– दिलीप वसंत बेतकेकर
अनेक प्रख्यात, यशस्वी लोगों के चरित्र पढ़ने पर ज्ञात होता है कि जीवन के प्रारम्भिक कुछ वर्षों में उन्होंने बहुत संघर्ष और परिश्रम किया था। आज उनका उत्कर्ष देखकर अनेक लोगों को उनके प्रति द्वेष अथवा ईर्ष्या भाव का अनुभव होता है। उनकी अमीरी पर गुस्सा आता है। परन्तु उनके संघर्ष, परिश्रम के दिनों को कोई समझ पाता है? किसी इमारत की नींव जिस प्रकार किसी को दृष्टिगत नहीं होती उसी प्रकार विविध क्षेत्रों में अपार यशस्वी होने वाले व्यक्तियों ने उनके प्रारंभिक जीवन में कितने कष्ट झेले हैं, कितना संघर्ष और परिश्रम किया है इससे सामान्य जन अनभिज्ञ, अनजान रहते हैं।
प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष आवश्यक है। घर पर निठल्ले बैठे रहने की अपेक्षा घर के बाहर निकलकर, पैसा प्राप्त न होते हुए भी, अनुभव प्राप्त होगा, इस दृष्टिकोण से कार्य करने वाले को सुयश अवश्य प्राप्त होता है।
“पर्वरी से मडगांव जाते हुए रास्ते में कौन सी नदियां हैं”? ये प्रश्न मैंने शिक्षक पद के लिये साक्षात्कार के लिये जा रही एक युवती से पूछा। वह बी.ए., बी.एड्. शिक्षित थी। पर्वरी की ही रहने वाली थी वह युवती! “मांडवी और अरब सागर” उसका उत्तर था! मैं हतप्रभ रह गया!
शालाओं का नया सत्र प्रारंभ होते ही शाला में शिक्षकों की आवश्यकता होती है। इस हेतु साक्षात्कार लिये जाते हैं। सैकड़ों डिग्रीधारी, उच्च शिक्षित उम्मीदवार साक्षात्कार हेतु आते हैं। एक संस्था से दूसरी संस्था में जाते हैं। हमारा आवेदन पत्र ही हमारे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब होता है। उम्मीदवार का आवेदन-पत्र साक्षात्कार लेने वाले के समक्ष पूर्व में ही पहुंच जाता है। शरीर रूप से उम्मीदवार बाद में उपस्थित होता है। अतः प्रथम प्रभाव अधिक महत्वपूर्ण होता है। कुछ महत्वपूर्ण ध्यान में रखें तो सफलता प्राप्त होने में कोई संशय नहीं रह जायेगा –
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अपने सभी प्रमाण-पत्र, अनुभव-पत्र, अन्य कागज़ महत्वपूर्ण होते हैं। कुछ उम्मीदवार ये सभी सामग्री प्लास्टिक की थैली में ठूंसकर साक्षात्कार के लिये आते हैं। साक्षात्कार के समय ये प्रमाण-पत्र थैली से बाहर निकालते समय कर्र-कर्र की अप्रिय आवाज़ उत्पन्न होती है। पंखे की हवा से कभी-कभी कागज़ बिखरने लगते हैं। ऐसे में उम्मीदवार घबरा जाता है। इसलिये एक अच्छे से फाइल-कवर में व्यवस्थित रूप से रखकर सभी प्रमाण-पत्र आदि संभलकर लाना अच्छा है। धारिका को देखकर ही स्वभाव का विशेषकर कार्य संस्कृति, प्रवृत्ति का दर्शन हो जाता है।
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साक्षात्कार हेतु जाते समय पहनावा सादा किन्तु व्यवस्थित होना चाहिये। सौंदर्य प्रसाधनों का अनावश्यक उपयोग गुणवत्ता के लिये कारगर नहीं होता। शिक्षकों का पहनावा कैसा हो? कुछ शिक्षक बेढंगे परिधान में तो कुछ अत्यधिक चमक-दमक वाले परिधान में दिखाई देते हैं। किन्तु ऐसे कपड़े और महंगे सौंदर्य प्रसाधन उपयोग करने पर भी चेहरा निर्विकार! कक्षा में बच्चों के समक्ष जाते हुए चेहरा प्रसन्न दिखना महत्वपूर्ण है। चिड़चिड़ा अथवा तनावयुक्त चेहरा बच्चे पसंद नहीं करते।
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जिस संस्था के लिये हम आवेदन दे रहे हैं, साक्षात्कार के लिये जा रहे हैं, उस संस्था के सम्बन्ध में कुछ जानकारी अवश्य रखें। प्रत्येक संस्था की कार्यपद्धति, कार्यसंस्कृति भिन्न-भिन्न प्रकार की रहती है।
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‘मुझे अध्ययन में रुचि है’, ऐसा बहुसंख्य उम्मीदवार साक्षात्कार में कह देते हैं। परन्तु इस सम्बन्ध में गहराई से प्रश्न पूछने पर सत्य सामने आ जाता है? ‘गत सप्ताह में क्या पढ़ा’ ऐसा प्रश्न पूछने पर प्रायः उत्तर मिलता है- “गत सप्ताह समय नहीं मिल पाया” रोज के समाचार पत्र भी नहीं पढ़ते! ‘अग्रलेख क्या है?’ ‘संपादकीय दिखाओ’ कहने पर प्रथम पृष्ठ पर लिखी प्रमुख बात भी बताने वाले अनेक उम्मीदवार मिले। ये शायद आपको सत्य न लगे परन्तु होता है!
कभी मन करता है संपूर्ण साक्षात्कार का वीडियो रिकार्डिंग किया जाए। इससे उम्मीदवार की चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता दिखेगी और उम्मीदवार को भी अपने गुण-दोष देखने को मिल सकते हैं।
चयन के लिये अन्य आधार भी होते हैं। अनेक मुद्दे ध्यान में रखने पड़ते हैं। मान लीजिए हम पालक हैं और शिक्षकों ने हमारे बच्चों की गलतियों के बारे में शिकायत की, तो हमें कैसा अनुभव होगा? हम उन्हें तुरंत मान लेंगे क्या? निश्चित ही नहीं। हम बड़े कष्ट से बच्चों को पालपोस कर बड़ा करते हैं, शाला में अध्ययन हेतु भेजते हैं, इस कारण हम शिक्षकों से भी पालक के रूप में कुछ अपेक्षाएं रखते हैं। कौन सा पालक अपने बालक की हानि सहन करेगा? पालक के रूप में मेरी कुछ अपेक्षाएं होंगी, उसी प्रकार यदि मैं शिक्षक हूं तो मेरे से भी पालक की कुछ अपेक्षाएं होंगी। उनकी अपेक्षा पूर्ति करना भी मेरा कर्तव्य है, मेरी जिम्मेदारी है। इसी उद्देश्य से मुझे वेतन मिलता है।
साक्षात्कार के समय यह सभी बातें ध्यान में लायी जाती हैं। कुछ को वह समझ में आता है तो कुछ को खटकता भी है। हम बच्चों के लिये शाला संचालित करते हैं, किसी को नौकरी मिले इसलिये नहीं। हमारे सब क्रियाकलाप का केन्द्र बिन्दु विद्यार्थी होता है। उसके हित हेतु ही कार्य करते हैं। इसके विरोध में कोई समझौता नहीं।
साक्षात्कार में निश्चित प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने की आदत रखने वाले उम्मीदवारों का कुछ अलग प्रकार है ऐसा ध्यान में आता है। साक्षात्कार में असफलता मिलने पर भी स्वयं की गलती का आभास अवश्य हो जाता है। साक्षात्कार के द्वारा बहुत सीख मिली, ऐसी प्रतिक्रियाएं भी प्राप्त हुईं।
साक्षात्कार देने वाले को जैसे अनुभव प्राप्त होते हैं वैसे ही साक्षात्कार लेने वाले को भी। अच्छा, समझदार, उम्मीदवार आने पर प्रसन्नता होती है।
साक्षात्कार के लिये जाने हेतु क्या, कैसी तैयारी करनी चाहिये इस सम्बन्ध में “साक्षात्कार-तंत्र-मंत्र’ नामक कार्यशाला का आयोजन हमने किया था। प्रतिसाद अच्छा न मिला। खेद इस बात का हुआ जिस शाला में कार्यशाला चल रही थी उसी के मैदान पर अनेक युवा क्रिकेट खेल रहे थे। फिर भी किसी को भी इस कार्यशाला में आकर आयोजन का लाभ लेने की इच्छा नहीं हुई। इस प्रकार की गैर-जिम्मेदाराना वृत्ति, उदासीनता, मुझे सब कुछ आता है, मुझे किसी की जरूरत नहीं, ऐसी प्रवृत्ति हमारे युवाओं की हानि कर रही है।
डेल कार्नेगी ने एक बार एक ऑयल कम्पनी के एम्लॉयमेंट डायरेक्टर पॉल वाइन्टन से पूछा, “नौकरी हेतु आवेदन देने वाले लोग सबसे बड़ी गलती क्या करते हैं?” साठ हजार व्यक्तियों का साक्षात्कार लेने का अनुभव रखने वाले और इस विषय पर पुस्तक लिखने वाले पॉल वाइन्टन द्वारा मार्मिक उत्तर मिला, – “नौकरी के लिये आवेदन करने वाले लोग सबसे बड़ी गलती ये करते हैं कि वे स्वयं जो हैं उसे न दर्शाते हुए वे आपको खुश करने वाले उत्तर देते हैं। परन्तु इससे उन्हें कुछ लाभ नहीं मिलता। खुशामदी लोग किसी को भी पसंद नहीं आते।”
“Apply-Apply, no reply” की निराशाजनक स्थिति को टालना हो तो आज के स्पर्धा के युग में स्वेच्छाचार को त्याग कर अच्छी पूर्व तैयारी करनी चाहिये। अंत में यही कहना है- “Try your best, God will do the rest.”!
(लेखक शिक्षाविद, स्वतंत्र लेखक, चिन्तक व विचारक है।)
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