– वासुदेव प्रजापति
एक स्वाभाविक प्रश्न खड़ा होता है कि इस अर्थ प्रधान युग में शिक्षक को राष्ट्र निर्माता की भूमिका निभाने की प्रेरणा कहाँ से प्राप्त होगी? इसका सीधा सा उत्तर है हमारे देश में तो प्राचीन काल से शिक्षक इसी भूमिका का निर्वहन करते आये हैं। हाँ, अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव से यह भाव लुप्त जरूर हुआ है, परन्तु समाप्त नहीं हुआ। हमारे देश में राष्ट्र निर्माता शिक्षकों की एक श्रृंखला रही हैं, उनमें मुख्य हैं – भगवान वेदव्यास, ऋषि याज्ञवल्क्य, आचार्य चाणक्य और जगदगुरु शंकराचार्य। इनके जीवन आज भी शिक्षकों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं।
तात्विक दृष्टि में तो ज्ञान आत्म स्वरूप ही है ,परन्तु व्यवहारिक दृष्टि में ज्ञान के स्वरूप और प्रयोजन भिन्न भिन्न होते हैं। उन प्रयोजनों के अनुसार ज्ञान साधकों के लिए करणीय कार्यों का स्वरूप भी भिन्न भिन्न रहता है। इन महापुरषों ने अलग-अलग देशकाल व परिस्तिथियों में अपना-अपना दायित्व पहचाना और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण किया।
भगवान वेदव्यास : वेद व्यास जी ने स्वयं तो मन्त्रों के दर्शन नहीं किये किन्तु इतस्तत: बिखरे पड़े वेद मन्त्रों का संकलन एवं संपादन किया। संकलित मन्त्रों को चार वेदों में वर्गीकृत किया। तत्पश्चात अपने चार शिष्यों को एक-एक वेद के अध्ययन, अध्यापन और प्रसार का दायित्व दिया। ऐसे जगत के आद्य संपादक की आज भी ज्ञान के क्षेत्रों में आवश्यकता है। भारतीय ज्ञान का अस्तित्व तो है, परन्तु हमारे लिए वह आज सुलभ नही हैं। उसे सुलभ बनाने वाले अर्वाचीन वेदव्यास की आज भी प्रतीक्षा है।
ऋषि याज्ञवल्क्य : याज्ञवल्क्य का जीवन विद्वता किसे कहते हैं, विद्वता का स्वाभिमान तथा गौरव क्या होता है? तथा ज्ञान की उपासना का प्रभाव कैसा होता है, इसका जीता जगता उदाहरण है। शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त करने का पराकोटी आत्मविश्वास होने के परिणाम स्वरूप ही वे शास्त्रार्थ से पूर्व ही जनक द्वारा प्रस्तुत एक हजार गायों को लेने का साहस दीखा सकें। गायों के मोह से ऊपर उठने पर ज्ञान स्वयं ही ज्ञान साधक का वरन कर लेता है। यह साक्षत्कार होने पर उन्होंने संन्यास ले लिया। ऐसे ज्ञान के गौरव व उपयोजन को समझने वाले की आज भी आवश्यकता है।
आचार्य चाणक्य : चाणक्य तो राष्ट्र निर्माता शिक्षक के मूर्तिमंत उदाहरण हैं। राष्ट्र पर आये संकेट के समय उन्होंने विद्यापीठ को राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बना दीया। वे और उनके विद्यार्थी अपना नित्य का अध्यापन छोडकर समाज जागरण, दृष्टि उन्मूलन और सुस्थिति की प्रतिस्थापना के कार्य में लग गये। और एक सु संगठित राज्य स्थापित कर, योग्य शासक को पदासीन कर पुन: शिक्षक बन गये। इस तरह वे हमारे लिए ज्ञाननिष्ठ व्यवहार व व्यवस्था खड़ी करने वाले आदर्श शिक्षक है।
जगदगुरु शंकराचार्य : शंकराचार्य जी दूषित ज्ञानक्षेत्र की एवं अव्यवस्थित धर्मक्षेत्र की परिष्कृत करने का महत्तम कार्य करते हैं, ज्ञान भावना और कृति का अद्भुत समन्वय करते हुए देश की चारों दिशाओं में चार धाम स्थापित कर राष्ट्रीय एकता का विलक्षण कार्य कर दीखाया। निवृत मार्ग के उपासक और उपदेशक होते हुए भी अविराम प्रवृति में रत रहने का प्रत्यक्ष उदाहरण अपने आप प्रस्तुत किया।
काल के प्रवाह में ऐसे और भी प्रेरक चरित्र हमारे देश में हैं जो राष्ट्र निर्माता हैं शिक्षकों के लिए दीपस्तम्भ हैं। इन सभी महापुरुषों ने अलग अलग समय में जो-जो किया, वह सब आज फिर एक साथ करने की आवश्यकता है। देश के सभी शिक्षक इस आवश्यकता को पूर्ण करने वाले बनें, प्रभु से यही विनम्र प्रार्थना है।
(लेखक शिक्षाविद् है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान, कुरुक्षेत्र के सह सचिव है।)
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