नारी शक्ति वंदन: भारतीय चिंतन का दर्शन

 – डॉ. पिंकेश लता रघुवंशी

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।” मनु स्मृति में आया हुआ यह श्लोक महिला स्थिति को लेकर भारत के वास्तविक दर्शन को प्रस्तुत करता है। वही मनुस्मृति जिसे सनातन जीवन शैली का संविधान भी कहा जा सकता है। किंतु दुर्भाग्य कि एक षड्यंत्रकारी योजना से पराधीन भारत में जॉन वूडॉफ (साहित्यिक नाम ऑथर एवलॉन) नाम का लेखक हमारे लगभग २० संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद करता है, और हमारे सनातन मूल्यों को, शैक्षणिक विरासत के मूल तत्वों को अनेक भागों में विभाजित करके ऐसा विमर्श खड़ा करता है कि वैदिक कालीन भारत से लेकर वर्तमान समय तक महिला पुरुषों में भेदभाव, जाति समाज में भेदभाव, कार्यों के श्रमों के आधार पर भेदभाव ऐसे निरूपित करता है जैसे यह सब वेदों, पुराणों, उपनिषदों में वर्णित आधारों पर समाज में पूर्व से ही व्याप्त रहा हो। इस एक विमर्श ने हमारी अनेक पीढ़ियों के अंदर स्वयं को कम समझने, समाज व राष्ट्र को हेय मानने की ऐसी मानसिकता, ऐसा भ्रम का भाव और ऐसी ग्लानि का भाव भर दिया था जिसमें सीमेंट का कार्य अंग्रेजों द्वारा लाई गई शिक्षा पद्धति ने कर दिया।

अपने पुरातन वैभव से विलग करके व्यक्ति की पहचान दूर कर देना ही उसके अंदर से स्वत्व और स्वाभिमान के भाव हटाकर उसे निम्न और मात्र अवगुणों से परिपूर्ण बताना ही उसकी क्षमताओं को निम्न मानने का उद्देश्य पूर्ण कर लिया गया। वह भारत जहां की विदुषियां जब कुछ कहती हैं तो वह वेदों की ऋचाओं में बदल जाता था। शिक्षा न केवल गुरुकुलों में देती हैं अपितु अपने पुत्रों को श्रेष्ठ ऋषि, संन्यासी बनाती है, अपने पतियों के साथ शास्त्रार्थ करती है और यज्ञ हवनों की पावन ऋचाओं को लिखने का कार्य भी करती है। उन महिलाओं को छोटा कहा गया, दबा हुआ कहा गया अथवा वह महिलाएं जो राज्य के लिए गए निर्णय में अधिकार पूर्वक अपना विषय रखती थी। आवश्यकता पड़ी तो अपने राज्य के लिए दुर्गावती, लक्ष्मीबाई, अहिल्या के रूप में स्वतंत्र निर्णय के लिए और युद्ध भी किया अतः केवल सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा आदि के नाम पर भारत की महिलाओं में कुंठा, ग्लानि यह भाव भरना वास्तव में उस विशाल परिवार परंपरा, कुटुंब परंपरा पर आघात था जिसके कारण यह विश्व भारत को विश्व गुरु और सोने की चिड़िया कहता था। तत्कालीन परिस्थितियों में व्याप्त हुई विसंगतियां पूर्व से तय किए गए संस्कारों से जोड़ दी गई किंतु आज स्वाधीनता के अमृत काल में मातृशक्ति के शोषण, कुंठा व दमनकारी विचारों से ऊपर उठकर नारी शक्ति वंदन विधेयक उस वैभवशाली भारत के चित्र के दर्शन कराता है जिसका स्वप्न हमारे राष्ट्र निर्माता ने देखा था।

आज आजादी के अमृत काल में जब संसद की नवीन भवन में प्रवेश के साथ नरेंद्र मोदी सरकार ने नारी शक्ति वंदन विधेयक लाकर यह संदेश दिया कि भारत आज भी मनुस्मृति की उन पंक्तियों को स्वीकार करता है जिनमें कहा गया है यत्र नार्यस्तु पूजन दे रमंते तत्र देवता: अर्थात जहां नारियों को पूजा जाता है, सम्मान दिया जाता है वहां देवताओं का वास होता है। कितना सार्थक विषय है जिस प्रकार एक परिवार में नवीन गृह में प्रवेश किया जाता है तो कन्या पूजन घट स्थापना के साथ गृह लक्ष्मी की पूजन की जाती है ठीक वैसे ही नवीन संसद का शुभारंभ नारी शक्ति विधेयक से करने से संभवत यही भाव फलीभूत भी हो रहा है और स्वीकार किया है कि

नारी अस्य समाजस्य कुशलवास्तुकारा अस्ति।।

नारी समाज की कुशल शिल्पकार है। कल्याण की कामना नारी सम्मान पर ही निर्भर है। जहाँ स्त्रियों को कष्ट होता है वहाँ कुल, वंश सभ्यता का नाश होता है।

…..इसीलिए भारत में विदेशी आक्रांताओं द्वारा नारी को छला गया, शोषित किया गया। परिणाम भारत आपने उत्कृष्ट वैशिष्ट्य को विस्मृत कर गया।

वर्तमान समय में नारी के सम्मान के साथ भारत का नए रूप में अभ्युदय हो रहा है।

यह बिल लगभग 27 वर्षों से अधर में लटका हुआ था। 1996 में प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा जी ने इस बिल को रखा था। 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने सदन में इस बिल को रखा था। 1999 में भी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पुनः यह बिल को पारित करने का प्रयत्न किया। 2002-2003 में भी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह बिल सदन में रखा। 2008 में यूपीए सरकार द्वारा यह बिल सदन में रखा गया। 2010 में भी यूपीए सरकार द्वारा यह बिल राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया।

किंतु, 2023 में माननीय नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा यह बिल नवीन संसद भवन में दूसरे दिन पारित किया गया और 454 मत प्राप्त करके सर्वसम्मति से इस बिल को पारित कर दिया गया। नये संसद भवन में नारी को अग्रणी मानकर उसकी सर्वश्रेष्ठ भूमिका को स्वीकार कर उसे स्वर्णिम उपहार दिया है।

जब राष्ट्र की सत्ता सशक्त हाथों में विश्व बंधुत्व के भाव को लेकर जन कल्याण के उद्देश्य की पूर्ति हेतु संभाली जाती है। तब ऐसे उत्कृष्ट कार्य संपन्न होते ही हैं।

भारत वर्ष की सभी मातृशक्तियां उनमुक्त कंठ से इस बिल का स्वागत करती हैं और प्रधानमंत्री जी व सभी सांसदों को साधुवाद देती है।

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