनुकरणीय प्रयास किया है। निश्चित रूप से यदि शिक्षा नीति का सही मायने में क्रियान्वयन होगा तो भारत पुनः विश्वुरु का दर्जा प्राप्त कर पूरे विश्व का मार्गदर्शन करने में सक्षम होगा।

(लेखक शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.) में भू-विज्ञान विभागाध्यक्ष है।)

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